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Monday, November 25, 2019

न जाने आगे क्या है!

न जाने आगे क्या है!

महाराष्ट्र का राजनीतिक नाटक कई मोड़ से गुजरता हुआ आगे बढ़ रहा है। जो कभी समाज के अगुआ समझे जाते थे आज समाज में जाल लिए घूमते हैं किसको कहां से उठाएं और कहां डालें। आधुनिक राजनीति में होटल और रिसोर्ट राजनीति की प्रतिनिधियों के शरण स्थल बन गए हैं। महाराष्ट्र में पिछले दो-तीन दिनों से जो कुछ हो रहा है उसमें कहीं भी नैतिकता के प्रतिमान नहीं दिखाई पड़ रहे हैं। शुक्रवार को हालात कुछ ऐसे थे मानो एनसीपी की कांग्रेस के साथ मिलकर मिलकर सरकार बन जाएगी लेकिन अचानक भाजपा के देवेंद्र फडणवीस और एनसीपी के अजित पवार ने शपथ ले ली। दोनों ने विधायकों की जरूरी संख्या दावा भी किया। दिन बीतने के साथ-साथ स्थितियां बदलने लगीं। भाजपा ने जिस बहुमत का अपनी मुट्ठी में होने का दावा किया था वह रेत की तरह उसकी मुट्ठी में से फिसलता हुआ नजर आने लगा। उधर एनसीपी के प्रमुख शरद पवार ने नारे लगाए अजित पवार के पास दो तिहाई बहुमत के लायक समर्थन नहीं है। ऐसे में भाजपा अपना बहुमत साबित नहीं कर पाएगी । उधर जब बीजेपी को लगा शिवसेना और एनसीपी मिलकर राज्य में सरकार बना सकती है तब बीजेपी ने पवार की कमजोर कड़ी को तोड़ने की कोशिश की। अजीत पवार को अपने ही परिवार से कुछ समस्याएं थीं। अजित पवार अपने भतीजे रोहित पवार के करजत सीट से विधानसभा चुनाव  से नाराज थे और इन मामलों को लेकर  परिवार में मनमुटाव चल रहा था । भाजपा ने शरद पवार की इसी कमजोर स्थिति यानी अजीत पवार का फायदा उठाया। शरद पवार यह कह तो रहे हैं कि उनके पास विधायक हैं और सरकार बनाएंगे लेकिन उनकी समस्या यह है कि वह सरकार बनाने में ध्यान लगाएं या फिर परिवार बचाने में। उधर एनसीपी को बचाना पवार के लिए चुनौती है। इधर अजित पवार की घटना के बाद लोग कहने लगे शरद पवार को उनके भतीजे ने पटकनी देदी और राजनीति से संन्यास लेने की घोषणा करने वाले शरद पवार से उनकी पार्टी को छीनने का काम अजीत पवार ने कर डाला। वैसे भी अजित पवार और शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले के बीच  पार्टी की विरासत को लेकर  रस्साकशी चल रही थी। लेकिन , जैसा कि  लोग जानते हैं  सुप्रिया सुले को  केंद्रीय राजनीति में दिलचस्पी है  और  वह  सांसद के रूप में  दिल्ली में राजनीति कर रहे हैं।  दूसरी तरफ  अजीत पवार को  महाराष्ट्र की राजनीति में  सक्रिय पाया जाता है। अभी जो स्थिति है  उससे तो लग रहा है कि अजित पवार  एनसीपी की  लीडरशिप की दौड़ से  बाहर निकल आए हैं और  शरद पवार की  राजनीतिक विरासत अजित पवार के हाथों से फिसल गई है। लेकिन बदले हालात ने यह प्रमाणित कर दिया है कि अजित पवार बुरे फंसे । जब अजित पवार ने भाजपा का समर्थन कर सरकार बनाई तो यह दावा किया गया है कि उनकी पार्टी के कुल 54 विधायकों में से 35 उनके साथ हैं । कानूनन अगर दो तिहाई या उससे ज्यादा विधायक अथवा सांसद किसी दल से अलग होते हैं तो उन पर दल बदल कानून नहीं लागू होता है उनकी सदस्यता कायम रह जाती है। एनसीपी के विधायकों के मामलों में यह संख्या 36 बनती है । अगर 35 विधायक अजित पवार के साथ होते तो एक विधायक का और जुगाड़ कर वे आसानी से एनसीपी को तोड़ सकते थे। लेकिन यही गणित गड़बड़ हो गया। अधिकांश विधायक अभी शरद पवार के साथ हैं। एनसीपी की बैठक में 54 में से 49 विधायक शामिल थे अब अजित पवार फंस गए हैं । जो कुछ भी हुआ हो रहा है उसमें शरद पवार शिकार नहीं की बल्कि उसके केंद्र में है और ऐसा लगता है कि पवार ने अपने भतीजे के माध्यम से भाजपा को फजीहत करने की योजना बनाई थी। लेकिन राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं है इस समय जो ताजा स्थिति है उसमें महाराष्ट्र की राजनीति में पवार सबसे मजबूत खिलाड़ी के रूप में दिखाई पड़ रहे हैं और एक साथ कई निशानों को भेदते नजर आ रहे हैं । अब जो नई राजनीतिक परिस्थितियां बन रही है उससे लगता है कि एनसीपी के विधायक अजित पवार के साथ नहीं है और इस आधार पर कहा जा सकता है कि मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के लिए विधानसभा में बहुमत साबित करना कठिन हो जाएगा।  अगर ऐसा होता है तो फडणवीस के लिए आगे का राजनीतिक सफर बहुत मुश्किल नजर आ रहा है।
          शरद पवार की चाल का सबसे बड़ा प्रभाव भाजपा अध्यक्ष एवं गृह मंत्री अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर होता हुआ दिख रहा है। सूत्रों के मुताबिक अजित पवार के कहने पर भाजपा के महाराष्ट्र प्रभारी भूपेंद्र यादव ने अमित शाह को बहुमत का भरोसा दिलाया था लेकिन अब ताजा परिस्थिति में ऐसा नहीं लग रहा है और अगर पार्टी बहुमत साबित नहीं कर सकी तो सबसे ज्यादा हास्यास्पद स्थिति पार्टी के शीर्ष नेताओं की हो जाएगी। कहा जाने लगेगा कि कैबिनेट बैठक बुलाए बिना महाराष्ट्र से राष्ट्रपति शासन हटाया जाना और राज्यपाल के माध्यम से भाजपा सरकार को शपथ दिलाने का काम किए जाने की क्या जल्दी थी? अमित शाह ने पिछले कुछ वर्षों से ऐसी छवि बनाई थी जिससे लोग उनको भारतीय राजनीति का चाणक्य समझने लगे थे। लेकिन इस ताजा स्थिति से उनकी इस छवि को आघात लग सकता है। शरद पवार की नीति अमित शाह पर भारी पड़ती दिख रही है।
पॉलिटिक्स की बिसात पर विपक्षी को मात देने का हुनर भाजपा अच्छी तरह से जानती है और उसने यहां भी वही किया है। आगे देखना है कि यह सब लोकतंत्र के लिए कितना शुभ और कितना अशुभ है।


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