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Sunday, March 24, 2019

खुशी घट रही है हमारे देश में

खुशी घट रही है हमारे देश में

यद्यपि इसे सकारात्मक सोच कहा जा सकता है लेकिन इस तरह सोचना भी भविष्य के लिए समर नीति तैयार करने में मददगार हो सकता है। अभी हाल में अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा दो-तीन रिपोर्ट्स  प्रकाशित हुईं जिसमें भारत में स्थितियों की चर्चा है।  वह स्थितियां सचमुच सोचने के लिए बाध्य करती हैं। संयुक्त राष्ट्र विश्व खुशहाली रिपोर्ट में कहा गया है खुशहाली के मामले में भारत का स्थान 140 वां है जो पिछले साल के स्थान से 7 सीढ़ी नीचे है। बुधवार को जारी इस रिपोर्ट में बताया गया है कि फिनलैंड दुनिया का सबसे ज्यादा खुशहाल मुल्क है। हालांकि विगत कुछ वर्षों में दुनिया भर में खुशहाली घटी है लेकिन भारत में यह लगातार घट रही है। पिछले साल की रिपोर्ट में भारत 133 में स्थान पर था इस बार 7 सीढ़ी नीचे उतर कर वह  140 वें स्थान पर है। यहां तक कि पाकिस्तान बांग्लादेश और चीन की स्थिति इस मामले में हमसे अच्छी है। 
    6 कारकों के आधार पर तय की गई इस सूची में आय, स्वस्थ जीवन प्रत्याशा, सामाजिक सपोर्ट , आजादी, विश्वास और उदारता शामिल है। रिपोर्ट को तैयार करते समय यह भी देखा जाता है कि संबंधित देशों के निवासियों में चिंता उदासी क्रोध इत्यादि नकारात्मक भावनाओं में कितनी वृद्धि हुई है।
आंकड़ों के मुताबिक पाकिस्तान 67 वें स्थान पर है जबकि बांग्लादेश 125 वें और चीन 93वें स्थान पर है। दूसरी तरफ युद्ध में उलझे सूडान के लोग अपने जीवन से सबसे ज्यादा दुखी हैं या कहें  नाखुश हैं। इसके बाद मध्य अफ्रीकी गणराज्य 155वें, अफगानिस्तान 154वें, तंजानिया 153वें, रवांडा 152वें  पायदान पर हैं। हैरत की बात है कि दुनिया में सबसे ज्यादा अमीर  कहा जाने वाला देश अमरीका भी खुशहाली के मामले में 19वें स्थान पर है।
जहां तक खुश रहने का सवाल है तो  खुशहाली पर सबसे  बड़ा असर डालता है जीवन का उद्देश्य। किसी के जीवन का उद्देश्य   क्या है? उद्देश्य विहीन जीवन में कभी खुशी नहीं  आ सकती। विख्यात मनोशास्त्री विक्टर फ्रांकल के मुताबिक खुशी को कभी अपनाया नहीं जा सकता बल्कि इसका पीछा किया जा सकता है। हर आदमी के पास खुश रहने का कोई कारण होना चाहिए।  खुशी की लगातार तलाश एक समस्या है। हाल के एक अध्ययन से पता चला है कि जो लोग खुशी पर ज्यादा जोर देते हैं वह सबसे ज्यादा उदास लोग हैं। दरअसल खुशहाली एक ऐसा जुमला है जो हमेशा से ज्यादा प्रयोग में रहा है। खुशहाली और उद्देश्य में  बहुत बड़ा अंतर है। उद्देश्यहीनता सफल जीवन की ओर नहीं ले जा सकती। समाज में उसका स्रोत आवश्यक है। इसीलिए कहा जाता है खुशी ली जाती है और दी जाती है। जो लोग खुश हैं वह स्वस्थ हैं और वे ऐसी हैसियत के लोग हैं जो अपने जीवन के लिए उपयोगी वस्तुओं को खरीद सकते हैं। साथ ही उनके जीवन का कोई उद्देश्य नियत होना चाहिए। अब स्वयं लिप्त व्यक्ति बहुत दिन तक खुश नहीं रह सकता। हमारे जीवन खास करके भारतीय मध्य वर्ग का जीवन का उद्देश्य जरूरतें पूरी करना और परिवार को आगे बढ़ाना होता है। लेकिन इन दिनों जो आंकड़े आ रहे हैं खास करके आर्थिक आंकड़े वे निराशाजनक हैं। 2019 फरवरी में खुदरा महंगाई की दर2.57% हो गई जबकि औद्योगिक उत्पादन की दर 2019 जनवरी में घटकर 1.7  प्रतिशत हो गई। यह दोनों खबरें अर्थव्यवस्था के लिए अच्छी नहीं हैं। महंगाई पिछले साल थोड़ी कम थी इसकी सबसे बड़ी वजह थी मांग और उपभोग में कमी होना। यह कमी देश के ग्रामीण इलाकों में दर्ज की गई। पिछले कुछ महीनों  को देखें पता चलेगा कि महंगाई कम होने के बावजूद न खपत बढ़ी है न खर्च। जबकि सामान्य ज्ञान से कहा जा सकता  है कि महंगाई कम होने पर खर्च का बढ़ना उचित है। इसका सीधा संबंध देश के ग्रामीण क्षेत्रों की बदहाली से है। खाद्य पदार्थों की महंगाई बढ़ने के बजाय स्थिर रही है। शहरी मध्यवर्ग के लिए यह राहत की बात है। लेकिन किसानों के लिए दुखदाई है। क्योंकि उन्हें अपनी फसल की औसत कीमत भी नहीं मिल सकती है। अब अगर पिछले महीने में मंहगाई  बढ़ती है तो यह किसानों के लिए सुखदाई है यह राहत देने वाली है। लेकिन महंगाई के कारण पर गौर करें तो यह स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और आवास के बढ़ते मूल्यों के कारण हुआ है। इसके अलावा कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि के कारण भी महंगाई बढ़ी ।  कृषि और रोजगार के मौके अभी नहीं बढ़े और इसका सीधा असर हमारे समाज की खुशहाली पर पड़ता है। लोकसभा के चुनावी शोरगुल के बीच  खुशहाली की रिपोर्ट या अर्थव्यवस्था की रिपोर्ट पर कोई गौर नहीं करेगा क्योंकि इस पर राजनीति भारी है। लेकिन चुनाव के बाद जो भी सरकार आएगी उसके लिए मुश्किलें पहले से तैयार खड़ी मिलेंगी। ....और  खुशहाली का अभाव कायम रहेगा।

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