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Tuesday, August 13, 2019

सरकार चुस्त : अर्थव्यवस्था सुस्त

सरकार चुस्त : अर्थव्यवस्था सुस्त

कल हमारे देश का 75 वां स्वाधीनता दिवस है इस अवसर पर यकीनन सरकार की ओर से बड़ी-बड़ी बातें कहीं जाएंगी। जमीन से लेकर आसमान तक कई मिसाले गढ़ी जाएंगी और इसके बाद सब कुछ सामान्य हो जाएगा। लेकिन जो सबसे महत्वपूर्ण है वह है हमारे देश की अर्थव्यवस्था की सुस्ती। जिस पर शायद कल बातें ना हो और यदि होंगी तो उनमें  ढेर सारी चीजें ऐसी होंगी जिनका हकीकत से नाता नहीं है । आज सच यह है कि हमारे देश की अर्थव्यवस्था की रफ्तार बहुत धीमी है और  यह धीमापन भी वेग ह्रास  से ग्रसित मालूम पड़ रहा है । करीब 6 महीने पहले भारतीय बाजार के लगभग हर क्षेत्र में मंदी रही थी। आंकड़े कह रहे थे कि देश में बेरोजगारी 45 साल के सबसे ऊंचे स्तर पर है । लेकिन उस समय चुनाव का माहौल था और इस तरह की खबरें राजनीतिक सुर्खियों में नकारा साबित हुईं। आम चुनाव के बाद जब नई सरकार बनी और श्री नरेंद्र मोदी को निर्णायक जनादेश मिला तो अर्थशास्त्रियों को उम्मीद थी कि सरकार कुछ ऐसे कदम उठाएगी जिससे अर्थव्यवस्था की रफ्तार बढ़ेगी और माहौल खुशनुमा होगा। लेकिन इसका असर विपरीत हुआ । बजट के एक पखवाड़े के बाद ही अखबारों में खबर देखने को मिलने लगी है कि मंदी की ओर अर्थव्यवस्था बढ़ रही है फिर शेयर बाजार टूटने लगे। बेशक सरकार यह ना माने कि हालात बिगड़ रहे हैं लेकिन भीतर ही भीतर उसे अंदाजा लग चुका है। प्रधानमंत्री कार्यालय बेचैन है और ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि बजट के प्रावधानों में बदलाव लाए जाएंगे।
       मंदी को समझने के लिए किसी बड़े अर्थशास्त्री या अर्थशास्त्र का बहुत ज्ञान होने की जरूरत नहीं है। देश का व्यापारिक माहौल  भी इस ओर इशारा कर रहा है । ऑटोमोबाइल सेक्टर की रफ्तार धीमी होती जा रही है और यह पिछले 3 महीनों से गिरने लगा है। बाजार के आंकड़े बताते हैं कि जून में गाड़ियों की बिक्री इतनी कम रही है जितनी पिछले 19  वर्षों में नहीं थी जुलाई में हालत और बिगड़ने लगी गाड़ियों की बिक्री और कम हो गई। कई कारखाने तो ऐसे हैं जहां से अस्थाई कर्मचारियों को हटा दिया गया या भारी कमी की गई । देश में वाहन डीलरशिप यूनिट्स तेजी से बंद हो रही हैं। बिक्री में गिरावट केवल मोटर कारों में नहीं है बल्कि ट्रैक्टर और ट्रकों में भी है। मोटर कार के या कहें कि मोटर वाहन बिक्री में तेजी से गिरावट असर फाइनेंस कंपनियों पर भी पड़ रहा है। क्योंकि इन दोनों में आपसी तालमेल होता है।  अगर यही हालात रहे तो आने वाले दिनों में बड़ी संख्या में लोगों की रोजी-रोटी छिन जाएगी । कंस्ट्रक्शन क्षेत्र में भी यही हालत है। मकान बन कर तैयार हैं लेकिन खरीदार नहीं है। आंकड़े बताते हैं कि देश के लगभग 30 शहरों में 12 लाख 75 हजार फ्लैट्स बन कर तैयार हैं लेकिन  खरीदार नहीं हैं। बिल्डरों पर कर्ज का संकट बढ़ रहा है। यद्यपि बजट में सरकार ने इस ओर प्रोत्साहन जरूर दिए हैं लेकिन अभी तक उनका तो प्रभाव नहीं दिख रहा है। कंस्ट्रक्शन के क्षेत्र में अकुशल मजदूरों को रोजगार मिलता रहा है या ऐसा कहें उनके लिए यह रोजगार का बड़ा स्रोत रहा है। लेकिन अब वह स्रोत खत्म होता था नजर आ रहा है। फलस्वरूप अकुशल मजदूरों की नौकरियां जा रही हैं । यह लोग गांव लौट रहे हैं । खेतों पर बोझ बढ़ रहा है। अकाल और अनावृष्टि के कारण पहले ही खरीफ की बुआई नहीं हो सकी है और बाढ़ ने स्थिति को और बिगाड़ दिया। ऐसा लग रहा है कि गांव में भुखमरी आ जाएगी।
         उधर बजट के बाद शेयर बाजार में तेजी से गिरावट आने लगी है। भविष्य बताते हैं कि गिरावट ने विगत 17 वर्षों का रिकॉर्ड तोड़ दिया । बजट में सुपर रिच टेक्स के कारण विदेशी निवेशक भारतीय शेयर बाजार से अपना पैसा निकाल रहे हैं। आर्थिक क्षेत्र के विशेषज्ञ बताते हैं किस सिर्फ जुलाई में भारतीय इक्विटी बाजार से 11000 करोड़ रुपए निकाले जा चुके हैं। इसके अलावा कंपनियों के लिए पब्लिक होल्डिंग बढ़ाए जाने के प्रस्ताव से शेयर बाजार में गिरावट लगातार चल रही है। कहां पर यहां तक जा रहा है कि जुलाई में शेयर बाजार की हालत खस्ता होने के कारण निवेशक 10,000 करोड़ से ज्यादा गवा चुके हैं।
          कॉरपोरेट जगत आर्थिक नीतियों के खिलाफ लामबंद होता नजर आ रहा है। यही नहीं छोटे- छोटे शहरों में भी लघु उद्योगों की हालत बिगड़ती जा रही है। इन स्थितियों को देखते हुए यह भय लगने लगा है कि आर्थिक स्थिति मंदी की तरफ बढ़ रही है। कुछ लोगों का तर्क है कि अर्थव्यवस्था के चक्कर में ऐसा समय आता है । लेकिन वह समय अस्थाई होता है यहां तो काफी समय लग चुका है। जीडीपी वैश्विक रैंकिंग में भारत की अर्थव्यवस्था फिसल कर सातवें स्थान पर आ गयी है। 2018 के लिए विश्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक जीडीपी के मामले में ब्रिटेन और फ्रांस क्रमशः पांचवें और छठे स्थान पर आ गए हैं। 2017 में भारत  ब्रिटेन को पछाड़कर पांचवा स्थान हासिल कर चुका था।  फिर वह नीचे की तरफ सरकने लगा है। रिपोर्ट के अनुसार डॉलर के मुकाबले रुपए के कमजोर होने से भारत की अर्थव्यवस्था को झटका लगा है।

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