कश्मीर का नया स्वरूप क्या रंग लाएगा
अमरनाथ की यात्रा रोक दी गई थी और कश्मीर में अर्द्ध सैनिक बलों की तैनाती के पश्चात मानो पर्वत राज्य की चोटियों पर गूंज रहा हो:
जटाटवी-गलज्जल-प्रवाह-पावित-स्थले गलेऽव-लम्ब्य-लम्बितां-भुजंग-तुंग-मालिकाम् डमड्डमड्डमड्डम-न्निनादव-ड्डमर्वयं चकार-चण्ड्ताण्डवं-तनोतु-नः शिवः शिवम् ॥
संपूर्ण देश को लगने लगा कि कुछ न कुछ होने वाला है, क्या होने वाला है इसका अंदाजा नहीं था। अचानक सोमवार को सरकार ने घोषणा की कि जम्मू कश्मीर में लागू संविधान की धारा 370 को हटा दिया गया है और इसके साथ ही जम्मू कश्मीर को प्राप्त विशेष दर्जा खत्म हो गया। गृह मंत्री अमित शाह ने इसकी घोषणा की। यह कि नहीं उस हिमालयी राज्य का दो भाग हो गया। पहला लद्दाख । किसी विधान मंडल के बगैर लद्दाख केंद्र शासित क्षेत्र होगा। दूसरा जम्मू कश्मीर । यह भी केंद्र शासित क्षेत्र होगा लेकिन यहां विधानमंडल रहेगा । गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि लद्दाख के लोगों की यह बहुत दिनों से मांग आ रही थी और यह फैसला कश्मीर में कायम सुरक्षा की स्थिति को देखते हुए लिया गया है । लद्दाख आनुपातिक रूप में बड़ा क्षेत्र है लेकिन यहां आबादी कम है और जो है वह भी बहुत ही जटिल स्थिति में है। अरसे से मांग हो रही थी कि लद्दाख को केंद्र शासित राज्य का दर्जा दे दिया जाए ताकि वहां की जनता अपनी अपेक्षाओं को प्राप्त कर सके। लद्दाख में कोई विधानमंडल नहीं होगा। श्री अमित शाह में कहा कि जम्मू और कश्मीर को पृथक केंद्रशासित राज्य बनाए जाने के पीछे सुरक्षा कारण है वहां सीमा पार से आतंकवाद को बढ़ावा दिया जा रहा है।
इसके साथ ही कश्मीर का मिशन मोदी पूरा हुआ और उसका इतिहास तथा भूगोल दोनों बदल गया।
सुविज्ञ सूत्रों के अनुसार इस घोषणा के बाद घाटी में कानून और व्यवस्था की स्थिति बिगड़ सकती है। यहां अर्धसैनिक बलों की 300 कंपनियां तैनात हैं । फिलहाल कश्मीर में राष्ट्रपति शासन की स्थिति का फायदा उठाते हुए केंद्र सरकार ने राज्य का चरित्र बदलने के लिए यह महत्वपूर्ण परिवर्तन किया है। दरअसल संसद ने जम्मू कश्मीर की तरफ से काम करते हुए धारा 370 में संशोधन का प्रस्ताव प्रस्तुत किया। इससे संवैधानिक रूप में ऐसा लगता है कि कश्मीर यह चाहता था। हालांकि कश्मीर के लोग इसका विरोध कर रहे थे। धारा 370 एक बुनियादी प्रावधान था जिसके तहत कश्मीर भारत के साथ जुड़ा। सोमवार को संसद में प्रस्तुत प्रस्ताव के दो हिस्से थे। पहला हिस्सा 370 धारा के प्रावधानों को खत्म करने का था जिसके तहत जम्मू और कश्मीर को विशेष दर्जा हासिल था। विशेष दर्जा में यह भी शामिल था कि केंद्र द्वारा पारित किसी कानून को कश्मीर विधानसभा से पास करवाना होगा।
प्रस्ताव का दूसरा भाग राज्य को केंद्र शासित क्षेत्र में बदलना था। इसके लिए भी एक विधेयक पेश किया गया। यद्यपि धारा 370 कश्मीर को एक विशेष दर्जा देती है लेकिन तकनीकी तौर पर भारत से मिलाने के लिए यह एक अस्थाई प्रावधान था। धारा 370 की उप धारा 3 में कहा गया है कि राष्ट्रपति को अधिकार है कि इस धारा को खत्म करने के लिए किसी भी समय एक अधिसूचना जारी कर सकते हैं। लेकिन यहीं पर एक फंदा था कि राष्ट्रपति के अधिसूचना जारी करने के बाद जम्मू कश्मीर विधानसभा से भी मंजूरी लेना जरूरी था। यह देखना दिलचस्प होगा कि प्रावधान को कैसे पूरी तरह से कम करके आंका गया। फिलहाल जम्मू और कश्मीर में राष्ट्रपति शासन है । जब किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन होता है तो संसद को उस राज्य के विधानसभा के अधिकार प्राप्त होते हैं। इसका मतलब है कि फिलहाल संसद जम्मू कश्मीर विधानसभा के तौर पर काम कर रही है और प्रस्ताव तथा विधेयक पेश कर रही है । अब मुश्किल यह है कि कश्मीर की जनता का बहुत बड़ा भाग इस परिवर्तन के खिलाफ है और साथ ही कश्मीर के निर्वाचित प्रतिनिधि भी इस परिवर्तन के विरोध में हैं। जो हुआ वह संघीय ढांचे पर एक आघात है। इसके अलावा धारा 35 ए को रद्द करने का राष्ट्रपति का आदेश ऐसा लगता है कि संविधान की धारा 367 और जम्मू कश्मीर से जुड़े इसके प्रावधानों में संशोधन हो रहा है । क्या राष्ट्रपति एक आदेश जारी कर धारा 370 में संशोधन कर सकते हैं? यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है।
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान कश्मीर ताजा स्थिति को देखते हुए अपने कैबिनेट की एक महत्वपूर्ण बैठक बुलाने वाले हैं। सूत्रों का मानना है कि पाकिस्तान मोदी सरकार के इस कदम का कड़ा जवाब देने वाला है। पाकिस्तान के विदेश मंत्री ने पहले ही इसकी निंदा करते हुए कहा है कि "भारत अधिकृत जम्मू और कश्मीर एक विवादास्पद क्षेत्र है जिसे अंतर्राष्ट्रीय मान्यता हासिल है और राष्ट्र संघ सुरक्षा परिषद द्वारा प्रतिस्थापित है। भारत सरकार का कोई भी एकतरफा कदम इसके विवादास्पद दर्जे को नहीं बदल सकता है। इसे जम्मू कश्मीर की जनता भी नहीं बर्दाश्त करेगी । इस अंतरराष्ट्रीय विवाद का एक पक्ष होने के कारण पाकिस्तान इस गैरकानूनी कदम का विरोध करने के लिए सभी प्रकार के अधिकारों का उपयोग करेगा।" पाकिस्तान ने कहा है कि वह कश्मीर के हित के लिए सभी तरह के राजनीतिक कूटनीतिक और नैतिक समर्थन देने के लिए प्रतिबद्ध है। आशंका है कि पाकिस्तान इस मामले को राष्ट्र संघ सुरक्षा परिषद में भी ले जा सकता है साथ ही वह ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन से भी मदद ले सकता है।
रविवार को राष्ट्र संघ ने नियंत्रण रेखा पर तनाव को देखते हुए दोनों देशों से कहा है कि वह संपूर्ण संयम बरतें। उधर, प्रधानमंत्री इमरान खान ने दुबारा कहा है कि वे अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से कश्मीर मामले में मध्यस्था करने को कहना चाहते हैं।
कुल मिलाकर हालात बिगड़ते जा रहे हैं और इसका भविष्यत परिणाम क्या होगा यह तो समय ही बताएगा। लेकिन चारों तरफ एक खास किस्म की आशंका व्याप्त है । वैसे भारतीय जन में इसे लेकर व्यापक हर्ष है और आम लोग मोदी की प्रशंसा कर रहे हैं। फिर भी आशंका के धब्बे साफ दिखाई पड़े हैं और पर्वतराज की घाटियों से स्वर आ रहा है:
ललाट-चत्वर-ज्वलद्धनंजय-स्फुलिंगभा- निपीत-पंच-सायकं-नमन्नि-लिम्प-नायकम् सुधा-मयूख-लेखया-विराजमान-शेखरं महाकपालि-सम्पदे-शिरो-जटाल-मस्तुनः ॥
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