पाकिस्तान को अब डर लगने लगा है
बालाकोट हमले के बाद भारतीय सेनाध्यक्ष जनरल बिपिन रावत ने सरकार को प्रमुख लोगों को यह बता दिया था कि पाकिस्तान के आशंकित किसी भी हमले का जवाब देने के लिए हमारी सेना तैयार है। यह तैयारी ऐसी है कि अगर पाकिस्तान ने कोई पहल की तो उसके घर में घुसकर भी मारा जा सकता है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान वैसे तो पहले से ही घबराए हुए हैं लेकिन कश्मीर में धारा 370 हटाए जाने के बाद से उनकी घबराहट और बढ़ गई है उन्होंने इस वर्ष नवंबर में रिटायर होने वाले पाकिस्तानी सेना प्रमुख कमर जावेद बाजवा का कार्यकाल बढ़ा दिया है। जबकि इमरान खान इसके खिलाफ हुआ करते थे। विशेषज्ञों का मानना है कि ताजा स्थिति को देखते हुए यह कदम उठाया गया है। विदेश मंत्री शाह महमूद कसूरी मे कहा है के क्षेत्रीय स्थिति को देखते हुए यह जरूरी था।
ताजा स्थिति में भारत विरोधी माहौल तैयार करने की पाकिस्तान की कोशिशों के परिप्रेक्ष्य में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को अमरीका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप से टेलीफोन पर बातचीत की और कहा कि कुछ क्षेत्रीय नेता भारत के विरोध में हिंसा भड़काने की कोशिश कर रहे हैं। यह शांति के लिए अशुभ संकेत है। लगभग आधे घंटे तक चली इस वार्ता में दोनों नेताओं ने कई प्रमुख द्विपक्षीय तथा अंतरराष्ट्रीय मसलों पर बातचीत की। कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने के बाद पाकिस्तान पर भारी दवाब आ गया है कि वह इस मसले को कैसे बनाए रखता है । हालांकि यह दबाव 1971 वाले दबाव के मुकाबले थोड़ा कम है लेकिन 2011 की तुलना में कहीं बहुत ज्यादा है। बहुत लोगों को याद होगा की 1971 की जंग में पाकिस्तान का पूर्वी हिस्सा ही एक तरह से हाथ से जा चुका था। 2011 में अमरीकी सेना ने ओसामा बिन लादेन को मारने के लिए ऑपरेशन किया था। आज पाकिस्तान की चिंता अपनी सुरक्षा की नहीं है बल्कि उसकी कल्पना में जो खास मसला है उसके प्रति वह चिंतित है। पाकिस्तान चाहता है कि यह मामला अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उभरे लेकिन कुछ हो नहीं पा रहा है। दूसरी तरफ, देश के भीतर विरोध प्रदर्शन के बारे में उसे कोई दिलचस्पी नहीं है क्योंकि पाकिस्तान के भीतर जो भी विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं उसमें गुस्सा नहीं दिख रहा है। पाकिस्तान के भीतर अगर आम विरोध प्रदर्शन होता है तो उससे कई नए नेता सामने आएंगे, जो पाकिस्तान नहीं चाहता। पाकिस्तान में अगर बहुत ज्यादा विरोध प्रदर्शन होता है तो सेना पर भी दबाव पड़ सकता कि वह भारत पर हमला करे। उधर इमरान खान की मुजफ्फराबाद यात्रा के दौरान अधिकृत कश्मीर के प्रधानमंत्री फारुख हैदर ने भावुक होकर कहा था कि लाखों कश्मीरी लोग नियंत्रण रेखा को पार करने के लिए और भारतीय सेना परास्त कर कश्मीर घाटी पर कब्जा करने के बेताब हैं। हैदर की भावुकता उनकी निराशा को बता रही है। यद्यपि हैदर का मनोवैज्ञानिक प्रयास था कि सेना सामने आए और इस मसले को संभाले। उधर कारगिल हमले के बाद पाकिस्तानी सेना को यह मालूम हो गया था कि सीधी सैनिक कार्रवाई कोई विकल्प नहीं है। पाकिस्तान के विदेश मंत्री ने तो यहां तक कबूल किया है कश्मीर मामले की ओर दुनिया का ध्यान आकर्षित करने क्षमता हम में कम है । भारत के बटवारे का जो अपूर्ण मुद्दा है उसे खत्म करने की पाकिस्तानी सेना की क्षमता में नाटकीय रूप से गिरावट आई है। खासकर कारगिल युद्ध के बाद तो इसमें बहुत ज्यादा गिरावट आई। इस युद्ध में नॉर्दर्न लाइट इन्फेंट्री का उपयोग किया गया था। पाकिस्तान की सेना कभी भी हालात या कहें यथास्थिति बदलने में कामयाब नहीं हो सकी 1999 के बाद जिहादियों ने इसमें बड़ी भूमिका निभाई लेकिन जिहादियों की क्षमता में भी गिरावट आ गई है। अब बाजी कश्मीरी जनता के हाथ में है और सारी दुनिया इसे देख रही है।
पाकिस्तान के पास दो ही विकल्प रह गए हैं। एक तो उसे लंबा इंतजार करना होगा। इतना लंबा इंतजार कि पश्चिमी दुनिया को पाकिस्तान की जरूरत महसूस होने लगे। यह बहुत ही कठिन स्थिति होगी अथवा नामुमकिन है या फिर पाकिस्तान को चीन से अपने संबंध और प्रगाढ़ करने होंगे, ताकि वह वैश्विक जिओ पॉलिटिक्स में पाकिस्तान की तरफ से ना केवल हिमायत कर सके बल्कि कल्पनाशील ढंग से कूटनीतिक चाल चल सके। यकीनन पाकिस्तान की सफलता अब भारत से फौजी मुकाबले में नहीं भारत में खासकर कश्मीर में मानवाधिकार स्थिति पर निर्भर करती है। पाकिस्तान की मदद अब ना उसकी सेना कर सकती है और ना ही वे जिहादी जिन्हें वह अब तक पालता आया है। ऐसी स्थिति से पाकिस्तान को अब डर लगने लगा है। पाकिस्तान अपने इतिहास की सबसे विकट मोड़ पर है।
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