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Sunday, August 25, 2019

अलविदा अरुण

अलविदा अरुण

दिवंगत अरुण जेटली का रविवार को नई दिल्ली के   निगमबोध घाट  अंतिम संस्कार  उनका  पार्थिव शरीर पंचतंत्र विलीन हो गया।महज 15 वर्षों में 51 वर्ष से 56 वर्ष की उम्र के बीच अरुण जेटली ने ऐसी गंभीर बीमारियों का मुकाबला किया जिसका शायद ही  सार्वजनिक जीवन के किसी व्यक्ति ने अनुभव किया हो। लेकिन कभी क्या किसी ने उन्हें यह कहते सुना की वह गंभीर रूप से बीमार हैं या कभी किसी ने उन्हें लाचार और पीड़ित देखा? शायद नहीं। शायद ही कोई ऐसा मिला हो जो जानता हो इस बीमारी का अंत मौत है लेकिन खुश रहता हो। ऐसा केवल फिल्मों में होता है। जैसे राजेश खन्ना ने आनंद में किया। वास्तविक जीवन में शायद ही कभी ऐसा देखा गया है।  बिस्तर पकड़ने से पहले उनके ह्रदय का चार बार ऑपरेशन हुआ। इसके बाद सीने में इंफेक्शन हो गया। मधुमेह की बीमारी को नियंत्रित करने के लिए वजन कम करने के उद्देश्य से ऑपरेशन किया गया। किडनी बदली गई तथा न्यूयॉर्क स्लोन कैटरिंग अस्पताल में लंबा इलाज चला। उनकी जांघ और घुटने के बीच कैंसर के ऊतक थे जिसे निकालने की कोशिश की थी अमरीकी डॉक्टरों ने। उन्होंने समझा कि उन्होंने ऊतक को निकाल दिया है लेकिन वह वहीं छुपा बैठा था। वे सियासत से दूर होते गए लेकिन महत्वपूर्ण राजनीतिज्ञ उनसे दूर नहीं हुए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हर शाम फोन करके उनके स्वास्थ्य की जानकारी लेते रहते थे।
           उनके भीतर जिजीविषा का यह आलम था कि इतने बीमार होने के बावजूद वे विगत 7 अगस्त की रात सुषमा स्वराज की मौत के बाद उन्होंने ट्वीट किया "वे दुखी हैं और खुद को टूटा हुआ महसूस कर रहे हैं।" सुषमा स्वराज से वह केवल 1 वर्ष छोटे थे और दोनों 1 पखवाड़े के भीतर काल के गाल में समा गए। ऐसा संजोग केवल उपन्यासों में ही होता है। दोनों ने जयप्रकाश नारायण के आंदोलन  के साथ अपना करियर एक साथ आरंभ किया था। अगर भाजपा का ऐसा स्वरूप बनाने में  अटल बिहारी बाजपेई और लालकृष्ण आडवाणी की भूमिका मानी जाती है तो जेटली विकास के विभिन्न चरणों को जोड़ने वाली सीढ़ी माने जाते थे। जेटली के कालक्रम के दूसरे नेता जैसे सुषमा स्वराज और अन्य  भाजपा के हिंदुत्व  , अपरिवर्तनकारी राजनीति तथा जनता के बीच भारी लोकप्रियता जैसे सिद्धांतों के प्रतीक थे। जेटली थोड़े अलग थे। उनमें एक खास किस्म की ताजगी थी । अगर राजनीति विज्ञान की भाषा में कहें तो वे भाजपा के अत्यंत हाई प्रोफाइल उदारवादी नेता थे। जेटली अपने साथ किसी पार्टी के नेता को लेकर नहीं आये लेकिन उदारवादियों में,  प्रगतिशील जमात में और भाजपा विरोधी क्षेत्रों में भी वे स्वीकार्य थे। इस मामले में वे पार्टी के अन्य नेताओं से अलग थे। बेशक जेटली भाजपा के  अत्यंत लोकप्रिय नेताओं में से एक थे लेकिन उन्होंने कभी भी खुद को सार्वजनिक राजनीति का नेता नहीं कहा।  वे सुषमा स्वराज की भांति वक्ता नहीं थे और ना ही बाजपेई जी की तरह कवि थे लेकिन वे अपने शब्दों का बड़ी चालाकी से चयन करते थे तथा आराम से बोलते थे। उनके भाषण में उनका ज्ञान झलकता था। उनकी कुशलता ही थी जिसने भाजपा के लिए उन्हें अपरिहार्य बना दिया था।
        मोदी और अमित शाह 2014  में जब सत्ता में आए तो दिल्ली उनके लिए दूसरी दुनिया थी। यहां अरुण जेटली ही इस दुनिया से उनके लिए कड़ी के रूप में काम कर रहे थे खास करके मीडिया के मामले में । अगर मोदी आक्रामक थे और अंग्रेजी में उतने कुशल नहीं थे तो जेटली उतने ही शांत थे तथा लोकप्रिय। वे हमेशा उपलब्ध रहने वाले थे। कई मामलों में वे पार्टी के संकटमोचक थे तथा प्रतिद्वंद्वियों से संबंध बनाने में अत्यंत कुशल थे। राजनीति, अफसरशाही और कानून की दुनिया के अत्यंत महत्वपूर्ण हस्तियों के बीच वे मित्रवत थे। जेटली मोदी सरकार के पहले दौर में वित्त मंत्री रहे। वाजपेई सरकार में भी महत्वपूर्ण पद पर थे। मोदी सरकार के दो शासनकाल में वे रक्षा मंत्री, कॉरपोरेट मामलों के मंत्री , वाणिज्य और उद्योग मंत्री तथा कानून और न्याय मंत्री रह चुके थे। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता थे और उन्हें 1989 में अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल नियुक्त किया गया था । वे चार बार राज्यसभा के सदस्य रहे हैं और 2009 से 14 के बीच राज्यसभा में विपक्ष के नेता की हैसियत से भी उन्होंने अपनी भूमिका निभाई थी। दिल्ली जिला क्रिकेट एसोसिएशन के प्रेसिडेंट भी रह चुके थे। जब वे वित्त मंत्री थे तो उन्होंने कर सुधार की दिशा में बहुत काम किया। खास करके जीएसटी उन्हीं के शासनकाल में 2017 में लागू हुआ। जेटली की देखरेख में ही रेल बजट और आम बजट को मिलाया गया।
        लोकप्रिय और सुलभ नेता की प्रशंसा होती है तो उसके साथ कई विवाद भी जुड़ जाते हैं । उनके साथ भी ऐसा ही हुआ। यहां तक कि विजय माल्या जैसे लोगों ने कहा कि भागने के पहले उन्होंने मामले को रफा दफा करने के लिए जेटली से मुलाकात की थी। लेकिन बाद में यह सब गलत साबित हुआ। क्योंकि उसकी और जेटली की मुलाकात राज्यसभा में यूं ही चलते चलते हो गई थी। जेटली के समक्ष मुश्किलें आई और उन्होंने बहुत कुशलता से उन्हें हल कर दिया या उन्हें पराजित कर दिया। अब तो बस इतना ही कहा जा सकता है कि
    कश्ती चलाने वालों ने
  जब हार कर दी पतवार  हमें
  लहर - लहर तूफान मिले
  मौज- मौज मझधार हमें
  फिर भी दिखाया है हमने
और फिर यह दिखा देंगे सबको
इन हालातों में आता है
दरिया पार करना हमें।

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