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Wednesday, March 13, 2019

राष्ट्रीयता का मुद्दा छाया रहेगा चुनाव पर

राष्ट्रीयता का मुद्दा छाया रहेगा चुनाव पर

सरहदों पर तनाव है क्या 
जरा पता तो करो 
मुल्क में चुनाव है क्या
चुनाव आयोग ने देश में लोकसभा चुनाव 2019 के लिए तारीखों की घोषणा कर दी है। राजनीतिक दल चुनावी तैयारी में  जुट गए हैं ।मीडिया और सोशल मीडिया में इस बात की गहन चर्चा है कि पूरे चुनावी माहौल में कौन से मसले छाए रहेंगे। बहुतों को याद होगा 2014 में विकास और भ्रष्टाचार चुनाव का मुद्दा था। यह मुद्दा उस चुनाव के दौरान  देशभर में छाया रहा। प्रधानमंत्री पद के दावेदार नरेंद्र मोदी ने इसी को प्रमुखता दी अपने सभी भाषणों में।  इस बार वह मुद्दा सुनाई नहीं पड़ रहा है। इस बार के चुनाव में सरकार राष्ट्रीयता और राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे को लेकर जनता के सामने आएगी।  इसका संकेत इस बात से भी मिलता है  कि  भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने  मंगलवार को  एक साक्षात्कार में कहा कि मोदी सरकार ही  राष्ट्रीय सुरक्षा की चुनौतियों का सामना कर सकती है तथा तीव्र आर्थिक विकास को हवा दे सकती है। उधर अहमदाबाद में कांग्रेस कार्यकारी समिति ने अपने संकल्प पत्र में मंगलवार को कहा कि मोदी सरकार अपनी असफलताओं को छुपाने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा का पर्दे की तरह इस्तेमाल कर रही है। और भी मसले हैं । बहुत संभावना है राजनीतिक दल अपने घोषणा पत्रों में और भी कई मुद्दे जोड़ेंगे लेकिन यह दो मुद्दे छाए रहेंगे। इतिहास देखेंगे तो पाएंगे राष्ट्रवाद के हवाले से राष्ट्रीय सुरक्षा को चुनाव  का मुद्दा पहली बार बनाया गया है । भाजपा और उसके नेतृत्व वाली सरकार अपने पूरे कार्यकाल के दौरान राष्ट्रवाद का ढोल पीटती रही और जिसने इस पर उंगली उठाई उसे पाकिस्तान समर्थक करार दिया गया या फिर उस की खिल्ली उड़ाई गई। कई बार तो विपक्षी नेताओं के बयानों को तोड़ मरोड़ कर सोशल मीडिया के जरिए देश भर में ऐसा प्रचारित किया गया कि वह राष्ट्र विरोधी है । पुलवामा हमले के बाद राष्ट्रवाद का यह मुद्दा प्रोपेगेंडा का जरिया बन गया। इसके बाद बालाकोट हमले को सामने रखकर भाजपा ने राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति सरकार के कड़े रुख को भी हथियार बनाया।  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि एक लीडर और फैसला देने वाले ऐसे नेता के रूप में पेश की गई जो भारत के  स्थाई दुश्मन पाकिस्तान को सबक सिखा सकता है। जानकारों का मानना है कि विपक्ष का महागठबंधन यदि हो भी गया तो वह चुनावी विमर्श में राष्ट्रीय सुरक्षा बाधा को नहीं पार कर सकता है। 
       विपक्ष के पास सबसे बड़ा हथियार बेरोजगारी है। यद्यपि बेरोजगारी हमेशा कायम रही है लेकिन इस बार मामला ही कुछ दूसरा है। 2014 में मोदी जी ने बेरोजगारी को खत्म करने या नहीं तो कम करने का वादा किया था। लेकिन रोजगार क्षेत्र के रिपोर्ट बताते हैं कि मोदी सरकार के कार्यकाल में रोजगार की स्थिति सबसे खराब रही और यह विपक्ष के पास सबसे मजबूत मुद्दा है मोदी सरकार को जनता के बीच घेरने का।  जनता के एक बहुत बड़े भाग ने  यह स्वीकार कर लिया है कि मोदी जी ने हर साल 2 करोड़ नौकरियां सृजित करने का वादा किया था  वह वादा पूरा नहीं कर सके। वे पर्याप्त रोजगार नहीं मुहैया करा सकते । सरकारी पक्ष कर्मचारी भविष्य निधि संगठन और मुद्रा योजना के आंकड़ों  के आधार पर बताते हैं कि लाखों नौकरियां सृजित की गई है लेकिन जनता इस  को स्वीकार नहीं कर पा रही है। विपक्षी दल चुनाव के दौरान इस मनोदशा का लाभ उठाने से  चूकेंगे नहीं। उनका दावा है यह आंकड़े गलत हैं।
    विपक्ष के लिए नोट बंदी और जीएसटी की कठिनाइयां भी  मसले हो सकते हैं । 2014 में "घर-घर मोदी हर-हर मोदी" के नारे हर घर तक पहुंचाने में ग्रामीण भारत और किसानों की भूमिका बहुत बड़ी रही है।  5 साल के बाद किसान सरकार से असंतुष्ट दिख रहे हैं। उन्हें फसल के उत्पादन पर लाभ तो दूर लागत भी नहीं मिल पा रही है और कर्ज़ बढ़ता जा रहा है। जिस तरह से गोरक्षा को मुद्दा बनाया गया है उससे गौ रक्षकों के भय से उत्तर भारत में  लोगों ने  खासकर किसानों ने अनुपयुक्त गोवंश को आवारा छोड़ दिया।  जिससे  आवारा मवेशियों संख्या काफी बढ़ गई । यह आवारा मवेशी जहां फसलों को बर्बाद कर रहे हैं वहीं दुर्घटनाओं को भी बढ़ावा दे रहे हैं । इसे लेकर किसान और शासन के बीच एक नया टकराव शुरू हो गया है। अब चुनाव का परिणाम ही बता सकता है कि किसान सरकार से कितने नाराज हैं । लेकिन यह तय है कि इस मसले को लेकर विपक्ष सरकार को घेरने से मानेगा नहीं।
       2014 के पहले देश में 30 सालों तक गठबंधन की सरकार रही। 30 साल के बाद बहुमत की सरकार बनी।  282 सीटों वाली इस सरकार को मजबूत सरकार बताया जा रहा है और इसके पहले वाली सरकारों को मजबूर सरकार कहा जा रहा है । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महागठबंधन को महामिलावट के रूप में प्रस्तुत किया और कहां की गठबंधन की सरकार में कैसे काम ( भ्रष्टाचार)होता है यह जनता को मालूम है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा और अर्थव्यवस्था में प्रगति के लिए मजबूत सरकार जरूरी है। मोदी सरकार का दलितों और आदिवासियों के मामले में रुख को लेकर भी आलोचना होती है लेकिन भाजपा समर्थक वर्ग इस नहीं मानता लेकिन यह सच है कि विगत 5 वर्षों में कई मौकों पर दलित आदिवासी समाज में मोदी सरकार के खिलाफ भारी गुस्सा देखा गया। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है की 2014 वाले आम चुनाव में दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों का जितना वोट मोदी जी को मिला था इस बार शायद ना मिल पाए।

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