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Friday, March 15, 2019

राष्ट्र संघ में मसूद अजहर : भारत के लिए सबक चीन के लिए खतरा

राष्ट्र संघ में मसूद अजहर : भारत के लिए सबक चीन के लिए खतरा

चीन ने जिस दिन शिंजियांग में 15 लाख मुसलमानों को  "फिर से समझाने (रीएडुकेशन)" के लिए हिरासत में  लिया उसी दिन राष्ट्र संघ सुरक्षा परिषद में कुख्यात आतंकवादी मसूद अजहर को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित करने के भारत के प्रयास को रोक दिया। 
     चीन के इस प्रयास से बौखलाई भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने कहा पाकिस्तान मसूद अजहर को भारत को सौंप दें । आतंक पर पाकिस्तान की दोहराई गई बात की खिल्ली उड़ाती हुई विदेश मंत्री ने कहा कि पुलवामा के बाद भी ऐसे दोहरे चरित्र के कई उदाहरण हैं। विदेश मंत्री ने कहा कि पाकिस्तान आतंकियों को धन  मुहैया कराता है ।कोई अगर आतंकियों पर हमले करता है तो पाकिस्तान जवाबी कार्यवाही भी करता है।
       यहां एक बात कही जा सकती है कि मोदी सरकार ने अटल बिहारी बाजपेई की सरकार से कुछ नहीं सीखा। अटल जी ने खुलेआम कहा  था कि पाकिस्तान को पीछे धकेलने के लिए सीमा पार क्यों नहीं किया जाए ? यह बात 20 साल पहले 1999 में उस समय हुई थी जब कारगिल का युद्ध चल रहा था। मोदी सरकार सुरक्षा सलाहकारों ने उस समय की फाइलों को शायद पढ़ा नहीं या अखबारों को देखा नहीं, जिसमें विदेश मंत्री जसवंत सिंह को बार बार यह कहते हुए उद्धृत किया गया था कि "इस  महाद्वीप में अब नक्शा बनाने का काम रोक दिया जाना चाहिए।" बाजपेई ,जसवंत सिंह और तत्कालीन सुरक्षा सलाहकार ब्रजेश मिश्रा ने यह तय किया था कि पाकिस्तान को पराजित करने का एकमात्र तरीका है विभाजित करें और शासन करें।" यात्रा व्यापार शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे असैनिक कार्यों से पाकिस्तान के भीतर भारत को इतना लोकप्रिय बना दिया जाए कि वहां की जनता विभाजित हो जाए और पाकिस्तानी सैनिक संगठन को अनसुना करने लगे । मोदी जी ने विगत 5 वर्षों में यह सब नहीं किया।
कुख्यात आतंकवादी  मसूद अजहर  के मामले में चीन  का यह बेपरवाह कदम भारत की व्यावहारिक राजनीति के लिए एक सबक है।  चीन और पाकिस्तान की बिसात पर भारत मोहरा नहीं बन सकता। इसे एक ही रास्ता चुनना होगा कि वह अपनी सुविधानुसार पाकिस्तान से बदला ले ।
उधर आतंकवादी हमलों मामले में दोषी जैश ए मोहम्मद के प्रमुख मसूद अजहर पर पाबंदी के प्रयास भारत द्वारा पिछले एक दशक से किए जा रहे हैं और हर बार चीन इस प्रयास को अवरुद्ध कर देता है।  राष्ट्र संघ परिषद में भारत के प्रयास को अमरीका, इंग्लैंड और फ्रांस समर्थन देते हैं लेकिन चीन इसे अटका देता है । चीन ने इस  बार 13 मार्च को भारत आवेदन को तकनीकी आधार पर अटकाया और सुझाव दिया कि अगले 6 महीने के बाद इस आवेदन को पेश किया जाए और इस बीच भारत कुछ और सबूत इकट्ठे कर ले। इसके पहले भारत ने 2009, 2016 और 2017 में इसी तरह का आवेदन प्रस्तुत किया था। पिछले आवेदन की मियाद 2018 के सितंबर में पूरी हो गई थी। लगभग उसी समय भारत और चीन विशेष बैठक वुहान में हुई थी। उस समय बहुत चर्चा थी की भारत को भारी इससे लाभ मिलेगा। यह लाभ आतंकवादियों, आतंकवाद पर रोक और आपसी संबंधों में भी प्राप्त होगा। पुलवामा की घटना के बाद चीन की प्रतिक्रिया ने इस चर्चा को और बल दिया।
        अजहर पर प्रतिबंध के भारत के प्रयास का प्राचीन द्वारा लगातार विरोध और इस बार 6 महीने की  मोहलत दिए जाने के बाद यह उम्मीद करना कि चीन इसका  समर्थन करेगा एक दिवास्वप्न है।  इसके चलते भारत और चीन के संबंध भी कई क्षेत्रों में शिथिल हो सकते हैं। यही नहीं  ,भारत में चीन के प्रति  जनमत भी प्रभावित होगा। चीन भी इसे समझता है। अब सवाल उठता है कि चीन यह जानते हुए भी ऐसा क्यों कर रहा है? ऐसा लगता है  कि चीन के इस आकलन के पीछे जो नियत है वह है कि चीन का पाकिस्तान में बहुत बड़ा दांव लगा हुआ है और दूसरे वह अपने देश के अलगाववादी मुसलमानों पर नजर रखने के लिए पाकिस्तानी सैनिक खुफिया एजेंसी आई एस आई पर ज्यादा भरोसा करता है ।   इस मंशा से हो सकता है निकट भविष्य में चीन को  लाभ हासिल हो। खास करके पाकिस्तान में चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे में उसकी बहुत ज्यादा पूंजी लगी हुई है और हजारों लोग काम कर रहे हैं यह गलियारा संयोगवश बालाकोट होकर ही गुजरता है , जहां जैश ए मोहम्मद का एक शिविर है । लेकिन दूरवर्ती भविष्य में यह एक जोखिम है और कि इससे ना कामयाबी हासिल होगी। लगभग साल भर पहले अंतरराष्ट्रीय मीडिया में यह खबर थी कि अफगानिस्तान राष्ट्रीय सुरक्षा निदेशालय के भूतपूर्व प्रमुख  अमरुल्लाह सालेह  ने चीन को एक फाइल सौंपी थी जिसमें  यह सबूत थे पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी चीन में सक्रिय उइगर मुस्लिम आतंकियों की न केवल फाइल बना रहा है बल्कि उन्हें गोपनीय सहयोग दे रहा है। इन आतंकियों को वह भविष्य के लिए एक पूंजी मान रहा है।अमरुल्लाह सालेह  ने चीन को सावधान भी किया था कि वह पाकिस्तानी आतंकी वातावरण को बरदाश्त करने  के बदले उसे खत्म करने की सोचे।  लेकिन ऐसा नहीं लगता कि पाकिस्तान इस तरह से सोच रहा है भविष्य में उसके लिए भारी खतरा बन सकता है।
       

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