अयोध्या में शक्ति प्रदर्शन: भीगे पटाखे की तरह फुस्स
अयोध्या में आज से 4 दिन पहले यानी 25 नवंबर को विश्व हिंदू परिषद का शक्ति प्रदर्शन भीगे पटाखे की तरह फुस्स हो गया। विश्व हिंदू परिषद ने दावा किया था कि वह 25 नवंबर को अयोध्या में दो लाख लोगों को इकट्ठा करेगा। साथ ही वह इस अवसर पर भाजपा के लिए हिंदू मतदाताओं को कोई संदेश भी नहीं दे सका। इसमें और भी खराब हुआ वह कि उनके प्रतिद्वंदी शिवसेना के प्रमुख उद्धव ठाकरे ने एक दिन पहले ही 24 नवंबर को प्रदर्शन कर मैदान मार लिया। हालांकि उनके प्रदर्शन में बहुत कम लोग थे। अगर संख्या बल को माने तो उद्धव ठाकरे के इस प्रदर्शन में विश्व हिंदू परिषद की धर्म सभा में जमा लोगों से लगभग एक दहाई लोग थे ।धर्म सभा में अनुमानित तौर पर पचास हजार कार्यकर्ता उपस्थित हुए थे । ठाकरे ने इस अवसर एक नया नारा दिया कि" हर हिंदू की यही पुकार, पहले मंदिर तक सरकार" और यह लोगों की जुबान पर चढ़ गया। विश्व हिंदू परिषद का नारा "राम लला हम आएंगे मंदिर वहीं बनाएंगे", इस नारे के सामने फीका पड़ गया। ठाकरे ने भाजपा को चुनौती दी कि वह मंदिर बनाने के लिए एक निश्चित तारीख तय करे। उनकी यह चुनौती लोगों के मन में बैठ गई । जो लोग यहां जमा हुए थे उन्हें उम्मीद थी कि भाजपा और विहिप बोलने के अलावा कुछ करेगी भी। लेकिन कुछ नहीं हुआ। ठाकरे ने मोदी पर तंज कसते हुए कहा कि "केवल 56 इंच का सीना होना ही काफी नहीं है, उसके अंदर एक दिल भी होना चाहिए, जिसमें एक मर्द जीता हो।" उन्होंने यह भी कहा कि अगर भाजपा मंदिर बनाने के लिए कोई कानून बनाती है तो यकीनन शिवसेना उसका समर्थन करेगी। शिवसेना और विहिप के बीच एक समान विंदु यह था कि दोनों मंदिर के लिए कानून बनाने की मांग कर रहे थे। दोनों में से कोई भी राम जन्मभूमि - बाबरी मस्जिद अदालती झगड़े नहीं जाना चाहता था।
2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आदेश दिया था कि विवादास्पद जमीन को तीन हिस्से में बांट दिया जाए । इसका दो हिस्सा मंदिर बनाने के लिए दे दिया जाए और एक हिस्सा मस्जिद बनाने के लिए। दोनों पक्षों ने इसके विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में अपील की। विहिप की धर्म सभा में देश के कोने-कोने से संत आए थे। लेकिन, यह सभा निश्चित समय से एक घंटा पहले खत्म हो गई क्योंकि यहां मौजूद स्वयंसेवक धीरे धीरे रवाना होने लगे। यह स्पष्ट था कि विश्व हिंदू परिषद , राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ या अन्य हिंदू संगठनों के पास कहने के लिए कुछ नया नहीं था। इस आयोजन के मुख्य आयोजक विश्व हिंदू परिषद ने एक औपचारिक प्रस्ताव तक नहीं पारित किया। हालांकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह कार्यवाह ने चेतावनी दी कि " मंदिर के निर्माण होने तक न चैन से बैठेंगे ना चैन से बैठने देंगे।" लेकिन ,यहां यह स्पष्ट नहीं हो सका कि वह किसे यह चेतावनी दे रहे थे। विश्व हिंदू परिषद और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेताओं तथा संतों ने यह बार-बार कहा कि मंदिर के लिए उन्हें पूरी जमीन चाहिए और वहां उपस्थित कई वक्ताओं ने बहुत जोरदार शब्दों में कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट का आदेश उन्हें मान्य नहीं है।
राम जन्म भूमि ट्रस्ट के प्रमुख महंत नृत्य गोपाल दास ,जिन्हें अयोध्या का बहुत प्रमुख संत माना जाता है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति नरम रुख अपनाते हुए देखे गए। उन्होंने कोई मांग प्रस्तुत करने के बदले प्रधानमंत्री से यह कहकर अपील की कि " मोदी जी को चाहिए कि जन भावनाओं को देखते हुए जल्द से जल्द श्री राम जन्मभूमि पर मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त करें।" महंत रामभद्राचार्य ने लोगों को यह आश्वस्त करने की कोशिश की कि जो भी बन पड़ेगा वह मोदी जी मंदिर के लिए करेंगे। उन्होंने दावा किया कि मोदी जी के मंत्रिमंडल के एक वरिष्ठ सदस्य ने कहा है कि संसद के अगले सत्र में मंदिर के लिए कुछ न कुछ ठोस होगा। एक अन्य संत स्वामी हंस देवाचार्य ने मोदी की प्रशंसा करते हुए कहा कि "मैं कह सकता हूं दावे के साथ कि अच्छे दिन आए हैं । एक बात जान लो कि केंद्र में अगर कोई और सरकार होती और प्रांत में कोई और सरकार होती तो क्या हम सब यहां होते? क्या आप यहां आते? हम सब जेल में होते।"
यहां एक बहुत ही महत्वपूर्ण तथ्य जानने को मिला की अयोध्या मामले से दूरी बनाने की भाजपा की हरचंद कोशिश के बावजूद भाजपा और उसके हिंदू संगठनों में स्पष्ट मेलजोल और प्रगाढ़ संबंध प्रतीत हो रहा था। स्पष्ट रूप से इस पूरे आयोजन को उत्तर प्रदेश के गेरुआ धारी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और केंद्र सरकार का वरद हस्त प्राप्त था । कुछ गेरुआ धारी नेताओं द्वारा खुल्लम खुल्ला चेतावनी और गरम रुख एक तरह से सुनियोजित था और इस पूरे कार्यक्रम का हिस्सा था। इसके बावजूद शिवसेना ने मोदी जी को ललकारने का अपना उद्देश्य पूरा कर लिया । ठाकरे ने तो यहां तक कह दिया कि "कुंभकर्ण साढे चार वर्षों से सो रहा है।" ठाकरे के आलोचकों ने यह सवाल किया कि भाजपा के सहयोगी के रूप में साढे 4 वर्ष तक शिवसेना ने क्या किया? लेकिन सच तो यह है कि भाजपा और शिवसेना दोनों ने मंदिर का मसला तभी उठाया है जब चुनाव होने वाले हैं। यहां ना तो सरकार और ना ही कोई हिंदू संगठन या कोई भी पार्टी सुप्रीम कोर्ट में जल्दी सुनवाई के लिए याचिका देने को भी उपलब्ध नहीं है । जो अनुरोध किया गया वह अक्टूबर में किया गया । जब मुख्य न्यायाधीश ने प्राथमिकता के आधार पर इस मामले की सुनवाई से इंकार कर दिया और इसे जनवरी में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया । कई लोग यह मानते हैं कि अयोध्या में रविवार को जो हुआ वह ना केवल हिंदुओं को अपने पक्ष में लाने का प्रयास है बल्कि परोक्ष रूप से सर्वोच्च न्यायालय को यह बताना है कि इस मामले को लेकर हिंदू बेचैन हैं। यही कारण है हिंदू संगठनों ने चेतावनी दी है कि वह फिर से 1992 वाली स्थिति पैदा कर देंगे। उल्लेखनीय है कि 6 दिसंबर 1992 को कारसेवकों ने बाबरी मस्जिद को ढाह दिया था। अयोध्या का शोर शराबा तभी शुरू हुआ जब सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई प्राथमिक स्तर पर करने से इंकार कर दिया।
शिव सेना के प्रमुख उद्धव ठाकरे ने आनन-फानन में अयोध्या का अपना कार्यक्रम घोषित कर दिया था, उसके बाद अयोध्या में एक व्यापक प्रदर्शन करने का कार्यक्रम विश्व हिंदू परिषद ने घोषित किया। लोगों की धारणा यह थी कि विश्व हिंदू परिषद का कार्यक्रम शिवसेना के कार्यक्रम पर भारी पड़ जाएगा। इस के साथ उत्तर प्रदेश सरकार भी थी। सरकार ने शिव सेना को सार्वजनिक रैली करने की इजाजत देने से इनकार कर दिया था। उद्धव ठाकरे अयोध्या के लक्ष्मण किला में मीटिंग करके संतुष्ट थे। यहां उन्होंने कुछ संतों से मुलाकात की और शिवसेना के कार्यकर्ताओं को संबोधित किया । उन्होंने उसी शाम सरयू के तीर पर आरती भी की और उसके बाद अस्थाई राम जन्मभूमि मंदिर में पूजा भी की। लेकिन शाम को विहिप और भाजपा इस आयोजन पर शिवसेना भारी पड़ गई। जहां तक मंदिर का सवाल है दोनों पक्ष भीगे पटाखे की तरह फुसफुसकर रह गए। जैसी उम्मीद थी वैसा कुछ नहीं हुआ।
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