बिन पानी सब सून
होली के दिन हमारे भारत में न जाने कितने गैलन पानी रंग लगाने और रंग छुड़ाने में व्यर्थ हो गया होगा। होली के ठीक दूसरे दिन यानी 22 मार्च को विश्व जल संरक्षण दिवस था और इस दिन जारी एक रिपोर्ट के आधार पर भारत को चेतावनी दी गई है कि उसकी एक अरब आबादी जलाभाव के क्षेत्र में निवास करती है। वाटरएड की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के कुल भूमिगत पानी का 24% भारतीय उपयोग करते हैं। भारत में 1170 मिलीमीटर बारिश होती है और हम इसका केवल 6% ही सुरक्षित रख पाते हैं। चेतावनी दी गई है कि अगर भारत में पानी को बर्बाद करना नहीं रोका गया तो देश के एक तिहाई घरों में पानी का संकट पैदा हो जाएगा। हमारे देश में भूमिगत जल का दो तरह से प्रयोग होता है एक तो प्रत्यक्ष यानी जो पानी हम सीधे तौर पर इस्तेमाल करते हैं जैसे नहाने पीने इत्यादि के लिए और दूसरा है आभासी जल। जिसका इस्तेमाल हम हर वह चीज उगाने में करते हैं जिसका उपयोग खाने पीने किस काम के लिए होता है। कोई देश जल के मामले में कितना संपन्न है उसकी माप तौल इसी आभासी जल से भी किया जाता है। जिन देशों में इसी जल का उपयोग कर लोग संपन्न हो रहे हैं उन्हीं देशों में पीने के पानी का संकट पैदा होने का खतरा बढ़ता जा रहा है। एक अनुमान के मुताबिक 2050 तक भौतिक स्तर पर पानी की कमी वाले इलाकों के बाशिंदों की संख्या बढ़कर 5 अरब तक हो जाएगी। यानी जिस पानी का हम प्रत्यक्ष उपयोग नहीं करते वह पानी भी जल संकट पैदा करने के लिए काफी है। दूसरा पानी है जिसे हम प्रत्यक्ष उपयोग में लाते हैं। पीने खाना बनाने या कपड़ा धोने के लिए। आंकड़े बताते हैं की हर देश में हर 9 में से एक आदमी को अपने घर में पीने का साफ पानी उपलब्ध नहीं है और दुनिया की दो-तिहाई जनसंख्या लगभग 400 करोड़ लोग ऐसे इलाकों में रहते हैं जहां पानी की बेहद कमी है। किसी वैज्ञानिक ने लिखा था कि "अगला विश्व युद्ध अगर होगा तो पानी के लिए ही होगा।" इसके लक्षण साफ दिखाई पड़ने लगे हैं। संपन्न देश गरीब देशों के निर्यात को बढ़ावा देने का झुनझुना दिखाकर उसके यहां के जल स्रोतों को सोख रहे हैं। यह पानी के दोहन का जो खेल चल रहा है वह बहुत भयानक हो सकता है भविष्य में। जरा सोचिए कि सुबह जो हम एक कप चाय पीते हैं उस एक कप चाय को उगाने ,चाय के पौधों की सिंचाई, उसकी प्रोसेसिंग इत्यादि में जो पानी लगता है वह लगभग 120 लीटर होता है। यह आभासी जल है जो हम देख नहीं पाते। हम तो चाय का एक कप या मात्र 120 मिलीलीटर पीते हैं। सुनकर हैरत होती है भारत में 2000 से 2010 के बीच भूमिगत पानी का दोहन लगभग 23% बढ़ गया है। भारत भूमिगत जल का दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक है और हालात यहां तक पहुंच गए हैं कि हमारे देश के 1 अरब लोग जल के अभाव वाले क्षेत्र में रहते हैं। जिनमें 60 करोड़ों लोग ऐसे क्षेत्रों में रहते हैं जो पानी के अभाव से बुरी तरह प्रभावित हैं। 75% घरों में पीने का साफ पानी पहुंचा ही नहीं है।
एक जमाना था जब हमारे देश में मोटे अनाज खाने का चलन था उन अनाजों के उपजाने में पानी कम लगता था और वह अनाज कीड़े मकोड़ों से खुद अपनी रक्षा कर लेते थे और जमीन की उर्वरा शक्ति भी बढ़ती थी। फिर हरित क्रांति आई और हमें गेहूं और चावल की फसल उगाने के लिए प्रोत्साहित किया जाने लगा । जिस समय देश आम आदमी मोटा अनाज खाता था और गेहूं चावल से बने भोजन तीज त्यौहार में खाए जाते थे तो उस समय जमीन उपजाऊ थी। जब हरित क्रांति के साथ साथ यह विमर्श ही फैलाया गया कि गेहूं चावल अमीरों के खाने की चीज है और लोग गेहूं चावल खाकर खुद को अमीर बताने लगे। देश से मोटा अनाज गायब हो गया और गेहूं चावल मुख्य फसल बन गया। धीरे धीरे खेतों को यूरिया की आदत पड़ गई। बारिश घटने लगी तो जमीन का पानी सोखा जाने लगा और हालात यह है कि आज हम इतिहास के सबसे बड़े जल संकट के चौराहे पर खड़े हैं । एक अनुमान के मुताबिक अब से कोई 21 वर्ष बाद यानी 2040 तक 33 देश जल संकट का सामना करेंगे। इनमें 15 देश मध्यपूर्व में हैं । उत्तरी अफ़्रीका ,पाकिस्तान, तुर्की ,स्पेन और अफगानिस्तान के कुछ हिस्से भी इसमें शामिल हैं। भारत ,चीन ,अमरीका और ऑस्ट्रेलिया भी पानी के भयंकर संकट से जूझेंगे। जल के अभाव वाले इलाकों के बाशिंदों की संख्या बढ़कर पांच अरब पहुंचने का अनुमान है। कभी किसी ने कहा था कि "रुपया खुदा नहीं है लेकिन खुदा से कम भी नहीं है।" जरा सोचिए नोटों की थैली बगल में दबी होगी और सूखता हुआ गला क्या रंग लाएगा ? अभी वक्त है संभालने का संभल जाएं तो अच्छा है। वरना, "बिन पानी सब सून।"
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