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Thursday, November 8, 2018

कोलकाता में बढ़ते प्रदूषण के साथ बढ़ते अपराध

कोलकाता में बढ़ते प्रदूषण के साथ बढ़ते अपराध

हाल में प्रदूषण और अपराध के संबंध में शोध से पता चलता है शहरों में बढ़ते प्रदूषण के साथ अपराध बढ़ रहे हैं। वायु प्रदूषण से सेहत को कितना नुकसान होता है यह तो सभी जानते हैं लेकिन इससे व्यवहार पर भी असर पड़ता है यह बात अभी बहुत लोग नहीं जानते। 70 के दशक में अमरीका में पेट्रोल से सीसा निकाला गया और बच्चों के  व्यवहार पर  इसका दूरगामी परिणाम हुआ। बच्चों में आवेग और आक्रामकता ,जो बहुत तेजी से बढ़ रही थी ,वह कम हो गई । सीसे के संपर्क से बच्चों में जहां आवेग और आक्रामकता बढ़ती है वहीं उनका आईक्यू घट जाता है। घटे आई क्यू के  बच्चे अपराध की ओर जल्दी प्रवृत्त होते हैं। शंघाई में किये गए शोध से पता चला कि लघु अवधि के लिए भी वायु प्रदूषण, खासकर सल्फर डाइऑक्साइड के संपर्क में आने, से मानसिक व्याधि बढ़ जाती है। यही नहीं लॉस एंजेलिस में भी एक शोध से पता चला की हवा में पार्टिकुलेट की मात्रा बढ़ने से किशोर समुदाय में आक्रामक मानसिकता बढ़ जाती है। यह अब सर्व मान्य हो गया है कि बढ़ते प्रदूषण के साथ व्यवहार में नकारात्मक परिवर्तन आता है और साथ ही यह मस्तिष्क को भी नुकसान करता है। इससे निर्णय लेने की क्षमता घट जाती है। अभी तक जो भी आंकड़े प्राप्त हुए हैं उनसे यह पता चलता है कि प्रदूषण गलत व्यवहार को बढ़ावा देता है। खासकर नौजवानों में। अमरीका के 9360 शहरों में अध्ययन से  पता चला कि वायु प्रदूषण से अपराध बहुत तेजी से बढ़ते हैं। इससे गहरी चिंता और अवसाद बढ़ता है जिसके कारण आपराधिक और अनैतिक व्यवहार में वृद्धि देखने को मिलती है। निष्कर्ष यह है के जिस शहर की हवा मैं जितना ज्यादा प्रदूषण होगा उस शहर के नौजवानों में आपराधिक प्रवृत्ति उतनी ज्यादा होगी।
अब बात आती है हमारे शहर कोलकाता की।  कोलकाता बहुत तेजी से प्रदूषण के गिरफ्त में फंसता जा रहा है ।यहां हवा की गुणवत्ता में भारी गिरावट आई है। 2010 से 13 के बीच के आंकड़ों में देखा गया है की हवा में तैरते कणों की मात्रा में 61% की वृद्धि हुई है। खासतौर पर नाइट्रोजन की मात्रा लगभग दुगनी हो गई है ।आंकड़े बताते हैं कि   औसत कोलकाता वासी 2 से 3 गुना ज्यादा प्रदूषित हवा रोज अपने फेफड़े में भरता है ।सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट द्वारा  30 जनवरी 2016 को सम्पन्नकिए गए एक अध्ययन के मुताबिक हर कोलकाता वासी प्रदूषण की चपेट में है। गाड़ियों से निकलता ज़हरीला धुआं  एक नई चुनौती है और इससे निपटने के लिए कलकत्ते को बहुत कुछ करना होगा ।अगर कोलकाता में पिछले 2 वर्षों के अपराध के आंकड़े देखें तो पता चलेगा 31 जनवरी 2016 से अब तक यहां अपराधों की दर बढ़ी है और लगातार बढ़ रही है। खासतौर पर नौजवानों में आक्रामकता में वृद्धि पाई गई है। इसके चलते वे अपने साथियों या आसपास के लोगों पर हमले करते देखे जा रहे हैं। खासतौर पर जब जब प्रदूषण बढ़ता है तब तक महानगर में हमलों की घटना भी बढ़ती हुई देखी गई है। दुर्गापूजा,दीपावली या इसतरह के अन्य अवसरों के दौरान दर्ज अपराधों के आंकड़े इसके सबूत हैं। यह केवल मध्यवर्ग ही नहीं गरीब और अमीर दोनों वर्गों में होता देखा गया है। डॉक्टरों का मानना है कि खराब गुणवत्ता वाली हवा में सांस लेने से तनाव पैदा करने वाले हार्मोन या कॉर्टिसोल में वृद्धि होती है। इससे इंसान में जोखिम उठाने की क्षमता बढ़ जाती है। इस वजह से प्रदूषित हवा में सांस लेने से अपराध के मामले बढ़ने लगते हैं। इससे साफ जाहिर है कि अगर प्रदूषण को नियंत्रित किया जाए तो अपराध को भी किसी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है। अगर ऐसा नहीं हुआ तो अपराध की वृद्धि का एक अंतहीन सिलसिला शुरू हो जाएगा और नगर वासियों पर जोखिम बढ़ता जाएगा। ब्रोकन विंडो थ्योरी के अनुसार अव्यवस्था और आपराधिक व्यवहार और भी अव्यवस्था और आपराधिक व्यवहार जन्म देने का कारण बनते हैं। इस से साफ पता चलता है कि प्रदूषण से सिर्फ स्वास्थ ही नहीं खराब होता या पर्यावरण पर ही उसका असर नहीं होता है बल्कि यह अपराध के रूप में एक सामाजिक समस्या भी पैदा करता है । विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के हर 10 आदमी मे से 9 लोग जहरीली हवा में सांस लेने के लिए मजबूर हैं ।अभी इस बात पर शोध नहीं हो सका है प्रदूषक स्वास्थ्य को किस किस तरह से प्रभावित करते हैं। अभी अध्ययन किया जाना बाकी है कि प्रदूषण का असर लिंग, आयु ,आय वर्ग और भौगोलिक स्थिति पर क्या होता है । प्रदूषण का असर हमारे मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ रहा है ।  भविष्य में अपने समाज को अपराध या अन्य दुर्गुणों से मुक्त करना है तो हमें प्रदूषण को रोकने के लिए अपनी तरफ से पहल करनी होगी वरना आने वाले दिन खतरनाक हो सकते हैं।

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