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Tuesday, March 26, 2019

गरीबों की चिंता या कुर्सी की

गरीबों की चिंता या कुर्सी की

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने लोकसभा चुनाव अभियान के दौरान  सोमवार को  देश की जनता से वादा किया कि वो इस बार गरीबी मिटा कर रहेंगे । गरीबी मिटाने का उनका तरीका होगा कि हर गरीब परिवार को इतनी रकम देंगे कि उसकी मासिक आय 12 हजार रुपए महीने पर पहुंच जाए।  अगर किसी परिवार की न्यूनतम आय 6 हजार रुपया महीना  है तो उसे 6000 रुपये अलग से दिए जाएंगे ताकि उसकी आय 12रुपये हो जाए।
          इस वादे पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी लोगों से वादों कर एक प्रकार का झांसा दे रहे हैं । उन्होंने कहा , राहुल गांधी ने जो वादा किया है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले ही उससे ज्यादा गरीबों को दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने देश को गरीबी में डाला और 50 साल तक गुमराह किया।
        कांग्रेस पार्टी का दावा है कि इस योजना से देश के 20% सबसे गरीब परिवार को लाभ मिलेगा। लेकिन इसका आधार क्या है? आंकड़े बताते हैं की देश में 2.5 करोड़ परिवार ऐसे हैं जिसकी मासिक आमदनी 5हजार रुपये या उससे भी कम है । साथ ही 5 करोड़ परिवारों की औसत आमदनी 10हजार के आस-पास पास है। अब कांग्रेस ने वादा किया है कि अगर वह सत्ता में आ गई तो इन 7.5 करोड़ परिवारों को सबसे ज्यादा फायदा मिलेगा । न्यूनतम आमदनी की गारंटी मिल जाएगी।  सचमुच यह लुभाने वाला वादा है। क्योंकि अगर यह योजना लागू कर दी जाती है तो देश में  करोड़ों परिवारों को इससे लाभ मिलेगा। इस नजरिए से अगर देखा जाए तो यह एक तरफ से एक लक्ष्य को हासिल करने की योजना है और इससे यकीनन देश के गरीबों को लाभ मिलेगा। देश में गरीबों की संख्या घटेगी।  गांव में जो गरीब रहते  हैं उनकी आमदनी बढ़ेगी। ठेके पर काम करने वाले लोगों को लाभ मिलेगा और देश की जनता में आत्मविश्वास बढ़ेगा।   देश में खुशहाली बढ़ेगी। लेकिन यहां अर्थशास्त्र का एक जुमला सामने आता है वह है " मौद्रिक गणित। " यदि सरकार का वित्तीय घाटा काबू में रहा और बैलेंस शीट ठीक-ठाक रही तो सब कुछ ठीक रहेगा। लेकिन इस के समक्ष कई चुनौतियां हैं । पहली तो इसे लागू करने का तौर तरीका । सबसे बड़ी बात है कि किसी परिवार की  आमदनी के हिसाब कैसे लगेगा? देश में एक संस्था है नमूना सर्वेक्षण संगठन (एनएसओ), यह देश के परिवारों का सर्वेक्षण करता है और औसत आमदनी का हिसाब लगाता है। अब प्रश्न है कि क्या अंदाज के हिसाब से परिवारों को चुना जाएगा?  अगर नहीं तो  किसे लाभ दिया जाएगा ,इसका चयन कैसे होगा? अभी तक कोई जवाब नहीं सुनाई पड़ रहा है। दूसरी चुनौती है कि इस आमदनी योजना के तहत लोगों को आमदनी का अंतर दिया जाएगा। मिसाल के तौर पर अगर किसी परिवार की आमदनी 6 हजार रुपए महीने हैं तो उसे 6000 रुपये और दिए जाएंगे ताकि वह 12हजार रुपये पहुंच जाए और यदि किसी परिवार की आमदनी दस हजार रुपए हैं तो उसे दो हजार रुपए मिलेंगे । सवाल उठता है कि क्या हमारे देश के सिस्टम में  इतनी कार्यकुशलता है जो अलग-अलग इस की जानकारी हासिल करे और उसका वर्गीकरण करे लगता तो नहीं है। इन सब के अलावा एक तकनीकी कठिनाई भी है। मोटे तौर पर इस योजना को चालू रखने के लिए वार्षिक लगभग तीन लाख करोड़ रुपयों की जरूरत पड़ेगी। वे रुपए कहां से आएंगे ? कुछ लोगों का कहना है की कई जरूरी सब्सिडी को बंद कर दिया जाएगा और उससे बचे धन से यह योजना चलेगी। लेकिन यहां एक प्रश्न होता है सब्सिडी बंद करने के बाद एक नई सब्सिडी चालू करने का क्या तुक है और क्या परिणाम होगा इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है।
       कांग्रेस का मानना है कि चुनाव के इस मौसम में इस घोषणा के साथ ही कांग्रेस के पक्ष में एक लहर पैदा होगी। लेकिन ऐसा सोचना जल्दी बाजी है। क्योंकि हमारे देश की जनता पिछले 5 वर्षों में 'अच्छे दिन और 15-15 लाख ' के वादों  से लेकर 6 हजार रुपये दिए जाने के वायदों के बीच कितनी बार ठगी गई है यह सब समझते हैं-
      आप कहते हैं सरापा गुलमोहर है जिंदगी 
     हम गरीबों की नजर में एक कहर है जिंदगी

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