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Wednesday, November 6, 2019

पाकिस्तान को कश्मीर से नहीं अफगानिस्तान से ज्यादा खतरा है

पाकिस्तान को कश्मीर से नहीं अफगानिस्तान से ज्यादा खतरा है

कश्मीर का मसला क्षेत्रीय और ग्लोबल एजेंडे से मिट नहीं सकता लेकिन पख्तून का सवाल है जो पाकिस्तान के और इस उपमहाद्वीप के भविष्य को हमेशा शंकित करता रहेगा सदा भयभीत करता रहेगा। हरदम एक प्रकार का भय बना रहेगा। जमायत उलेमा ए इस्लाम के नेता मौलाना फजलुर रहमान का आरोप है पाकिस्तानी सत्ता भारतीय एजेंडे को आगे बढ़ाने में लगी है। मौलाना ने कहा है कि इमरान खान ने ही कहा था कि "अगर मोदी दोबारा सत्ता में आ जाते हैं तो कश्मीर का विवाद खत्म हो जाएगा।" रहमान का कहना है कि इमरान खान अयोग्य हैं और उन्होंने कश्मीर को बदलाव से रोका नहीं। इस्लामाबाद में भारत पर चारों तरफ से आरोप लगाए जा रहे हैं । पाकिस्तानी सत्ता ने आरोप लगाया कि अफगानिस्तान और तालिबान के झंडे इस देश में चारों तरफ लहराए जा रहे हैं। मौलाना ने इसे फालतू बात कहते हुए नकार दिया। हालांकि मौलाना ने अपने समर्थकों से कहा है कि वे तालिबान का झंडा नहीं लहराएं। लेकिन  उन्होंने जनता को यह भी स्मरण दिलाया कि पाकिस्तान और अन्य देशों की सरकारें तालिबान को गले लगा रही हैं।
     चाहे जो हो, मौलाना और इमरान दोनों तालिबान के समर्थक रहे हैं। इस्लामाबाद में यह माना जा रहा है भारत एक खतरा है तथा तालिबान दोस्त। इस जुमले में एक कटु सत्य है जो पाकिस्तानी नहीं देख पा रहे हैं और ना समझ पा रहे हैं । पाकिस्तान को सबसे बड़ा खतरा अफगानिस्तान से है, कश्मीर से नहीं। कश्मीर के बारे में जो पाकिस्तान में बड़बोला पन चल रहा है और दिल्ली के प्रति जो खीझ पैदा हो रही है वह उतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना महत्वपूर्ण अफगानिस्तान में गृह युद्ध की संभावनाएं हैं। अरसे से भारत और पाकिस्तान दोनों मुल्कों में एक रहस्य को हवा दिया जा रहा है कि जब तक कश्मीर पर पूर्ण नियंत्रण नहीं होगा तक तक भारत या पाकिस्तान के राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया संपूर्ण नहीं होगी। एक दूसरी कहानी है कि जम्मू कश्मीर क्षेत्रीय सुसंगति हकीकत को विचलित कर देती है । यहां कई विविधता पूर्ण क्षेत्र एक जगह आ जुटे हैं। तीसरी बात यह घूम रही है कि कश्मीर का जियोपोलिटिकल महत्व ऐसा है कि यह दुनिया का सबसे खतरनाक परमाणु युद्ध का स्थल बन गया है। यह रहस्योद्घाटन वाशिंगटन में परमाणु अप्रसार के समर्थकों ने किया था ।  ये लोग सदा भारत और पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रमों को खत्म करने में जुटे रहते थे। इस इस कथा से पाकिस्तान ने एक नया सबक सीखा। उसने परमाणु की अपनी रणनीति के माध्यम से दुनिया को ब्लैकमेल करना शुरू किया और दुनिया के विभिन्न देशों ने परमाणु के आतंक के दबाव में दिल्ली को यह समझाना शुरू किया कि वह अपनी जमीन छोड़ दे । एक और कहानी बीच में जुड़ती है, जिसके अनुसार भारत और पाकिस्तान में विवाद का मुख्य विंदु कश्मीर है । लेकिन किसी भी तरह से यह स्पष्ट नहीं है कि यदि भारत पाकिस्तान के साथ कश्मीर का मसला हल कर ले तो रातों-रात पाकिस्तान-भारत  दोस्त हो जायेंगे। भारत और पाकिस्तान के  विवाद की चड़ बंटवारे की विरासत में गहराई तक घुसी हुई है। यही नहीं बात तो यह भी चलती है कि  भारत कश्मीरियों को मुक्त कर दे और यदि रावलपिंडी अंतरराष्ट्रीय समुदाय को  इतने दबाव में डाले कि उनके चलते भारत कश्मीर छोड़ने पर मजबूर हो जाए। पाकिस्तान से अपने विवाद में अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप को लेकर दिल्ली भी भीतर -भीतर आतंकित थी।  इस मामले में  दिल्ली की तरफ से पाकिस्तान को सिर्फ एक रियायत मिली की 1947 -48  में यह मामला राष्ट्र संघ में ले जाया गया।
       कई युद्ध और सैनिक कार्रवाई  के बाद भी कश्मीर का मसला हल नहीं हो सका। अब कहा जाता है कि इस उपमहाद्वीप के उद्भव में कश्मीर मुख्य रहा है । कश्मीर यकीनन पाकिस्तान के लिए एक अत्यंत भावना प्रधान मसला रहा है। दोनों देशों में यह विभाजन की ऑडियोलॉजिकल विरासत रहा है। रावलपिंडी के सेना मुख्यालय के लिए यह 1971 के बदले का आधार भी रहा है। कश्मीर भारत-पाक के बीच राजनीति का मुख्य आधार भी है।
           उपमहाद्वीप पर कश्मीर में गतिरोध और अफगानिस्तान के प्रभाव की तुलना करें तो इतिहास में अब तक उपमहाद्वीप पर जितने बड़े सैनिक अभियान हुए हैं वह अफगानिस्तान की तरफ से हुए हैं। आज के जमाने में या कहें कि पिछले 4 दशकों में अफगानिस्तान ने दुनिया को क्या दिया? 1978 में सोवियत कब्जे के दौरान सोवियत सेना के खिलाफ पाकिस्तान समर्थित जिहादी दुनिया के हर कोने से एकत्र किए गये और उन्हीं के माध्यम से पाकिस्तान की हुकूमत ने  जन समुदाय को कट्टर इस्लाम की घुट्टी दी। पाकिस्तान में तालिबान और अल कायदा का विकास हुआ। अमेरिकी फौज पर लगातार हमले होते रहे और अब अमेरिका वहां से बाहर निकलना चाहता है और यह  तालिबान की वापसी का एक संभावित वक्त है। कश्मीर का गतिरोध कायम रहेगा लेकिन यह अफगानिस्तान की रणनीति है जो क्षेत्रीय व्यवस्था को एक बार फिर गड़बड़ाएगी और इसका सबसे बुरा असर पाकिस्तान पर पड़ेगा। कश्मीर में फिलहाल जो हालात हैं उससे भारत में बहुत कुछ नहीं बिगड़ेगा सिवा इसके कि पाकिस्तान प्रत्यक्ष रूप में भारत पर हमला कर दे और यह आशंका लगातार बनी हुई है। यही नहीं ,अगर इमरान खान को सत्ता से हटा दिया गया और वहां मौलाना सत्ता में आ गए तो एक बार अपनी लोकप्रियता को प्रदर्शित करने के लिए मौलाना जरूर भारत की तरफ रुख करेंगे। लेकिन इससे कुछ होने वाला नहीं है उल्टे पाकिस्तान में कट्टर इस्लामीकरण   की मांग बढ़ जाएगी जो आने वाले वक्त में विश्व के लिए खतरा बन सकती है।


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