अपना टाइम आ गया है
स्वाधीनता दिवस की 73 वी वर्षगांठ पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले से देश को संबोधित किया तो उनके बॉडी लैंग्वेज से लेकर शब्दों के चयन और हालातों के बयान तथा आने वाले दिनों की योजनाओं के बारे में उनकी बातों ऐसा लगा कि भारत को एक महाशक्ति बनने का समय आ गया। वैसे भी जो नकारात्मक सोच के लोग हैं वे साल दर साल की उपलब्धियों को गिनते हैं, लेकिन किसी देश के इतिहास में खासकर भारत जैसे प्राचीन सभ्यता वाले देश के इतिहास में काल की गणना दशकों में नहीं सदियों में होती है। भारत के आजाद हुए मात्र 72 वर्ष हुए हैं और इतिहास में काल गणना के लिहाज से यह एक नया देश है। ऐसे में जरूरी है कि इतिहास के भविष्यत गलियारों में उत्पन्न होने वाली चुनौतियों और अवसरों का विश्लेषण किया जाए। मौर्य काल के बाद भारत एक विशेष किस्म के व्यामोह में फंस गया। बाद में वह मध्य एशिया के आक्रमणकारियों तथा यूरोप के बंदूकधारी व्यापारियों के कब्जे में आ गया। इन हालातों ने एक मनोवैज्ञानिक प्रभाव पैदा किया । आज भी हमारा देश उसी प्रभाव की खिड़की से खुद को और दुनिया को देखता है। अब भारत इस हालत से खुद को मुक्त कर रहा है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बातें कर रहा है तथा उन महा शक्तियों की बराबरी करने जा रहा है जो कल तक हमें हीन समझते थे। देश एक मृदु सत्ता की श्रेणी से उठकर एक दृढ़ शक्ति के रूप में खुद को स्थापित करने की स्थिति में आ गया है। धारा 370 को समाप्त किया जाना हमारे देश की इसी दृढ़ता का प्रमाण है।
लाल किले से राष्ट्र को लगातार अपने छठे संबोधन में प्रधानमंत्री ने कहा, "हम समस्याओं को टालते नहीं, पालते नहीं" , यह जुमला जन कल्याण के लिए उनकी दृढ़ता और संकल्प को प्रतिध्वनित करता है। इससे साफ जाहिर होता है कि भारत की सत्ता कठिन समस्याओं से कतरा कर निकलने वाली नहीं है वह उनका भी समाधान करेगी । मोदी जी ने तीन तलाक और कश्मीर में धारा 370 को हटाए जाने के बारे में काफी कुछ कहा। उन्होंने कहा कि अब तक किसी को इन स्थितियों को बदलने क्या इस पर बात करने का साहस नहीं था। भाजपा सरकार ने इसे खत्म कर डाला। इसका विरोध करने वाले विपक्षी दलों को चुनौती देते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि अगर वे इसे इतना ही जरूरी समझते थे तो इन धाराओं को उन्होंने स्थाई क्यों नहीं किया, क्यों इसे अस्थाई रहने दिया। मोदी जी को मालूम था कि इन बातों पर विपक्ष की बोलती बंद हो जाएगी।
प्रधानमंत्री ने लाल किले की प्राचीर से स्वाधीनता दिवस के अपने संबोधन में देश के भविष्य के लिए रोड मैप भी पेश किया। उन्होंने कहा कि " हम देश को अगले 5 वर्षों में 5 खरब डालर की अर्थव्यवस्था बना देंगे। विगत 5 वर्षों में हमने अर्थव्यवस्था में एक अरब डालर की वृद्धि की है।" कुछ लोग उनकी इस बात की आलोचना करते हुए कहते हैं कि अर्थव्यवस्था के निराशाजनक तथ्य इस कथन की स्पष्ट रूप से खिल्ली उड़ाते हैं । कई क्षेत्र मंदी की मार से ग्रस्त हैं। बेरोजगारी बढ़ती जा रही है और बढ़ती हुई है वह पिछले 4 वर्षों में सबसे निचली अवस्था पर पहुंच गई है। कोई भी चाहे वह मोदी हों या अन्य ,आर्थिक विपदा को नहीं स्वीकार करता है । स्वाधीनता दिवस जैसे अवसरों पर उनकी अन्य बातों पर कैसे यकीन किया जाए।
मोदी जी ने कई और महत्वपूर्ण योजनाओं को गिनाया जिनमें ढांचा विकास परियोजनाओं में 101 खराब डालर के निवेश, जल शक्ति मिशन पर 3.5 खरब डालर का खर्च एवं "इज ऑफ डूइंग बिजनेस" के मामले में दुनिया के 50 देशों मैं शामिल होना। तीनों सेना के प्रमुख के पद का निर्माण और प्लास्टिक के उपयोग पर रोक के अभियान इत्यादि भी शामिल थे। उन्होंने कहा कि अब धीमी विकास का वक्त खत्म हो गया है। हमें और छलांग लगानी होगी। प्रधानमंत्री जो अक्सर स्वाधीनता दिवस के अपने भाषणों का बड़ी-बड़ी घोषणाओं के लिए उपयोग करते रहे हैं इस वर्ष भी उन्होंने जनसंख्या वृद्धि की समस्याओं पर बहुत देर तक अपने विचार रखे। परिवारों को सीमित करने का अनुरोध किया। यहां सवाल उठता है कि आने वाले दिनों में परिवार सीमित करने के लिए क्या किसी कठोर व्यवस्था को अपनाया जाएगा? अब यह तो समय ही बताएगा। प्रधानमंत्री ने कहा कि जनसंख्या विस्फोट आने वाली पीढ़ी के लिए अनेक संकट पैदा करेगा। उन्होंने कहा हमारे देश में एक जागरूक वर्ग ऐसा भी है जो इस बात को भलीभांति समझता है। तेजी से बढ़ती जनसंख्या को जनसंख्या विस्फोट का नाम दिया है। भारत की वर्तमान आबादी 130 करोड़ से भी ज्यादा है और यह बुरी तरह बढ़ रही है। इस समस्या पर हाल में जंतर मंतर में एक सभा का आयोजन किया गया था। क्या ट्रेजेडी है हमारे देश की कि एक विचारधारा विशेष के लिए आयोजित यह सभा एक धर्म विशेष के खिलाफ प्रोपेगेंडा का प्लेटफॉर्म बन गई। प्रधानमंत्री द्वारा जनसंख्या को काबू किये जाने की अपील को एक मजबूत पहल माना जा सकता है। देश में लंबे अरसे से "हम दो हमारे दो " का नारा चल रहा था। इसका असर नहीं दिख रहा था। आज मोदी जी की बात से ऐसा लग रहा है कि हमारा देश और हमारी सरकार भौतिक शास्त्र के पुराने सिद्धांतों को छोड़कर नवीन भौतिक शास्त्र जिसे "क्वांटम फिजिक्स " कहते हैं, उसके सिद्धांतों को पढ़ने लगी है। इसमें स्पष्ट है कि पृथ्वी की हर घटना एक दूसरे से संबद्ध होती है । उन्होंने यह स्वीकार किया है कि विकास और धन अगर छोटे समूहों में विभाजित किया जाए दो बेरोजगारी और गरीबी कम होगी। पहले नीति से संबंध सवाल उठाए जाते थे कि जनसंख्या नियंत्रण लोकतांत्रिक विचार कैसे हो जाएगा? बलात जनसंख्या नियंत्रण के उपाय चीन की तरह स्थिति पैदा कर देंगे। अभी तक "डेमोग्राफिक डिविडेंड" की बात चलती थी लेकिन यह व्यवस्था तभी संभव है जब शिक्षा, रोजगार और रोजगार के लायक बनाए जाने का हुनर एक साथ जुड़े। अब शायद ऐसा नहीं हो पा रहा है। आपातकाल के जमाने में जबरन परिवार नियोजन शुरू किया गया और आपातकाल असफल हो गया। यह पहला अवसर है जब प्रधानमंत्री परिवार को सीमित करने के लिए खुद प्रयास किए जाने की अपील कर रहे हैं। मोदी जी यह समझते हैं कि जब तक स्वयं प्रयास न किया जाए जनसंख्या नियंत्रण नहीं किए हो सकता और उसका लाभ नहीं मिल सकता। इसलिए प्रधानमंत्री ने इस पर कदम आगे बढ़ाने की जनता से अपील की यह एक समझदारी भरी पहल है लेकिन इसका प्रभाव बहुत देर से दिखेगा।
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