देखिए आगे आगे होता है क्या
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की जोड़ी ने ऐसा किया, खासकर करके कश्मीर को लेकर लगता है कि यह पार्टी सचमुच 21वीं सदी की राजनीतिक पार्टी है ना कि बीसवीं सदी के उत्तरकाल की । एक आधुनिक पार्टी की हैसियत से मोदी सरकार ने अपने शासन के पिछले दौर में अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की कोशिश की, शौचालय बनवाए, ग्रामीण क्षेत्रों का विद्युतीकरण किया, बैंक अकाउंट और डिजिटाइजेशन से लोगों को न केवल परिचित कराया बल्कि उसकी आदत डालने की भी कोशिश की। आज एक आम आदमी तरह-तरह के डिजिटल लेन-देन कर रहा है। मोदी जी की सरकार ने अपने शासन से पहले दौर में सड़कें बनवाई, नहरे बनवाई और दूसरा दौर जब से शुरू हुआ है तब से सिर्फ सियासत हो रही है । नरेंद्र मोदी जवाहरलाल नेहरू और गांधी के युग के उत्तर काल का भारत बनाने की कोशिश में लगे हुए हैं। कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने की प्रक्रिया उसी कोशिश की एक कड़ी है। गांधी के काल कि कुछ गांठ हैं उन्हें काटना जरूरी है सुलझाना नहीं। जम्मू-कश्मीर भारतीय संविधान में एक इसी तरह की गांठ के रूप में मौजूद था। नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने गांठ को काट डाला। धारा 370 हटा दी गई। इस धारा से देश के फेडरल ढांचे में एक अजीब विसंगति दिख रही थी। जम्मू कश्मीर और कह सकते हैं लद्दाख भी, पूरी तरह भारत का हिस्सा नहीं लगता था।। भारत के साथ कश्मीर का जुड़ाव कुछ शर्तों के साथ हुआ था और उन शर्तों में बहुत से अधिकार कश्मीर की विधानसभा के थे ना कि भारत सरकार को। इसमें जो सबसे प्रमुख कमी थी वह थी भारत सरकार द्वारा बनाए गए कानूनों का संपूर्ण लाभ कश्मीरियों को नहीं हासिल हो सकता था उसी तरह कश्मीर में उपलब्ध हर सुविधा उस क्षेत्र में भारत के अन्य भाग के लोगों को मयस्सर नहीं थी। ऐसा लगता था कि वह भारत का हिस्सा नहीं है। मोदी जी ने जम्मू और कश्मीर की इस स्थिति को बदल दिया। मोदी सरकार का पहला दौर नोटबंदी का था। वह एक अच्छा कदम था लेकिन गड़बड़ी यह हुई थी की समय अनुकूल नए नोट नहीं उपलब्ध हो सके थे। मोदी सरकार ने दूसरे दौर में इस बात पर सावधानी रखी कि जोर का झटका धीरे से लगे। अमित शाह मोदी जी को एक बेहतरीन पार्टनर के रूप में मिल गये। पूरा ऑपरेशन गुप्त रहा। अर्धसैनिक बल भेजे गये, पर्यटकों को वहां से हटाया गया। हालांकि कश्मीर पुनर्गठन विधेयक सूची बद्ध था लेकिन शुरुआत ऊपर से हुई। पहले राष्ट्रपति ने इस पर टिक लगाया। ऐसा करने का एक कानूनी कारण था वह कि जम्मू-कश्मीर राष्ट्रपति शासन के अधीन था और वहां विधानसभा भंग कर दी गई थी। संसद को जम्मू कश्मीर की ओर से कानून बनाने और लागू करने का अधिकार था। यह एक पतला गलियारा था, लेकिन धारा 370 को हटाने के लिए वांछित संवैधानिक जरूरतों को पूरी करता था। कश्मीर को विभाजित कर ना इस कानून का बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा था। लद्दाख एक विशाल क्षेत्र है और जम्मू कश्मीर से पूरी तरह अलग है। यह बौद्ध बहुल है और सौर ऊर्जा का एक विशाल स्रोत है। यह भारत का पहला बौद्ध केंद्र शासित क्षेत्र है। लद्दाख कि जनता ने सरकार के इस कदम का स्वागत किया है।
अब यहां एक महत्वपूर्ण विवाद उठ रहा है कि क्या इस बदलाव से कश्मीर की अपनी पहचान नहीं खो देगा? लेकिन यहां पूछा जा सकता है कौन सी पहचान ? क्या वह कश्मीर जिसमें हिंदू और मुसलमान दोनों समभाव से निवास करते थे? या वह कश्मीर जहां मुस्लिम औरतें बिना बुर्के लगाए जाती थी और मस्जिदों में नमाज पढ़ती थी, या फिर वह कश्मीर जहां से पंडितों को खदेड़ दिया गया था और इस्लाम अपने संपूर्ण रूढ़ीवादी स्वरूप में कायम था? पिछले गुरुवार को प्रधानमंत्री ने राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में कश्मीर का जिक्र करते हुए कहा कि वह कश्मीर जो भारतीय सिनेमा वालों में सबसे ज्यादा लोकप्रिय था और वहां की धरती पर रोमांटिक गाने फिल्माए जाते थे। उन्होंने फिल्म बनाने वालों से अनुरोध किया कि वे दोबारा घाटी में आएं । क्योंकि जो कश्मीर कुछ दिन पहले था वह अब समाप्त हो गया। वह कश्मीर राजनीतिक अलगाववाद से नहीं बल्कि नए इस्लाम अस्तित्व में आने से बना था।
भारत की लोकतांत्रिक प्रणाली ने परिवर्तन के लिए निर्णायक मतदान किया था। मोदी जी की पहली विजय को पुरानी पार्टी के नेताओं ने एक गलती बतायी थी। दूसरी विजय ने इसे 21वीं सदी की शासक पार्टी बना दिया और अब मोदी के तीसरे दौर के लिए भी तैयार रहिए।
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