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Monday, March 25, 2019

आज की राजनीति के नए योद्धा

आज की राजनीति के नए योद्धा

राजनीति हमारे देश में आरंभ से युद्ध स्तर पर ही लड़ी जाती रही है। बेशक उस समय  उसका स्वरूप दूसरा होता था लेकिन आज वह स्वरूप बदल गया है। हम में से बहुतों को 1974 का वाह वक्त याद होगा जब धर्मवीर भारती ने लिखा था,
हर खासो-आम को आगह किया जाता है
कि खबरदार रहें
और अपने-अपने किवाड़ों को अन्दर से
कुंडी चढाकर बन्द कर लें
गिरा लें खिड़कियों के परदे
और बच्चों को बाहर सड़क पर न भेजें
क्योंकि
एक बहत्तर बरस का बूढ़ा आदमी अपनी काँपती कमजोर आवाज में
सड़कों पर सच बोलता हुआ निकल पड़ा है !
...और इसके बाद जयप्रकाश नारायण का "संपूर्ण क्रांति" का नारा गूंज उठा। देश के छात्र कवि और लेखक इससे जुड़ गए। इंदिरा गांधी की सरकार को गद्दी छोड़नी पड़ी। चुनाव में उसे भारी पराजय मिली। लेकिन, संपूर्ण क्रांति कभी नहीं आई। आज एक नया नारा गूंज रहा है वह है "चौकीदार" का। कोई यह नहीं सोचता कि हमारे देश की जेलों में ज्यादा अपराधी बंद हों। सब चौकीदार की बात कर रहे हैं और अपराधी खुला घूम रहे हैं। जयप्रकाश नारायण के जमाने में राजनीति की जंग मूलतः छात्रों ने लड़ी थी।  45 वर्षों के बाद आज 2019 में राजनीति की जंग का मोर्चा देश के प्रमुख बुद्धिजीवियों संभाल लिया है। ये बुद्धिजीवी किसी पार्टी के खिलाफ हैं तो किसी के पक्ष में। बेशक इससे महत्वपूर्ण विचारों पर विमर्श को बल मिलेगा लेकिन इससे इतना शोर होगा कि देश में चुनाव का वातावरण बुरी तरह गर्म हो जाएगा। चुनाव के मौसम आरंभ हो चुके हैं और धीरे धीरे यह  मौसम गर्म होता जा रहा है। बात चल रही है कि अपने 5 साल के कार्यकाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने क्या किया और क्या नहीं। कुछ लोग समर्थन में बाहें चढ़ा रहे हैं तो कुछ लोग विरोध में ताल ठोक रहे हैं कि उसने कुछ नहीं किया। चुनाव का शोर  आरंभ हो चुका है कहा जा रहा है कि पिछले 5 वर्षों में हमारा देश राष्ट्रवाद के बैनर के नीचे एकजुट हो रहा है। तो कुछ लोग कह रहे हैं कि देश का धर्मनिरपेक्ष ताना-बाना छिन्न भिन्न होता जा रहा है और हमारा समाज विभाजित हो रहा है। सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी और उसे चुनौती देने वाली कांग्रेस दोनों मतदाताओं को लुभाने में लगी  हैं। इस बार का चुनाव विचारों और आदर्शों के नाम पर छापामार युद्ध की तरह लग रहा है। अब से पहले जब विचारों की बात आती थी और राज राजनीतिक विमर्श पर चर्चा होती थी तो वामपंथी दल या उस विचारों की ओर झुके हुए लोग भारी पड़ते थे क्योंकि उनके पक्ष में ज्यादा बुद्धिजीवी होते थे।  अब मामला उल्टा होता जा रहा है । दक्षिणपंथी दलों के पक्ष में तेजी से बुद्धिजीवी इकट्ठा हो रहे हैं। विगत 5 वर्षों में जो सबसे बड़ा बदलाव देखा गया है वह है मोदी जी का अभूतपूर्व जनादेश के साथ सत्ता में आना और दूसरा विचारों के आदान-प्रदान के लिए सोशल मीडिया का एक मजबूत तंत्र के रूप में उभरना। सोशल मीडिया के  कारण ही दक्षिणपंथी विचारों की तरफ झुके बुद्धिजीवी वर्ग को अपनी बात कहने का एक सशक्त माध्यम मिल गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुनाव में अपनी योजनाओं को फिर से बता रहे हैं, खासकर, उज्जवला योजना, स्वच्छ भारत मिशन , प्रधानमंत्री जन धन योजना इत्यादि और साथ ही बता रहे हैं कि सरकार का मुख्य उद्देश्य राष्ट्र और राष्ट्र का विकास है। उधर उनके समर्थक  हर खास ओ आम  को यह समझाने में जुटे हैं कि मोदी सरकार आने वाले वर्षों में देश को कहां ले जाना चाहती है। इस उद्देश्य से एक नया ऑनलाइन प्लेटफॉर्म आरंभ किया गया है उसका नाम है "एकेडमिक्स फोर नमो।" इसमें शोधकर्ताओं, फैकल्टी सदस्यों, लेखकों स्तंभकारों और विचारकों को आमंत्रित किया जा रहा है कि वे  आगे आएं तथा नरेंद्र मोदी को अगले 5 वर्षों के लिए समर्थन दें। देश भर के 15 शहरों के लगभग 30 विश्वविद्यालयों के 300 बुद्धिजीवी- जिसमें जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, इंडियन इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलॉजी, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय इत्यादि के सदस्य शामिल हैं- मोदी के समर्थन में खड़े हो गए हैं। वे मोदी जी के बारे में आम जनता के भीतर जो गलत धारणा है और जो नकारात्मक विचार हैं उन्हें अपने लेखों इत्यादि के माध्यम से खत्म करने का प्रयास कर रहे हैं। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के इंटरनेशनल स्टडीज के कई बुद्धिजीवी इसमें शामिल हुए हैं उनका मानना है कि मोदी जी ने विगत 5 वर्षों में जो कार्य किए हैं खासकर उज्जवला योजना, 6 महीने तक वेतन के साथ प्रसव की छुट्टी और सेना में महिलाओं को भर्ती किए जाने का आदेश इत्यादि इसमें प्रमुख हैं। ये ऐसे कदम हैं जिससे महिलाओं का उत्थान होगा। ऐसे प्रयासों से देश के विश्वविद्यालयों में माहौल गर्मा रहा है और  बहस का बाजार गर्म हो रहा है। हो सकता है आगे चलकर यह हिंसक हो जाए। इन बहसों में केवल छात्र ही शामिल नहीं है बल्कि प्रोफेसर भी शामिल पाए जाते हैं।
         इधर जब महागठबंधन का स्वरूप वैसा नहीं हो सका जैसी उम्मीद थी और ना ही मोदी जी के खिलाफ कोई सामान विचार ही सामने आया तो भाजपा ने उन लोगों से संपर्क करना शुरू किया जो लोगों के विचारों को प्रभावित कर सकते हैं । इससे चुनावी विमर्श में उसे काफी लाभ होगा। इस पहल से आरोप-प्रत्यारोप का माहौल व्यापक होता जा रहा है। जहां भाजपा के पक्ष में विचार बनाने की कोशिश हो रही है वहीं दूसरी तरफ उसके विरोध में भी लोग खड़े हो रहे हैं । कुछ लोगों का मानना है कि भाजपा ने देश को जातीय रूप में इतना विभाजित किया है जितना अब तक नहीं किया जा सका है। इसने राजनीतिक स्वतंत्रता से लेकर अर्थव्यवस्था, शिक्षा, संस्कृति सब का भगवाकरण करने की कोशिश की है।
        "एकेडमिक्स फॉर नमो" के लोग देश की जनता के बीच एक सकारात्मक दृष्टिकोण तैयार करने की कोशिश में लगे हुए हैं। आज की राजनीति  के इन नए योद्धाओं से चुनाव में  कितना लाभ और कितनी हानि होगी  यह तो  मतों की गिनती के बाद ही पता चलेगा।

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