खबरों का घातक उपयोग
संचार के औजार जैसे-जैसे विकसित हो रहे हैं सूचनाओं का उपयोग वैसे-वैसे स्वार्थ परक और घातक होता जा रहा है। अभी तक संचार साधनों के दृश्य और श्रव्य प्रभाव के माध्यम से किसी सूचना को एक वस्तु बनाकर लोगों के सामने पेश किया जाता रहा है और इसके जरिए लोगों में मोह पैदा कर वस्तुओं को खरीदने के लिए उकसाया जाता रहा है। लेकिन अब उन साधनों को लोगों में उत्तेजना भरने के लिए औजार की तरह उपयोग किया जा रहा है। हाल के दिनों में दो खबरों पर गौर करें । पहली खबर है कश्मीरियों से देश के कई भागों में मारपीट की घटनाओं से नाराज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सभी राज्य सरकारों को दोषियों पर कठोर कार्रवाई करने का आदेश दिया। दूसरी खबर है कि बालाकोट में जो हवाई हमला हुआ उसकी विवादास्पद सेटेलाइट तस्वीरें जारी हुईं। कई जिम्मेदार लोग भी इस के झांसे में आ गए। यही नहीं, पुलवामा हमले के बाद जम कर प्रचारित किया गया कि हमलावर कश्मीरी था। इस खबर के बाद देशभर में कश्मीरियों के खिलाफ हिंसा वातावरण बन गया। कई जगहों पर कश्मीर से आए लोगों से मारपीट शुरू हो गई। लेकिन राज्य सरकारों और ना केंद्र सरकार ने इसमें दखल दिया। करीब एक महीने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लगा कि इससे देश की एकता और अखंडता पर आघात लगेगा इसलिए इसे बंद करवाया जाए। लिहाजा उन्होंने कार्रवाई का आदेश दिया। इसी तरह बालाकोट में आतंकी शिविरों पर भारतीय वायु सेना के हमले की कथित सेटेलाइट तस्वीरें चैनलों द्वारा जारी की गयीं और बाद में उन पर सवाल उठने लगे। यह दो घटनाएं ऐसी हैं जिसे साफ पता चलता है खबरों का प्रभाव आक्रामक रहा है । लोगों के भीतर इस से प्रतिक्रिया पैदा हुई और यह प्रतिक्रिया सरकार के पक्ष में गई है। यहां एक बुनियादी सवाल है कि इन खबरों के आरंभिक प्रभाव के लिए जिम्मेदार लोगों को दोषी क्यों नहीं ठहराया गया। कोई यह सवाल नहीं पूछता है। ऐसी घटनाओं पर जो प्रतिक्रियाएं हुयीं वह इसके आरंभिक प्रभाव से बिल्कुल अलग थीं। जरा सोचिए, अगर पुलवामा हमले के बाद जब कश्मीरियों पर हमले होने लगे थे उसे उसी समय रोका जा सकता था। लेकिन ऐसा नहीं किया गया। वही हालत उन तस्वीरों की भी थी। अगर तस्वीरों को शुरू में ही सरकार ने गलत करार दे दिया होता तो किसी किस्म का कंफ्यूजन नहीं होता। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सरकार की प्रतिक्रिया बहुत बाद में आई और यह विलंब ही शक पैदा करता है। पहले इन खबरों को फैलने दिया गया, जिससे देश में ध्रुवीकरण की प्रक्रिया आरंभ हो गई। संवाद शास्त्र में ऐसे समाचारों का एजेंडा के रूप में उपयोग कहा जा सकता है । इसी एजेंडे के तहत सरकार ने चुप्पी साध रखी थी। बाद में जब सच सामने आया तो प्रधानमंत्री ने कश्मीरियों पर हमले पर आपत्ति जताई। तब तक लोगों के बीच एक अजेंडे के तहत आग्रह भर दिया गया । जो लोग खबरों पर नजर रखते हैं उन्होंने गौर किया होगा कि हाल के दिनों में कुछ ऐसी खबरें आईं जो शुरू मैं काफी प्रचारित हुयीं बाद में गलत निकलीं। संवाद शास्त्र में एजेंडा गत समाचार के रूप में वर्गीकृत समाचार अक्सर एक खास वर्ग के लोगों के लाभ उठाने के उद्देश्य से फैलाया गया समाचार होता है। इस वर्ग के समाचार तूफान पैदा कर सकते हैं। लेकिन लंबे समय तक टिके नहीं रह सकते। आज के दूरसंचार के युग में फर्जी समाचारों का ज्यादा दिन तक टिका रहना महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि अपनी छोटी अवधि में यह कितना प्रभाव पैदा करते हैं यह महत्वपूर्ण है। पिछले कुछ वर्षों से लगातार ऐसा हो रहा है। कुछ खबरें चाहे वह पुलवामा की हों या अन्य राजनीतिक समाचार हों उन्हें जोर शोर से प्रसारित किया जाता है और वह समाज में ध्रुवीकरण की प्रक्रिया को बल देने लगता है। सोशल मीडिया के माध्यम से यह खबरें मिनटों में दुनिया भर में फैल जाती हैं। आमतौर पर इस तरह की खबरों को प्रसारित किया जाता है जिसका उद्देश्य विचार बनाने में या किसी मसले पर राय कायम करने का होता है । आज संचार और संप्रेषण के इस औजार को राजनीतिक स्वार्थ पूर्ति का जरिया बनाया जा रहा है। बड़ी चालाकी से किसी झूठ को दूरदराज के इलाके में फैलने दिया जाता है और बाद में जब सच सामने आता है तो उसे उन इलाकों तक जाने से रोक दिया जाता है ताकि उस झूठ का प्राथमिक असर बना रहे और धीरे-धीरे समय के साथ वह असर मजबूत भी होता है। यह कोई संजोग नहीं होता बल्कि संचार साधनों का सुचिंतित प्रयोग होता है। इसलिए हमारे समाज में समाचारों के असर को धार्मिक बताते हुए कहा गया है कि,
सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात् , न ब्रूयात् सत्यम् अप्रियम् ।
प्रियं च नानृतम् ब्रूयात् , एष धर्मः सनातन: ॥
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