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Wednesday, August 28, 2019

रिजर्व बैंक के कदम के बाद राजनीति गरमाई

रिजर्व बैंक के कदम के बाद राजनीति गरमाई

वित्त मंत्री  निर्मला सीतारमण ने  गिरती अर्थव्यवस्था को  संभालने के लिए  हाल में   कुछ ऐलान किए थे तो उस समय  सब का सवाल था  की  इसके लिए  पैसा कहां से आएगा? विशेषज्ञों का मानना था  कि  नगदी की कमी के कारण  देश मंदी की ओर जा रहा है और अगर  सरकार को  अपने वादे  पूरे करने हैं  तो उसे पैसे का प्रबंध करना पड़ेगा। इसी प्रबंध के नाम पर रिजर्व बैंक से सरकार ने रुपए मांगे और इसके लिए कई आर्थिक कदम उठाए गए। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने सरकार को एक लाख 76 हजार करोड़ का सरप्लस ट्रांसफर करने का फैसला किया है। आरबीआई की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि केंद्रीय बोर्ड की बैठक में स्वीकार किए गए  रिवाइज्ड इकोनामिक कैपिटल फ्रेमवर्क के मुताबिक अतिरिक्त ट्रांसफर में साल 2018- 19 का 1 लाख 23 हजार 414 करोड़ रुपए सरप्लस और 52 हजार 637 करोड़ रुपए अतिरिक्त प्रावधानों से आया पैसा शामिल है । अब तक सरकार को रिजर्व बैंक की ओर से लाभांश के तौर पर 60-65 हजार करोड़ रुपए दिए जाते थे इससे अब बढ़ाकर 23 लाख हजार करोड़ रुपए कर दिया गया है। एक तरह से यह दुगनी वृद्धि है । बैंक की विज्ञप्ति में कहा गया है के पूर्व गवर्नर विमल जालान की अध्यक्षता में गठित  कमेटी की सिफारिश पर रिजर्व बैंक ने यह फैसला किया है । आरबीआई सेंट्रल बोर्ड ने कमेटी की सभी सिफारिशों को स्वीकार कर लिया। रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर विमल जालान की अध्यक्षता में 6 सदस्य कमेटी का गठन इस उद्देश्य से किया गया था कि वह इस बात का आकलन करे कि बैंक कितनी रकम सरकार को दे सकती है और कितनी रकम अपने पास रख सकती है। केंद्र सरकार और रिजर्व बैंक के बीच  मतभेद हो चुके हैं। इसी मतभेद के कारण गवर्नर उर्जित पटेल को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था। दिसंबर 2018 में गतिरोध के बाद रिजर्व बैंक के कैपिटल फ्रेमवर्क की समीक्षा के लिए बैंक और सरकार ने मिलकर कमेटी का गठन किया और इसका अध्यक्ष पूर्व गवर्नर बिमल जालान को बनाया गया।
       रिज़र्व बैंक से मिले इस धन से सरकार को मौद्रिक घाटा कम करने में आसानी होगी। सरकार ने चालू बजट में लाभांश और रिजर्व कैपिटल के तौर पर सिर्फ 90 हजार करोड़ रुपए का प्रावधान किया था लेकिन अब आरबीआई को इस साल 58 हजार करोड़ रुपए की अतिरिक्त आय होंगे। अब तक आरबीआई अपनी आरक्षित पूंजी का 12 प्रतिशत ही अपने पास रखती थी अब उससे कहा गया है कि वह 5.30 से 6.30 प्रतिशत के बीच ही पूंजी रखे। कमेटी की सिफारिश के बाद बैंक ने सुलझाए गए 5:30 से 6:30 प्रतिशत का निचला हिस्सा पकड़ा आरबीआई को अगर अपनी स्वायत्तता दिखानी होती या बैलेंस शीट की ज्यादा चिंता होती है तो वह यह साढे 6 प्रतिशत रखती। ऐसा करने से सरकार को थोड़े कम पैसे हासिल होते। मौजूदा हालात में सरकार को पैसों की बहुत जरूरत थी और ऐसे में आरबीआई के फैसले  से उसे बहुत बड़ी राहत मिली है। सरकार के हाथ में कुछ पैसे आ गए हैं । आरबीआई के इस फैसले के बाद कहा जा सकता है कि बैंक और केंद्र सरकार के बीच मतभेद खत्म हो गए हैं ।लेकिन एक सवाल ये भी है कि क्या आरबीआई पहले की तरह स्वायत्त है?
         आरबीआई के इस ऐलान के बाद विपक्षी राजनीति गरमा गई है। विपक्षी नेता खासकर कांग्रेस के नेता तरह-तरह  के बयान दे रहे हैं । जयराम रमेश ने ट्वीट किया कि "उर्जित पटेल और विरल आचार्य डटे हुए थे तो उन्हें जाने पर मजबूर कर दिया गया। तब आरबीआई के किले में सेंध लगी थी और अब किला ही ध्वस्त हो गया। रिजर्व बैंक अपने ही फलसफे के खिलाफ चला गया। सरकार को कुछ फंड मिला लेकिन किस कीमत पर?"
       कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्वीट किया कि" प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री के पास उनके खुद के द्वारा गढ़े गए आर्थिक संकट का अब कोई समाधान नहीं दिख रहा है। आरबीआई से चोरी करने से काम नहीं चलेगा। यह डिस्पेंसरी से बैंड ऐड खरीद कर गोली लगने का उपचार करने जैसा है।" कांग्रेस के मीडिया प्रमुख रणदीप सिंह सुरजेवाला ने इस कदम को राजकोषीय आत्महत्या बताया।          राहुल गांधी के चोरी करने के आरोप का जवाब देते हुए वित्त मंत्री से निर्मला सीतारमण ने कहा कि उन्हें ऐसे आरोपों की परवाह नहीं है। राहुल गांधी को इस तरह के आरोप लगाने से पहले अपनी पार्टी के वित्त मंत्रियों से बात करनी चाहिए थी। वित्त मंत्री ने कहा कि रिजर्व बैंक कमेटी पर उंगली उठाना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। कांग्रेस को आरबीआई की छवि पर कीचड़ नहीं उछालना चाहिए । राहुल गांधी को ऐसे आरोप लगाने से पहले सोचना चाहिए। जब भी उन्होंने आरोप लगाए हैं खासकर के चोर चोरी आदि तो जनता ने उन्हें करारा जवाब दिया है। बार-बार वैसे ही शब्दों का इस्तेमाल क्या जरूरी है?
    

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