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Thursday, November 15, 2018

मंदिर कठिनाई भी पैदा कर सकता है

मंदिर कठिनाई भी पैदा कर सकता है
अयोध्या में विवादित ढांचे को गिराए जाने के बाद   26 साल गुजर गए तो   अब जल्दी क्या है? जब सुप्रीम कोर्ट ने नवंबर के बजाय अगले वर्ष जनवरी में सुनवाई निर्धारित की, तो यह तूफान क्यों खड़ा किया जा रहा है?
वेलिंगटन के ड्यूक ने वाटरलू में अपने भाड़े के सैनिकों के बारे में टिप्पणी की थी  कि उनके दुश्मनों पर चाहे  कुछ भी प्रभाव ना पड़ा पर इन सैनिकों ने  उन्होंने उन्हें डरा जरूर दिया। नरेंद्र मोदी को अयोध्या में राम मंदिर बनाने के नारों का यही उद्देश्य हो सकता है।  सुप्रीम कोर्ट में  लंबे समय से चल रहे   मामले पर सुनवाई और फैसले का इंतजार किए बिना मंदिर बनाने की जल्दीबाजी हो गयी। यह मसला अचानक देश के लिए सबसे जरूरी मसला हो गया। रोज़गार, नौकरियों, मुद्रास्फीति, विकास, किसानों के संकट या यहां तक ​​कि आतंकवाद के बारे में चिंता करने के बजाय मंदिर बनाने की चिंता की जा रही  है। इस आंदोलन का सबसे खास पहलू यह है कि यह बीजेपी के मूल समर्थकों, संघ  परिवार के सदस्यों का प्रतिनिधित्व करता है। अगर इसपर ध्यान   नहीं दिया गया तो  वे अपना रास्ता खुद अख्तियार  कर सकते हैं।
वे इतनी जल्दी में क्यों हैं? मामला दशकों से अदालतों में लंबित पड़ा  है। मंदिर स्थल पर  बहस पांच सौ साल के इतिहास की ओर इशारा करती है। बाबरी मस्जिद को गिराए जाने के बाद भी 26 साल हो गए। 
इसका एकमात्र जवाब यह है कि इन समर्थकों ने मोदी जी के  फिर से जीतने की  उम्मीद छोड़ दी है। उन्हे आम चुनाव से  कुछ महीने पहले  मंदिर बनाने का आंदोलन  आखिरी उम्मीद लगती है। वे हार से डरते हैं।  संसद को दरकिनार कर अध्यादेश जारी करने की उनकी  मांग का एकमात्र यही स्पष्टीकरण हो सकता है। योगी आदित्यनाथ ने यह भी बताया है कि कानूनी स्थिति के बावजूद, मंदिर की इमारत शुरू होनी चाहिए ।  सभी सामग्रियां  तैयार हैं। जब संघ परिवार के सहयोगियों द्वारा मस्जिद को ध्वस्त कर दिया गया था, तब तत्कालीन भाजपा के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने कानून और व्यवस्था को लागू करने का वादा किया था, लेकिन वादा केवल वादा रहा। जब बात बिगड़ेगी तो  बहुत होगा  कि वर्तमान मुख्यमंत्री उसी तरह के वादे कर   सकते हैं। और जब कानून की अवमानना करने वाले मंदिर बनाते हैं, तो यूपी सरकार मूक दर्शक बनी रहेगी । ऐसे में  अगर सरकार को खारिज कर दिया जाता है, तो वह मंदिर के निर्माण के बाद फिर से सत्ता में आ सकती है। आखिरकार, आरएसएस के समर्थन से केंद्र सरकार की चुप्पी से  सबरीमाला में कानून का उल्लंघन किया जा रहा है या नहीं।
इस आइडिया के साथ एकमात्र दिक्कत यह है कि, यदि कुछ हुआ  तो यह निश्चित रूप से मोदी सरकार को बहुमत खोने का कारण बनेगा।  वह मंदिर के उत्साही या   एक हिंदू कट्टरपंथी के रूप में  नहीं चुने गए थे। यह उनके निजी विचार थे।  उन्होंने विकास की समावेशी नीति की पेशकश की थी इसी लिए वे निर्वाचित हुए । जब  उन्होंने बीजेपी की रणनीति को फिर से तैयार  किया और पार्टी को  और अधिक आधुनिक लोगों के जीवन और समावेशी विकास के लिए प्रासंगिक बनाने की उम्मीद जगाई तभी उन्हें  2014 में प्रचंड बहुमत मिला। यह समर्थन उन्हें शहरी मध्यवर्ग से मिला था।  युवा शहरी भारत  इस या उस मंदिर या मूर्ति को लेकर भावुक नहीं है। उनके लिए आर्थिक समृद्धि महत्वपूर्ण है। गरीब वर्गों के लिए, पीएमजेई में शामिल स्वास्थ्य नीति अधिक महत्वपूर्ण है।
सुप्रीम कोर्ट की अवमानना के रूप में  कानून की अवमानना  मध्य वर्गीय भारत को अलग कर देगा। मूल वोट हमेशा वहीं से आता है।बहुमत हासिल करने के लिए पार्टी को संघ के आदर्शों के दायरे  से बाहर जाना पड़ेगा । पांच राज्य चुनावों में नरेंद्र मोदी के मुकाबले विपक्षी पार्टियां  लड़ रही हैं। एक अध्यादेश पारित करना और फिर राष्ट्रव्यापी विरोधों से निपटने के लिए तरह तरह के वादे करना  एक विकृति होगी। चुनाव कानूनहीनता के मुद्दे पर जनमत संग्रह बन जाएगा। परिणाम  पार्टी के बहुमत के  नुकसान रूप में सामने आएगा।

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