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Sunday, November 10, 2019

भारत की भूमि पर एक सदी का सबसे बड़ा फैसला

भारत की भूमि पर एक सदी का सबसे बड़ा फैसला 

104 वर्षों से विवाद में फंसे राम मंदिर का 9 नवंबर 2019 को फैसला हुआ। सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों ने सर्वसम्मति से यह फैसला सुनाया। 9 नवंबर बड़ा ही ऐतिहासिक दिन है इस दिन कई दीवारें गिरीं और आस्था के माध्यम से दिलों को मिलाने के लिए कई नए पुल बने। इतिहास को देखें इसी दिन यानी 9 नवंबर को ही बर्लिन की दीवार गिराई गई थी और जर्मनी एक हो गया था। इसी दिन करतारपुर साहिब कॉरिडोर खोला गया और भारत और पाकिस्तान के सिखों के दिल मिल गए। यही नहीं 104 बरस पुराने अयोध्या विवाद इसी दिन खत्म हुआ और इस फैसले से भारत के इतिहास में शांति और सौहार्द का एक नया सुनहरा पृष्ठ जुड़ गया।
      पूरे मामले में जो सबसे दिलचस्प तथ्य है वह है सुप्रीम कोर्ट द्वारा रामलला विराजमान को एक पक्ष स्वीकार किया जाना। 1989 में जब बर्लिन की दीवार गिराई गई थी उसी वर्ष हिंदू पक्ष में रामलला विराजमान को भी इस विवाद को मिटाने के लिए एक पक्ष बनाने का फैसला किया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस फैसले के बाद दो बहुत ही महत्वपूर्ण बातें कहीं। एक तो उन्होंने कहा यह राम रहीम नहीं भारत की भक्ति का वक्त है और दूसरी बात राष्ट्र को संबोधित करते हुए उन्होंने कही कि आपसी सद्भाव तथा सौहार्द बनाए रखें। पहली बार मोदी जी ने कोई चुनौतीपूर्ण बात नहीं कही ,नाही किसी को ललकारते हुए कुछ ऐसा कहा जिससे किसी को बुरा लगे। उन्होंने हिंदुओं और मुसलमानों को एक होकर राष्ट्र निर्माण में आगे आने का आह्वान किया।
      इस पूरे मामले में जो सबसे महत्वपूर्ण तत्व है वह है सुप्रीम कोर्ट ने माना कि रामलला का भी हक बनता है और उनकी भी हैसियत है। धर्म और आस्था के इस इंटरप्ले में सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला आज के युग में बहुत मायने रखता है। राम हमारी संस्कृति के न केवल अगुआ थे बल्कि आपसी सौहार्द के ज्वलंत प्रतीक भी थे।
       वक्त और फैसले का कुछ ऐसा सामंजस्य रहा कि अब तक विरोध में खड़े मुस्लिम समाज  के नेता भी अपना सुर बदलते दिखे और उनका नजरिया भी शांति सौहार्द तथा राष्ट्रीयता का दिखा। शाही इमाम अहमद बुखारी ने स्पष्ट कहा किस देश में शांति रहनी चाहिए यह हिंदू मुस्लिम बंद किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, फैसला मुसलमानों के पक्ष में नहीं आया है लेकिन इसे माना जाएगा और इसे मानने के लिए देश के मुसलमान भी तैयार हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री के बयान पर उम्मीद जाहिर की कि मुल्क में सांप्रदायिक सौहार्द बढ़ेगा। अब इस फैसले को चुनौती नहीं दी जानी चाहिए। कोर्ट का फैसला मान लिया जाना चाहिए। इस फैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए जमीयत उलेमा ए हिंद के  मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि यह फैसला हमारी अपेक्षा के अनुकूल नहीं है लेकिन सुप्रीम कोर्ट सर्वोच्च संस्था है उन्होंने देशवासियों से अपील की इस फैसले को हार जीत की दृष्टि से ना देखें और भाईचारा बनाए रखें।
       ऊपर रामलला की चर्चा की गई थी यह चर्चा इसलिए भी आवश्यक है कि पहली बार किसी अदालत ने राम को एक सामाजिक अस्तित्व माना है और इसी अस्तित्व के कारण हमारे समाज में समरसता और सौहार्द के लक्षण स्पष्ट होने लगे हैं।  मानव जीवन में एक धारावाहिकता है और मनुष्य में सामाजिक रूप से जीवन और अनुभूति के स्तर पर गुणात्मक विकास होता रहा है। यह मनुष्य का एक समग्र मनोविज्ञान है इस मनोविज्ञान के बाद ही जातियों तथा धर्मों का अस्तित्व आरंभ होता है। यही कारण है कि हर विद्वेष के बाद मनुष्य कर्म प्रयोजन और सापेक्षवाद के स्तर पर इतिहास की चीज बन जाता है। इस प्रकार परस्पर वार्ता के स्तर पर मानव जीवन में एक अजस्रता होती है इसीलिए व्यक्ति और समाज में अटूट संबंध होता है। अभी तक धार्मिक बिंब या प्रतीक चिन्ह इस संबंध को कायम रखने का प्रयास करते थे। कई बार कामयाबी भी मिली और कई बार नहीं। लेकिन इस फैसले में रामलला को शामिल किए जाने से सबसे बड़ी उपलब्धि हुई है वह है विषय और अर्थ जो कभी पृथक थे वह आपस में जुड़ गए और भविष्य का पशु व्यवहार भी अर्थ क्रियात्मक हो गया। जो इतिहास था उसमें व्यक्ति और समाज की भूमिका पृथक थी लेकिन इस फैसले के बाद मानव विकास के इतिहास में समय लगता है लेकिन यहां व्यक्ति और समाज दोनों ही समान रूप से प्रधान हो गए और इसमें कोई प्राथमिक नहीं रह गया। मनुष्य की की मानवीय प्रवृत्ति सामाजिक होती जा रही है और मनुष्य अनेक मनुष्य के साथ एक सामान्य जीवन में भागीदार होना चाहता है। यही कारण है कि सांप्रदायिक तनाव से युक्त हमारे समाज में अचानक समरसता और सौहार्द की शुरुआत होती दिख रही है और यह शुभ लक्षण है। इस देश के भविष्य के लिए राम मंदिर का फैसला धार्मिक या आस्था का स्तर पर चाहे जो हो लेकिन सामाजिक स्तर पर उसकी यह भूमिका प्रशंसनीय है और देश के सभी नागरिकों तथा नेताओं को इस स्थिति को और मजबूत करने के प्रयास करने चाहिए। यही कारण है कि इसे यहां इस सदी का भारत भूमि पर सबसे बड़ा फैसला कहा गया है।


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