सब कुछ ठीक है पर बेरोजगारी घटती नहीं
वैसे तो हमारे देश में राजनीति के कई रंग हैं और इससे भी ज्यादा रंग है किसी तथ्य की आलोचना करने वालों की। सरकार के किसी भी कदम की आलोचना करने वाले आपको चारों तरफ मिल जाएंगे। कुछ लोग जो सरकार के समर्थन में हैं खासकर करके मोदी सरकार के, उन्हें मोदी भक्त करार दे दिया जाता है। वस्तुनिष्ठ स्थिति का विश्लेषण करते बहुत कम लोग देखे जाते हैं। अब जैसे मोदी जी के मैक्रोइकोनामी के सुधार को ही देखें। बेशक उन्होंने इस मोर्चे पर बहुत अच्छा काम किया है। जिस तरह किसी आदमी के सेहत का अंदाजा डॉक्टर्स उसके रक्तचाप उसके खून में शर्करा की मात्रा या कोलेस्ट्रोल के आधार पर लगाते हैं, उसी तरह सरकार के कामकाज का अंदाजा विभिन्न पैमानों से लगाया जाता है। 5 साल पहले जब नरेंद्र मोदी सत्ता में आए थे तो महंगाई की दर दो अंकों में पहुंच गई थी, विदेशी मुद्रा का भंडार घट गया था और 1991 की तरह विरासत में आर्थिक संकट मिला था। नरेंद्र मोदी ने महंगाई दर की समस्या हल कर दी ।उनके सत्ता में आने के बाद महंगाई के आंकड़े घटते गए और आज वह 4 परसेंट पर आकर रुक गए हैं । विदेशी मुद्रा का भंडार भी आज आरामदायक स्थिति में है। राजकोषीय घाटे भी काबू में आ रहे हैं। सरकार ने यह स्थिति लोकलुभावन नीतियों को अपना कर नहीं प्राप्त की है। मोदी सरकार ने मैक्रोइकॉनॉमी के सूचकांकों को काबू में करने के लिए बहुत बड़ी राजनीतिक कीमत चुकाई है। उसकी सबसे बड़ी कीमत तो यह है कि आज सेवा क्षेत्र में मांग घट गई है और रोजगार पर बुरा असर पड़ा है। विपक्ष ने इसे बनाया है। बेशक अगर मोदी सरकार दोबारा सत्ता में आती है तो उसके रास्ते बहुत आसान हो जाएंगे। यह वैसा ही होगा जैसे 2004 के बाद जब यूपीए सरकार आई तो उसके रास्ते सरल हो गए थे । अगर उस वर्ष एनडीए सरकार आती तो उसे भी इसका लाभ मिलता, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। कांग्रेस सत्ता में आई और उसे लाभ प्राप्त हुआ।
हमारे देश की अर्थव्यवस्था की विडंबना यह रही है कि एनडीए सरकार जब आती है तो वह अर्थव्यवस्था के जख्मों पर मरहम लगाती है और यूपीए सत्ता आती है तो उस पर नमक छिड़क देती है। बेशक इस बात को बहुत कम लोग समझते होंगे की मोदी जी की मैक्रो इकोनॉमी के नजरिए की बहुत मजबूत राजनीतिक बुनियाद भी है। इस सफलता के लिए भुगतान संकट को नियंत्रित करना जरूरी होता है और देश भुगतान संकट से दूर रहा है। मोदी जी के साथ भी ऐसा ही हो रहा है। लोकसभा में अपने भाषण के दौरान प्रधानमंत्री ने कहा कि सरकार की सूझबूझ के कारण ही भारत लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था के देशों की सूची से बाहर हो गया। भारतीय शेयर बाजार ऊंचाई पर है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने स्पष्ट कहा है की धूल भरी वैश्विक अर्थव्यवस्था का भारत एक चमकता सितारा है ।राजकोषीय घाटा 3.2% रह गया है। लेकिन वैश्विक मांग कम होने के कारण चालू खाते का घाटा अभी भी एक मुश्किल बना हुआ है। यही नहीं निजी क्षेत्र यहां निवेश नहीं बढ़ा रहा है। इसका कारण है कि बैंक में या कहें बैंकिंग प्रणाली में कर्ज को लेकर भारी परेशानी है बड़े कर्ज चुकाये नहीं गए और उसे एक मसला बना दिया गया है। इससे विकास प्रभावित हो रहा है और रोजगार पर असर पड़ रहा है। यह असर एक राजनीतिक मुसीबत बनी हुई है। मोदी जी के भक्त कह रहे हैं कि हालात सुधर रहे हैं लेकिन इसका अंदाजा तब लगेगा जब हमारे देश के मतदाता आर्थिक नीतियों को ध्यान में रखकर आने वाले दिनों में मतदान करेंगे। यह तो चुनाव के बाद पता चलेगा कि मतदाताओं ने यह स्वीकार किया कि सरकार ने कोई सफलता हासिल की है तो मोदी जी सत्ता में आएंगे लेकिन अभी से यह कहना बेहद मुश्किल है।
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