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Monday, March 4, 2019

पाक को सबक सिखाने के लिए एक हमला नाकाफी

पाक को सबक सिखाने के लिए एक हमला नाकाफी

पुलवामा हमले के बदले के रूप में भारत में जो किया वह एक बेहतरीन उपाय नहीं था और ना ही पर्याप्त था ।पाकिस्तान आतंकवाद को जिस तरह एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करता है उस  पर इस हमले से थोड़ा अंकुश जरूर लगेगा। ऐसा भारत पहले भी कर चुका है। इसके पहले भारत ने एक सर्जिकल स्ट्राइक किया था लेकिन अगर सामरिक दृष्टिकोण से देखें तो इस तरह के हमले पाकिस्तान को आतंकवाद जारी रखने से रोक नहीं सके हैं । यह प्रश्न विचारणीय है । इसका सबसे बड़ा कारण है कि भारत ने जो कुछ भी इसके पहले किया उससे उद्देश्य की पूर्ति नहीं हो पा रही है। यह एक तरह से स्थाई उपाय के बदले दर्द निवारक गोली का उपयोग करने जैसा है। बतौर चाणक्य, " न्याय तथा प्रतिशोध का एक दर्शन होता है,  न्याय के अनुरूप ही प्रतिशोध जरूरी है ।" लेकिन  हर बार भारत जो कार्रवाई करता है वह उस अनुरूप नहीं होता है। सही बदला लिया ही नहीं गया। अगर सही प्रतिशोध नहीं  लिया गया तो हालात कभी सुधरेंगे ही नहीं। 1947 से आज तक का उदाहरण देख लें। 1947 में बंटवारे के बाद गड़बड़ी हुई और जवाहरलाल नेहरू ने दर्द निवारक गोली के रूप में धारा 370 लगा दिया क्या हुआ? 65 का युद्ध, 1971 का युद्ध, संसद पर हमला, कारगिल, उड़ी और पुलवामा -सारे घाव अपर्याप्त बदले के कारण ही गैंग्रीन में परिवर्तित हो गए । पाकिस्तान भी समझता है, भारत द्वारा की गई कार्रवाई केवल त्वरित समाधान का एक उपाय है और इससे  ज्यादा फर्क नहीं पड़ता । इसी कारण वह पुराने ढर्रे पर लौट आता है। वह जानता है कि भारत द्वारा कभी-कभार की गई कार्रवाई से क्या फर्क पड़ता है। उसकी कोई चिंता नहीं है। उसकी आतंकी रणनीति इतनी सस्ती है और प्रभावी है कि उसे ज्यादा चिंता करने की जरूरत नहीं होती।
          इस बार की ही बात करें। यदि भारत द्वारा की गई कार्रवाई पर्याप्त होती तो उसे भारत की रणनीति का हिस्सा होना चाहिए। उसे पाकिस्तानी जवाब का मुंतज़िर नहीं होना चाहिए। क्योंकि रणनीति में इस बात पर पहले विचार किया जाता है कि पाकिस्तान अगर किसी तरह का हमला करता है तो क्या करना होगा। यह भी हो सकता है कि पाकिस्तान प्रायोजित तौर पर छोटे-छोटे आतंकी हमले करे और इन हमलों का उत्तर देना भारत के लिए मुश्किल हो जाएगा। अब जैसे शनिवार की ही घटना को देखें। नियंत्रण  रेखा पार कर कुछ लोगों ने हमले किए और दो सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया। वह अपनी आदत से बाज नहीं आ सकता। ये छोटे-छोटे हमले भारत के लिए किसी बड़े हमले का रास्ता बन सकते हैं। इस दिशा में भारत को अपना रुख स्पष्ट करना चाहिए इससे पहले जरूरी है कि भारत के रणनीतिकार और नेता अपनी सेना के सभी अंगों को पूरी तरह से ताकतवर बताएं ताकि दुश्मनों में खौफ कायम हो सके। हिटलर के अनुसार, "दुश्मन के क्षेत्र पर हमला करने के पहले क्षेत्र के चप्पे-चप्पे की खुफिया जानकारी हमले को ना ज्यादा सफल बनाती है बल्कि स्थाई भी बनाती है।" आज भी पाकिस्तान की तुलना में भारत की सैन्य क्षमता बहुत ज्यादा है। इतना ही नहीं भारत ने जब भी इसके पहले भी इस तरह के हमले किए हैं तो उसका एक संदेश रहा है कि हमला उसकी मजबूरी थी। वह हमला करना नहीं चाहता था । क्योंकि पाकिस्तानी सेना की शह पर भारतीय क्षेत्र में हमले होते हैं इसलिए उसने ऐसा किया। इस बार जो भारतीय सेना ने कार्रवाई की है उसे भी आतंकी शिविरों पर हमला बताया गया ना कि पाकिस्तानी सेना पर। इसके पहले जो सर्जिकल स्ट्राइक हुई थी उसे भी पाकिस्तानी सेना को टारगेट के रूप में उपयोग नहीं किया गया बताया गया था। भारत यह सफाई देता है कि यह हमला आतंकवादी समूहों पर था। वह सैनिक इरादों से कदम आगे बढ़ाना नहीं चाहता। यह एक अजीब डर है। इस बार के ही हमले की बात करें। पुलवामा हमले के बाद भारत जैश ए मोहम्मद के प्रमुख मसूद अजहर को मांगता रहा और पाकिस्तान सबूत मांगता रहा। भारत ने नागरिकों के दबाव में आकर बालाकोट पर हमला किया और बताया गया कि आतंकी शिविरों को नष्ट किया गया है। अजहर मसूद हाथ नहीं आया । ऐसा करके भारत ने खुद को आश्वस्त कर लिया। लेकिन पाकिस्तान पर क्या भरोसा करना चाहिए? शायद नहीं । भरोसा सबसे बड़ी भूल होगी । प्रश्न है कि भारत द्वारा अब तक की गई कार्रवाई उसे कोई समाधान क्यों नहीं निकला? हम हमलों की सफलता के जश्न मनाते है पर भविष्य के हमले रोक नहीं सकते और ना पिछली घटनाओं से सीख सकते हैं। हमारे देश के राजनीतिक नेता  इस तरह की घटनाओं  और जवाबी हम हमलों का राजनीतिक लाभ उठाते  और जनता का ध्यान  विचलित कर देते हैं ।  पाकिस्तान आज नहीं कल इसका जवाब जरूर देगा। वह अपनी फितरत से बाज नहीं आएगा। वह भारत की क्षमताओं का हर बार नए मापदंडों से आकलन करेगा और भारत को हर बार इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी। इसलिए उसे अपनी सोच का तरीका बदलना पड़ेगा और यह मानना पड़ेगा कि केवल एक हमला काफी नहीं है।

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