मोदी जी के राज में कानून सर्वोच्च
राजनीति में जरा भी दिलचस्पी रखने वाले भारतीयों में से बहुतों का दिल- दिमाग गुरुवार को इसी के इंतजार में लगा रहा कि आखिर पी चिदंबरम का क्या हुआ? अदालत ने उन्हें जमानत दी या हिरासत में भेज दिया? शाम तक बेचैनी बढ़ गई। अंत में खबर आई कि विशेष कोर्ट ने भारत के पूर्व गृहमंत्री एवं पूर्व वित्त मंत्री को आईएनएक्स घोटाले में चार दिन की हिरासत में भेज दिया है। इसके पहले जब उनकी गिरफ्तारी हुई थी तो उस समय जो नाटक हुआ था वह हमारे देश की दृश्यरतिक जनता के लिए काफी दिलचस्प था। जैसा कि सबको मालूम है और जैसी खबरें आई हैं उसके अनुसार 27 घंटे तक चिदंबरम की कोई खोज खबर नहीं थी और जांच एजेंसियां तथा मीडिया उसे खोजने में परेशान रही। 27 घंटे के बाद पी चिदंबरम कांग्रेस मुख्यालय में प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान प्रगट हुए और वहां उन्होंने एक लिखित भाषण पढ़ा जिसमें पहले ही हिदायत दी गई थी कि इसकी समाप्ति के बाद कोई सवाल नहीं पूछे। उनके साथ दो बड़े वकील, कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी , थे। यह दोनों कांग्रेस के बड़े नेता भी हैं । अपने बेहतरीन बयान में चिदंबरम ने कहा कि वे कानून से भाग नहीं रहे थे बल्कि सुरक्षा चाह रहे थे। उन्होंने कहा कि बीते हुए वक्त में वे वकीलों से राय ले रहे थे । चिदंबरम ने भारतीय संविधान की धाराओं का भी उल्लेख किया। उनका कहने का अंदाज और बयान का सार कुछ ऐसा था जो 1775 में पेट्रिक हैनरी के विख्यात बयान से मिलता था। उस बयान में हेनरी ने कहा था कि "मुझे आजादी दीजिए या फिर मौत दे दीजिए।" इसके बाद चिदंबरम एक गाड़ी में बैठ कर अज्ञात स्थान की ओर चल पड़े। वहां मौजूद रिपोर्टरों को लगा कि चिदंबरम फिर खिसक गए। लेकिन ऐसा नहीं हुआ । वह अपने घर आए उनके साथ कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी भी थे । तीनों घर के सिंह द्वार से प्रविष्ट हुए और भीतर जाकर लापता हो हो गए। केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) और प्रवर्तन निदेशालय ( ईडी) के अधिकारी हैरान कि कहीं चिदंबरम पिछवाड़े से निकल तो नहीं गए । बाद में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो के अफसर दीवार फांद कर भीतर आए। लगभग 10:45 बजे रात में उन्हें हिरासत में लिया जा सका।
उनकी इस तरह गिरफ्तारी को लेकर कई जगह सवाल उठाए जा रहे हैं और कांग्रेस काफी चीख- पुकार मचाए हुए है। दिल्ली हाईकोर्ट ने इस मामले में चिदंबरम को इसका सरगना बताया था या हाई प्रोफाइल केस नीरव मोदी और विजय माल्या के केस से मिलता जुलता था। लेकिन कुछ विशेषज्ञों का मानना है यह मामला नीरव मोदी और विजय माल्या के मामले से बिल्कुल अलग था। यह मसला बैंक को धोखा देने का नहीं था, बल्कि सरकारी कामकाज में अपने लाभ के लिए अधिकार के दुरुपयोग का था। अब यहां प्रश्न उठता है कि क्या चिदंबरम की गिरफ्तारी भारतीय राजनीति में एक नया मोड़ लाएगी। यकीनन यह केवल दिखावा नहीं है ,नई जुमलेबाजी भी नहीं है। इसके प्रभाव बहुत गहरे होंगे। अगर लुटियंस में चल रही कानाफूसी पर यकीन करें तो चिदंबरम अछूत हो गए है । केवल इसलिए नहीं कि अदालत ने इनकी गिरफ्तारी को 15 महीने तक टाल दिया था बल्कि कुछ भीतरी ताकतें भी थी जो उन्हें गिरफ्तार होने से बचा रही थी। वर्षों तक अफसरशाही - न्यायपालिका के शीर्ष पदों पर बैठे लोगों के साथ आमद- रफ़्त और उद्योग- व्यापार के अगुआ लोगों के साथ उठ- बैठ ने उन्हें असीम ताकत प्रदान की थी। पी चिदंबरम कांग्रेस की संस्कृति के उदाहरण थे । वे एक ऐसी हस्ती थे जिसके करीब कोई स्कैंडल फटकने का साहस नहीं कर सकता था। यहां एक कि सुब्रमण्यम स्वामी जैसे लोग भी उन्हें फंसा नहीं पाए थे। कुछ लोग तो यह दावा करते थे की कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी दो ऐसे वकील और कांग्रेस के नेता हैं जो मिल जाएं तो कानून की नाक में दम कर सकते हैं। यह सब रातोंरात बदल गया। और अब जो हुआ इससे तो ऐसा लगता है कि कानून से ऊपर कोई नहीं है। नरेंद्र मोदी की प्रतिबद्धता कि कानूनी रूप में दोषी विपक्षी नेताओं को बख्शा नहीं जाएगा। यह साबित होती जा रही है । अब 5 गांधी परिवार से लोगों की बारी है? यह तो समय बताएगा। लेकिन यदि चिदंबरम को सजा हो गई तभी इससे एक स्पष्ट संदेश जाता है कि मोदी और शाह की जोड़ी विपक्ष को खत्म करने देने के लिए जूझ रही है। यहां एक बहुत ही बारीक रेखा है जो यह विभाजित करती है कि क्या केवल विपक्ष इसके शिकार होंगे या फिर दोनों पक्ष के लोग? दुनिया यकीनन इसे देख रही है और इसकी प्रशंसा कर रही है। भारत कानून के शासन कायम रखने में सक्षम है । सरकार का यह कदम शासक और शासित के बीच भरोसा पैदा करने में बहुत कामयाब होगा। सरकार के इस कदम से साबित हो रहा है कि आज के भारत में कानून सर्वोच्च है।
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