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Monday, November 5, 2018

कोलकाता में ट्रैफिक जाम और उसका अर्थशास्त्र

कोलकाता में ट्रैफिक जाम और उसका अर्थशास्त्र


इन दिनो त्योहार का मौसम चल रहा है और और हमारे "आनंद नगर( सिटी ऑफ जॉय) " में सबसे बड़ी समस्या सड़कों पर यातायात के जाम की है। सेंटर फॉर अर्बन स्टडीज के आंकड़े के मुताबिक शहर में इन दिनों सुबह और शाम के एक- एक घंटे में सिर्फ चुनिंदा सड़कों पर 74 हजार 78 रुपयों की हानि होती है। यह आकलन सुबह के नौ बजे से दस बजे और शाम के 6 बजे से सात बजे की बीच का है।त्योहार के दिनों में हानि और ज्यादा बढ़ जाने का अनुमान है क्योंकि सारे दिन और शाम के कुछ घंटों तक महानगर में बाजार खुले रहते हैं तथा लोगों द्वारा खरीदारी चलती रहती है। बॉस्टन कंसलटेंसी ग्रुप के एक सर्वे के मुताबिक देश के सिर्फ चार साहरों में जाम के कारण हर सााल 1.47 लाख करोड रुपयों का नुकसान होता है। यही नहीं जाम में फंसी गाड़ियों से निकलने वाला जहरीला धुआं कैसर जैसी बीमारी पैदा करता है। जो गाड़ियां डीजल से चलती हैं वे धएं के साथ छोटे-छोटे कण भी छोड़ती हैं, यह सेहत के लिये बेहद खतरनाक है। जिन इलाकों में ज्यादा टैफिक जाम होता है उन इलाकों के बाशिंदों में सांस की बीमारी शिकायतें पायी गयीं है। गाड़ियों से निकलने वाले धुएं से नाइट्रोजन आक्साइड और सल्फर डाई ऑक्साइड जैसे एसिड निकलते हैं इनसे वनस्पतियों और जल को भी खतरा पैदा हो जाता है। यही नहीं, जाम के कारण चालकों में तनाव बढता है जिससे उनकी मानसिक िस्थति का संतुलन बिगड़ने लगता हे जो दुर्घटना का कारण बन सकता है।   

        महानगर में इतनी ज्यादा भीड़ का कारण खरीदारी और व्यवसाय की गरज से पड़ोसी राज्यों से आये लोग हैं। चूंकि अन्य महानगरों के मुनाबले कोलकाता में सड़क के लिये जगह बहुत कम है ओर इसके साथ ही विक्रेता सड़कों पर दुकान लगा देते हैं जिससे यातायात और धीमा हो जाता है। यह जानकर हैरत होती है कि महनगर में सड़क के लिये महज 6 प्रतिशत जगह है। इस जगह पर भी अगर दुकान लगा दी जाय तो संकट की कल्पना आसानी से की जा सकती है। सड़क पर लगी दुकानों को हटाने से सामाजिक, राजनीुतिक ओर आर्थिक समस्या उत्पन्न होने की प्रबल आशंका है। सड़कों पर फ्लाई ओवर्स बनाने से समस्या थोड़ी ण्कम हो सकती है पर उसके साथ भी कई मुश्किलें हैं। सबसे बड़ी मुश्किल है फ्लाई ओवर बनायी जाने वाली जगहों पर बसे लोगों को हटा कर उन्हें दूसरी जगह बसाना। दूसरी तरफ शहरी मध्य वर्ग की आमदनी बढ़ने से सबमें अपनी गाड़ी खरीदने की चाह बढ़ती जा रही है लिहाजा निजी गाड़ियों की तादाद भी बढ़ रही है। अब यातायात का संकट किसी शहर में तब और बढ़ जाती है जब काम पर जाने वाले लोग सार्वजनिक वाहन का इस्तेमाल न कर अपनी गाड़ी का उपयोग करने लग जाते है। इन दिनों निजी वाहन पर निर्भरता तेजी से बढ़ रही है। आंकड़े बताते हैं कि शहर में मोटर कार की संख्या दोपहिया वाहनों से ज्यादा हो गयी है। सन 2008 में जहां शहर के मात्र 11 प्रतिशत लोगों के पास कार थी वह अब बढ़ कर 24.3 प्रतिशत हो गयी है। मोटर कार और दोपहिया वाहन सड़क का अदिाकांश हिस्सा कब्जा करते हैं। दिलचस्प तो यह है कि चुनिंदा सड़कों पर 40 प्रतिशत मोटर कारें चलतीं हैं और उससे शहर के महज 4 प्रतिशत यात्रियों की यात्रा की जरूरतें पूरी होती हैं। यही नहीं शहार में चलने वाली कुल कारें महज 6 प्रतिशत यात्रियों के उपयोग में आतीं हैं जबकि वह 29 प्रतिशत सड़क को घेरे रखतीं हैं जबकि 76 प्रतिशत लोग बसों से यात्रा करते हैं ओर उन्हें चलने के लिये केवल 32 प्रतिशत जगह मिलती है। अधिकृत आंकड़ों के मुताबिक 2012 में शहर में 4 लाख 45 हजार मोटर कारें थींी जो अब और ज्यादा हो गयीं होंगी। एक कार लगभग 150 वर्ग फुट जगह घेरती है ओर कम से कम पार्किंग के लिये दो जगहें- एक घर में दूसरे कार्यस्थल पर। इसमें लगभग 500 वर्गफुट जगह लगती है। लोगों द्वारा गाड़ियां खरीदने की चाह से शहर में जगह घटती जा रही है ओर इससे जाम और बढ़ता जा रहा है। यातायात की आदतों और प्राथमिकताओं के बारे में हमारें शहर में कोई अध्ययन नहीं हो सका है जिसके कारण सभी तथ्यों के आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। यही नहीं कोलकाता की सड़के बहुउद्देशीय हैं ओर इस पर मोटर वाहन के अलावा अन्य वाहन भी चलते हैं तथा पार्किग के लिये जगह घेरते हैं। ऐसे वाहन मोटर गाड़ियों रफ्तार को बाधित करते हैं। कोलकाता में वाहनों के धीमे चलने का मनोवैज्ञानिक कारण है कि शहर सदा सुस्त रहता है और जब काम के चरम घंटों में ट्रैफिक जाम के कारण और सुस्त हो जाता है। इस जाम और धीमे पन से शहर में जीवकिी गुणवत्ता और अर्थव्यवस्था दोनों पर खराब असर पड़ता है। यही नहीं जाम के कारण ज्यादा तेल जलता है जिसका सीधा प्रभाव देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। जैसा देखा जा रहा है उससे लगता हे कि भविष्य में जाम की समस्या ओर बढ़ेगी। इसका कारण है शहर के विकास के साथ मोटरगाड़ियों की बड़ती तादाद। लेकिन अस अनुपात में यदि आर्थिक विकास हो ओर शहरी यातायात सुविधाएं बड़ायी जायं तो इस समस्या से निजात पाया जा सकता है।     

     

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