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Monday, November 18, 2019

फिर अब तूल पकड़ने वाला है अयोध्या मामला

फिर  अब तूल पकड़ने वाला है अयोध्या मामला 

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने अयोध्या में राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला मानने से इनकार किया है और इस पर पुनर्विचार याचिका दायर करने की घोषणा की है । मुस्लिम पक्ष ने कहा कि उसे किसी दूसरी जगह पर मस्जिद के लिए 5 एकड़ जमीन नहीं चाहिए। सुप्रीम कोर्ट का फैसला राम मंदिर के पक्ष में जाने के बाद रविवार को ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इस मामले पर मीटिंग की और इसके बाद फैसले को चुनौती देने का एलान किया। बोर्ड ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि विवादित जमीन पर नमाज पढ़ी जाती थी और मंदिर तोड़कर मस्जिद नहीं बनाई गई है। गुंबद के नीचे जन्मस्थान होने कोई सबूत नहीं है और जन्म स्थान को न्यायिक व्यक्ति नहीं माना जा सकता। बोर्ड का कहना है कि उसने जिस जमीन के लिए लड़ाई लड़ी हुई जमीन से चाहिए। बोर्ड का मानना है अगर मस्जिद को ना तोड़ा गया होता तो क्या अदालत मस्जिद तोड़कर मंदिर बनाने के लिए कहती ?
       देश के प्रमुख मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा ए हिंद के प्रमुख मौलाना अरशद मदनी का मानना है कि कोर्ट ने 1000 से ज्यादा पृष्ठों वाला फैसले में मुस्लिम पक्ष के अधिकतर तर्कों को माना है ऐसे में अभी भी कानूनी विकल्प मौजूद है। कोर्ट ने स्वीकार किया है कि मस्जिद का निर्माण किसी मंदिर को तोड़कर नहीं किया गया और 1949 में मस्जिद के बाहरी हिस्से में अवैध तरीके से मूर्ति रखी गयी है फिर वहां उसे अंदर गुंबद के नीचे वाले हिस्से में स्थान्तरित किया गया । जबकि उस दिन तक नमाज का सिलसिला जारी था। मदनी ने कहा 1949 तक वहां नमाज पढ़ी जा रही थी तो फिर 90 साल तक जिस मस्जिद में नमाज पढ़ी गई उसको मंदिर बनाने के लिए देने की बात समझ से परे है। जिलानी ने कहा के उस जमीन के लिए आखिरी दम तक कानूनी लड़ाई लड़ी जाएगी ।उन्होंने कहा कि 23 दिसंबर 1949 की रात बाबरी मस्जिद में भगवान राम की मूर्तियों को रखा जाना और असंवैधानिक था तो फिर उच्चतम ने उन मूर्तियों को आराध्य कैसे मान लिया। वह जो हिंदू धर्म शास्त्र अनुसार भी आराध्य नहीं हो सकते।
       ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड मीटिंग के लिए अंतिम समय में जगह बदल दी गई। लखनऊ के नदवा क्षेत्र में होने वाली थी बैठक। अचानक उस क्षेत्र को बदल दिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में रामलला विराजमान के नाम से फैसला सुनाया है और निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड का दावा खारिज कर दिया था तथा मुस्लिम पक्ष को अयोध्या में ही 5 एकड़ जमीन देने का निर्देश दिया था
           इस बैठक के बाद एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सचिव जफरयाब जिलानी, बोर्ड के सदस्य  रसूल इलियास और अन्य सदस्यों ने पत्रकारों से बात की। जिलानी ने बताया की मुस्लिम पक्ष कारों में से मिसबाहुद्दीन, मौलाना महफूज उर रहमान, मोहम्मद उमर और हाजी महबूब ने पुनर्विचार याचिका दायर करने की अनुमति दे दी है। एक अन्य पक्षकार इकबाल अंसारी के बारे में पूछे जाने पर कहा गया कि उन पर पुलिस प्रशासन और जिला प्रशासन बहुत दबाव डाल रहा है। गिलानी के अनुसार इकबाल अंसारी इसलिए याचिका के पक्ष में नहीं है क्योंकि अयोध्या के प्रशासन और पुलिस उन पर दबाव डाल रहा है।  प्रशासन ने हमें भी इस बैठक को आयोजित करने से मना किया था और हमने बैठक दूसरी जगह किया जिलानी के अनुसार वरिष्ठ वकील राजीव धवन बोर्ड की तरफ से पुनर्विचार याचिका दायर करेंगे। उन्होंने ही पहले सुप्रीम कोर्ट में मुस्लिम पक्षकारों के वकील थे। लेकिन, हिंदू महासभा के वकील वरुण सिन्हा के अनुसार मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड केस में पक्षकार है ही नहीं वह याचिका कैसे दायर कर सकता है। इस मामले में सुन्नी वक्फ बोर्ड का फैसला लेना होगा। वरुण ने कहा कि हर किसी को पुनर्विचार याचिका दायर करने का अधिकार है लेकिन इस फैसले के खिलाफ जाने का कोई कानूनी आधार नहीं है। जिलानी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह जोर दिया कि मुस्लिम इंसाफ मांगने सुप्रीम कोर्ट में गए थे। बाबरी मस्जिद के बदले कोई दूसरी जगह मांगने नहीं गए थे। उन्होंने कहा कि अयोध्या में पहले से ही  27 मस्जिदें हैं इसलिए  बात मस्जिद की नहीं है।
दूसरी तरफ सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष जफर फारुकी ने फैसले के दिन कहा था कि बोर्ड अपील में नहीं जाएगी या किसी तरह के पुनर्विचार पर जोर नहीं देगी। जो भी हो चुका उसे सुन्नी वक्फ बोर्ड स्वीकार कर लेगी। सुन्नी वक्फ बोर्ड कोर्ट द्वारा तय की गई 5 एकड़ जमीन लेगी या नहीं लेगी इस पर 26 नवंबर को एक बैठक में फैसला किया जाएगा। सुन्नी वक्फ बोर्ड का यह कथन ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के निर्णय से सीधा विपरीत है
पुनर्विचार याचिका का मामला सामाजिक रूप में तूल पकड़ सकता है इसलिए पूरे समाज में सौहार्द एवं शांति बनाए रखने की कोशिश की जानी चाहिए ,हालात का शोषण नहीं। ऐसा कभी-कभी होता है खास करके जो भावना प्रधान मामले होते हैं कि हम अपने निष्कर्ष निकालते हैं और इस बात पर ध्यान केंद्रित करते हैं कि जो हमारे विपरीत सोच रहे हैं या कर रहे हैं उन्हीं की गलती है और इसका उन्हें परिणाम भुगतना होगा। यह एक सामूहिक सोच बन जाती है और कार्रवाई में बदल जाती है। पिछले अनुभवों से एक बार सोचें जब  हम किसी स्थिति के बारे में सभी तथ्यों को नहीं समझते हैं और    कुछ ऐसा  करने की संभावना बन जाती है जो हमें नहीं करना चाहिए। मंदिर और मस्जिद का मामला बिल्कुल भावना प्रधान है और इस पर हमें सामाजिक रूप से बहुत सतर्क रहने की जरूरत है।


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