इमरान खान! भारत बदल चुका है!!
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को अमरीका की यात्रा से लौटे और राष्ट्रपति डोनल ट्रंप द्वारा कश्मीर पर मध्यस्थता करने की पेशकश के बमुश्किल एक पखवाड़ा भी नहीं गुजरा होगा कि भारत सरकार ने कश्मीर में लागू धारा 370 और 35 ए को समाप्त कर दिया। इमरान खान बेचारगी भरे गुस्से में आग बबूला होते रहे । यही नहीं जब इमरान खान डलास हवाई अड्डे पर पहुंचे तो कथित रूप से अमरीकी प्रशासन का कोई भी बड़ा अधिकारी उनकी अगवानी के लिए वहां नहीं था । इसके विपरीत प्रधानमंत्री इमरान खान के साथ गए पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल बाजवा को गार्ड ऑफ ऑनर मिला और जब वे पेंटागन पहुंचे तो इक्कीस तोपों की सलामी दी गई । सेना की संयुक्त कमान के अध्यक्ष जोसेफ एफ डनफोर्ड मे उनकी अगवानी की। उन्होंने राष्ट्रपति ट्रंप और अमरीकी विदेश सचिव माइक पॉम्पियो से खास मुलाकात की। अमरीकी और बाकी दुनिया के लोग यह बखूबी जानते हैं कि पाकिस्तान में सत्ता किसके हाथ में है। इस बार भी अमेरिकीयों ने कोई गलती नहीं की। इस सबके बावजूद पेंटागन ने पाकिस्तान के एफ 16 युद्धक विमानों के लिए 12.5 करोड़ अमेरिकी डॉलर की तकनीकी तथा अन्य सहायता दी।
इन सब के परिप्रेक्ष्य में धारा 370 हटाए जाने मामले में इमरान खान और पाकिस्तानी फौज भारत के खिलाफ अपना गुस्सा दिखाएगी यहां तक कि अगर सचमुच वे कुछ नहीं कर सकते फिर भी वे ऐसा दिखावा करेंगे कि वह कुछ कर रहे हैं। अगर ऐसा नहीं करते हैं तो उनके यहां विपक्षी दल , जिहादी और सेना गड़बड़ी पैदा कर देगी। यह सब लज्जित होने के बाद बेकरारी भरे गुस्से से उपजा आचरण है। पाकिस्तान राष्ट्र संघ सुरक्षा परिषद, अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में जाने की धमकी दे रहा और ओआईसी में गुहार लगा चुका है फिर भी अंतरराष्ट्रीय समुदाय चुप है। अगर पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने कोई कदम उठाता है या भारत के इस कदम को चुनौती देता है तो यह कुछ वैसा ही होगा जैसे कोई देश एक हाथ में भीख का कटोरा और दूसरे हाथ में चाकू ले कर घूम रहा हो। इमरान खान भारत के खिलाफ आर्थिक प्रतिबंध लगा सकते है और भारत को भूखा मारने की खोखली धमकी दे सकते हैं। भारत सरकार से कह सकते हैं कि धारा 370 को फिर से लागू करें । अगर वह ऐसा करते हैं तो यह भारत के लिए राहत होगी। क्योंकि हमें कूटनीतिक विवरणों की तरफ नहीं जाना पड़ेगा। क्योंकि पाकिस्तान हर दम कूटनीतिक विवरणों के गलत मायने निकालता है। पाकिस्तान विभिन्न अंतरराष्ट्रीय समुदाय के दरवाजे खटखटा सकता है। हो सकता है मनोवैज्ञानिक युद्ध आरंभ कर दे और कश्मीर में अशांति फैला दे। जिसका सबूत कश्मीर में जैश के आतंकियों के प्रवेश की खबर से प्रतीत होता है। या फिर ,वह करतारपुर गलियारे को बंद कर दे जैसा कि उसने समझौता एक्सप्रेस के साथ किया। यकीनन पाकिस्तान अपने देश में ट्रेंड और अफगानिस्तान के कुछ हिस्सों में लड़ चुके 30 - 40 हजार आतंकियों को भी छुट्टा छोड़ सकता है। अब इमरान खान के पास एक विकल्प है कि वह अमरीका और ब्रिटेन को अमान्य कर दे और आतंकियों को खुला छोड़ दे, अथवा वह पाकिस्तानी सेना को अमान्य कर दे और सभी आतंकी शिविरों को बंद करने का आदेश दे। क्योंकि, पाकिस्तानी सेना भारत के साथ जंग नहीं लड़ सकती। फिलहाल जैसी स्थिति है उसमें अमरीका तथा अन्य देशों ने कश्मीर के मामले को भारत का आंतरिक मामला बताया है अब केवल चीन ही एक बड़ा देश है जो इस मामले को शांतिपूर्ण बातचीत से हल करने की वकालत कर रहा है। भारत ने अभी तक चीन में उइगर मुसलमानों पर चल रहे हो हमलों के प्रति किसी तरह का कोई बयान नहीं जारी किया है लेकिन अब वक्त आ गया है कि हम चीन को भी जवाब दें और बिल्कुल ताकतवर ढंग से तथा तीखे अंदाज में जवाब दें। पाकिस्तान और भारत के बहुत से लोग नरेंद्र मोदी की इस खूबी को समझने में नाकामयाब हो गए हैं। वह है हैरत में डाल देने की उनकी खूबी। वह किसी को भी हैरत में डाल सकते हैं। चाहे वह अपने शपथ ग्रहण समारोह में सार्क के नेताओं को आमंत्रण हो या नवाज शरीफ की पोती की शादी में अचानक पहुंच जाना और बधाई देना हो। इससे पाकिस्तानी जनरल थोड़े नाराज हो गए थे और उन्होंने कई आतंकी हमले भी करवाए थे। उसी तरह उरी और पुलवामा हमला के प्रति प्रतिक्रिया से साफ जाहिर होता है कि भारत बदल चुका है इससे पता चलता है कि भारत जंग से नहीं डरता लेकिन शुरू नहीं करेगा।
अब धारा 370 और 35 ए कानून की किताबों से बाहर हो गए। यह एक संपूर्ण रूप से कानूनी प्रक्रिया थी। क्योंकि भारत ने इसे 1954 में लागू किया था और अब उसे हटा दिया गया। दोनों कार्रवाइयां एकतरफा थीं। इसमें कहीं भी राष्ट्र संघ वगैरा कुछ नहीं था। अगले कुछ सप्ताह बहुत सावधान रहना होगा। सड़कों पर वाहन सामान्यतया चल रहे हैं और मस्जिदों में नमाज भी अदा की जा रही है। यह सब सकारात्मक संकेत हैं। इस सामान्य स्थिति को वास्तविक शांति समझने की गलती नहीं होनी चाहिए। अफवाहबाजों से सावधान रहना होगा। यह एक ऐसा खेल है जिसमें जो पहले मारेगा वह जीतेगा बाद में बकबक से कुछ नहीं होने वाला है। इसलिए सुरक्षा उपायों में ढील नहीं दिया जाना उचित है। नागरिकता के मामलों को सुलझाने का काम, कश्मीरी पंडितों की वापसी और जम्मू कश्मीर चुनाव जितनी जल्दी हो सके हो कराया जाना चाहिए। फिर भी यह सब रात तो हो नहीं सकता है । हमने 70 वर्षों तक प्रतीक्षा की थोड़े दिन और कर लेंगे।
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