भारत में चुनाव और अत्याधुनिक तकनीक
यहां अत्याधुनिक तकनीक का अभिप्राय व्हाट्सएप और अन्य सोशल मीडिया से है। व्हाट्सएप से आंकड़े बताते हैं कि भारत में जितने व्हाट्सएप उपयोगकर्ता है उतने विश्व के किसी लोकतंत्र में नहीं हैं। इसलिए आशंका व्यक्त की जा रही है कि अगला चुनाव व्हाट्सएप चुनाव होगा। भारत में बढ़ती इंटरनेट की कनेक्टिविटी और स्मार्ट फोन का बढ़ता प्रयोग जिसे लोग निजी संदेश सेवा के रूप में कर रहे हैं। व्हाट्सएप भारत में 2010 के मध्य में आरंभ हुआ तब से अब तक इस देश में 30 करोड़ लोग इसका इस्तेमाल करने लगे हैं। यह दुनिया के किसी भी लोकतंत्र की तुलना में सबसे ज्यादा है। अब राजनीतिक दल भी इस जनसंचार चैनल का लाभ उठाने की कोशिश करने लगे हैं। हमारे देश में राजनीतिक इरादे से व्हाट्सएप का अधिकतर इस्तेमाल मतदाताओं तक भ्रामक सूचनाएं फैलाने और अत्यंत घातक झूठी खबरों के प्रसार के लिए होता है। इससे कई बार हमारे देश में दंगे और हिंसक घटनाएं भी हुई हैं। डर है कि आगे चलकर चुनाव के दौरान यह समस्त लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए ही खतरा ना बन जाए। सोशल मीडिया का पहली बार उपयोग 2014 के चुनाव में किया गया था। अब उसकी क्षमता को बढ़ाने के लिए बहुत कुछ किया जा रहा है। भारत में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी ग्रास रूट स्तर के मतदाताओं तक पहुंचने के लिए इसका उपयोग करने की कोशिश कर रही है। लगभग 9 लाख कार्यकर्ता अपने पास पड़ोस में व्हाट्सएप ग्रुप तैयार कर रहे हैं। उन्हें लगातार भाजपा से संबंधित खबरें भेज रहे हैं। इन खबरों में विकास के क्षेत्र में भाजपा की सफलता है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चुनाव अभियान की खबरें ज्यादा होती हैं। दूसरी तरफ, विरोधी दल कांग्रेस ने एक नया ऐप जारी किया है ,उसका नाम है डिजिटल साथी तथा उसने स्थानीय स्तर पर डिजिटल चुनाव अभियान के लिए इसे उपयोग करना शुरू कर दिया है। इनको देखकर यह आशंका प्रबल हो रही है कि व्हाट्सएप की लोकप्रियता चुनाव पर घातक प्रभाव डाल सकती है । 2018 में ब्राजील का चुनाव और हाल में खत्म हुए भारत के कई राज्यों के चुनाव बात का सबूत है की राजनीतिक लाभ के लिए व्हाट्सएप के माध्यम से कैसे आनन फानन में मतदाताओं तक भ्रामक सूचनाएं पहुंचाई जाती है । भारत में इसके अलावा व्हाट्सएप के उपयोग को लेकर एक विशिष्ट स्थिति है कि सभी राजनीतिक पार्टियां खबरों को तोड़ मरोड़ कर और उनमें विचारों की मिलावट कर मतदाताओं को प्रभावित करने की कोशिश करती रही है । कश्मीर को लेकर पाकिस्तान से हाल में हुई झड़प का यकीनन चुनाव में उपयोग होगा। कई बार गंभीर भ्रामक समाचार वायरल हो जाते हैं और देश में स्थिति बड़ी खराब हो जाती है। व्हाट्सएप के दुरुपयोग से हत्या और लिंचिंग की 30 घटनाएं हाल के वर्षों में हुई हैं। यही नहीं, कुछ दिन पहले बच्चा चोरी की अफवाहों ने लोगों में भयंकर डर पैदा कर दिया था।
इन घटनाओं के बाद व्हाट्सएप के संचालकों ने भारत में जन शिक्षा अभियान आरंभ किया है। जिसमें यह सिखाया जा रहा है "खुशियां फैलाइये, अफवाहें नहीं।" व्हाट्सएप निर्माताओं में अपने इस ऐप में थोड़ा बदलाव भी किया है। जिससे इसका उपयोग करने वालों को किसी भी संदेश भेजने के पहले थोड़ा रुकने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। साथ ही सीमित संख्या के लोगों तक एक बार में संदेश भेजा जा सकता है। यही नहीं पूरी दुनिया में लगभग साठ लाख लोगों के व्हाट्सएप अकाउंट बंद किए गए। यह तो शुरुआत है। हो सकता है इससे बहुत फायदा ना हो क्योंकि अभी भी इसके माध्यम से कुछ ही सेकंड में हजारों लोगों को संदेश भेजा जा सकता है।
जो लोग जनसंचार के विशेषज्ञ हैं वे समझते हैं कि आम आदमी खबरों के मूल्य, उनकी वैधता और उसके स्रोतों के बारे में बहुत कम ध्यान देते हैं । वह ज्यादा ध्यान भेजने वाले पर देते हैं और अपनी पसंद पर देते हैं। पत्रकारिता में जो सत्य को परखने के मापदंड हैं वह यहां गैर हाजिर हैं। अब यहां प्रश्न है कि भ्रामक सूचनाएं फैलाने के लिए जिम्मेदार कौन है? राजनीतिज्ञ व्हाट्सएप वालों को दोषी बताते हैं , दूसरी तरफ व्हाट्सएप वाले भारत के राजनीतिक दलों को दोषी बताते हैं ।
अंततोगत्वा भारतीय राजनीति में व्हाट्सएप की भूमिका को समझने की आवश्यकता है । इसके लिए जरूरी है कि व्यापक सामाजिक तथा सांस्कृतिक मसलों के साथ तकनीक पर बात हो । व्हाट्सएप एक यंत्र और यह यंत्र भारतीय समाज में व्याप्त प्रवृत्तियों को बढ़ावा देता है। उदाहरण स्वरुप पीट पीट कर मार डालने या कहें लिंचिंग की घटनाओं के लिए हमारा विभाजित समाज ज्यादा दोषी है । व्हाट्सएप के उपयोग करने वाले इसी तरह समाज में व्याप्त जातिवाद और उनसे जुड़ी खबरें समाज के भीतर पैदा करते हैं और वैमनस्य तथा और असौहार्दपूर्ण वातावरण भी बनाते हैं।
ये घटनाएं बताती हैं की हमें खबरों के बारे में ज्यादा जानकारी रखनी होगी तथा उसे उसे सोच समझ कर उपयोग करना होगा।
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