भीतर के दुश्मनों से निपटना जरूरी
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल बहुत कम बोलते हैं ,विशेष तौर पर सार्वजनिक समारोहों में तो बोलते ही नहीं हैं। लेकिन ,जब वे बोलते हैं लोग सुनते हैं। अभी कुछ दिन पहले सरदार पटेल स्मारक व्याख्यान में उन्होंने चेतावनी दी कि देश को भीतर के दुश्मनों से खतरा है ,यह खतरा बाहर के दुश्मनों से कहीं ज्यादा है। उन्होंने कहा कि ,कमजोर लोकतंत्र बहुत ही मृदु शक्ति में बदल जाता है। भारत ऐसी मृदु शक्ति नहीं बनना चाहता। कम से कम अगले कुछ वर्षों के लिए यह कठिन फैसलों के लिए बाध्य है । राष्ट्रीय आर्थिक, सामाजिक और सामरिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अगले 10 वर्षों के लिए भारत में बहुत ही स्थाई और फैसलाकुन सरकार की जरूरत है। उन्होंने कहा कि एक मजबूत सरकार देश के हितों को ज्यादा अच्छे ढंग से पूरा कर सकती है, जबकि गठबंधन वाली ढुलमुल सरकार ऐसा नहीं कर सकती है। वह क्षेत्रीय ,जातीय और सांप्रदायिक हितों के प्रभाव में होती है।
हो सकता है कि यह एक राजनीतिक टिप्पणी हो जैसा कि कोई टिप्पणी कारों ने कहा है। लेकिन इसके साथ एक शर्त है कि हर गठबंधन वाली सरकार कमजोर नहीं होती और हर बार बहुमत वाली सरकार बहुत ताकतवर नहीं होती। शीर्ष पर जो नेतृत्व होता है वहीं तय करता है क्या हो और क्या नहीं हो। भारत का दुर्भाग्य है उसके भीतर बहुत से दुश्मन छिपे हैं। कुछ के बारे में हम जानते हैं कुछ के बारे में नहीं जानते। जैसे, माओवादी, इस्लामी आतंकवादी इत्यादि हैं ।यह लोग सुरक्षाबलों और नागरिकों पर हमले करते हैं। लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जो पर्दे के पीछे से काम करते हैं। इसलिए महत्वपूर्ण है कि हम अपने भीतर के दुश्मनों को जानें और खास करके उन लोगों को जो सरकार की नीतियों के बहुत कठोर आलोचक हैं। एक लोकतंत्र में सरकार और मीडिया में सदा छत्तीस का आंकड़ा होता है । यह लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिए जरूरी है।यह काम अफसरों और प्रधानमंत्री का है कि इसे समझें। बेशक भारत में मीडिया के पक्षपात को लेकर सरकार को चिंतित नहीं होना चाहिए । गढ़ी हुई खबरें जनता और बाजार में जांच के बाद टिकती नहीं हैं। इसके मुकाबले के लिए सरकार को चाहिए कि वह नियमित रूप से सही ढंग से महत्वपूर्ण मसलों पर सूचनाएं मुहैया कराए। इससे गलत पत्रकारिता और जानबूझकर शुरू की गई सक्रियता का पता चल जाएगा और उन्हें सजा मिल सकती है। गलत पत्रकारिता को उसके पाठक सजा दे देंगे और जानबूझकर शुरू की गई सक्रियता को जनता के विचार सजा देंगे। नरेंद्र मोदी सरकार अपनी बात कहने और सहभागी बनने के मामले में बहुत सफल नहीं है । इसका कारण है कि गलत बात को चुनौती नहीं दी जा रही है और उसके प्रभाव से नाकामयाबी हो रही है । अजीत डोभाल ने भीतर के दुश्मनों से चेतावनी दी और यह स्पष्ट किया उनका संकेत मीडिया या विपक्ष नहीं है। दोनों को आलोचना करने की पूरी आजादी है। भारत ने लोकतंत्र के साथ इस अनुबंध को स्वीकार किया है। कार्यकर्ता भी लोकतंत्र के लिए आवश्यक हैं लेकिन यह आवश्यक होना तब तक ही सही है जब तक वह हिंसा को बढ़ावा नहीं देते या ऐसा कुछ नहीं करते जिससे हिंसा भड़के । हमारे भीतर जो दुश्मन हैं उनसे लड़ने की आवश्यकता है। बाहर के दुश्मनों से लड़ने की जितनी जरूरत है उतनी ही भीतर के दुश्मनों से भी लड़ने की है।क्योंकि उन्हें बाहर से ही कानूनी आर्थिक और अन्य तरह की सहायता मिलती है। कई वर्षों से भारतीय समाज के प्रमुख तत्व विकृत हो गए हैं।अफसर, पत्रकार ,कार्यकर्ता, राजनयिक, खुफिया अधिकारी और पूर्व सेना अधिकारी सब के सब इस विकृति में शामिल हैं। उनको हम आसानी से देख सकते हैं।
उदाहरण के लिए भारतीय पत्रकारों के एक समूह को पाकिस्तान की कुख्यात खुफिया एजेंसी इंटर सर्विसेज इंटेलिजेंस किसी छद्म संस्था के बैनर तले अधिकृत कश्मीर में ले जाएगी और तब वे पत्रकार उनकी बात करेंगे, उनकी जबान में बोलेंगे। ऐसे दौरों के कुछ दिन के बाद ही भारतीय अखबारों में खबरें आएंगी जिसमें अधिकृत कश्मीर में लोगों के बारे में प्रशंसा होगी। यह गूढ़ संदेश है। इससे भारतीय सुरक्षा हितों को भारी हानि पहुंचेगी। इसी तरह से हो सकता है कि आई एस आई का कोई छद्म संगठन विदेश के किसी स्थान पर पूर्व सेना अधिकारियों और रॉ के पूर्व अधिकारियों तथा विकृत सोच वाले पत्रकारों की बैठक आयोजित करें। इस तरह की सुनियोजित बैठकों के बाद किताबें आएंगी, अखबारों में खबरें आएंगी और उसके बाद हमारे अकेडमिक्स और कार्यकर्ता कश्मीर में भारत के क्रूर कब्जे की बात उठाएंगे। विदेशी मीडिया इसे प्रसारित करेगा। डोभाल ने कहा कि राष्ट्रवाद के दो मायने हैं ।पहला हिटलर वाला और दूसरा महात्मा गांधी वाला, जो अहिंसक और साम्राज्यवाद विरोधी है। दक्षिणपंथी राजनीतिज्ञ बात करते हैं। वे हिंदू पुनरुत्थान की बात करते हैं। देश की 80% आबादी जातीयता और क्षत्रियता में उलझी हुई है। ऐसे मौकों पर देश को ज्यादा आत्मविश्वास का प्रदर्शन करना चाहिए। शिकायत का भाव गुस्सा पैदा करता है जो विनाशक और पराजित करने वाला है। उभरती हुई महाशक्ति के लिए यह बेकार है। वह मुल्क जिसमें आत्मविश्वास है, वह विविधता को भी समायोजित कर लेता है। पर्दे के पीछे छिपे दुश्मन को भांप लेता है।
डोभाल की बात बहुत महत्वपूर्ण है। देश की जांच संस्था सीबीआई के दो अफसरों के बीच जो चल रहा है वह तो सिर्फ छोटा सा उदाहरण है। प्रधानमंत्री कार्यालय इसे सुलझाने में कामयाब नहीं हो पा रहा है। वित्त मंत्रालय अलग उलझा हुआ है। एयरसेल मैक्सिस जैसे संवेदनशील मामलों में अभी तक चार्जशीट नहीं दी गई और इससे रोकने वाले हाथ भारतीय हैं। इसमें विदेशी हाथ नहीं है। भारतीय हाथ या देश के भीतर के दुश्मन ज्यादा खतरनाक हैं। सरकारी संस्थाओं के लोग आर्थिक प्रलोभन का शिकार हो जाते हैं। अगर प्रधानमंत्री मोदी भीतर के दुश्मनों से नहीं निपटते हैं तो वे केवल एक ही बार के प्रधानमंत्री बन कर रह जाएंगे ।
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