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Sunday, November 17, 2019

शहर की हवा पानी सब खराब कैसे जिएंगे आप

शहर की हवा पानी  सब खराब कैसे जिएंगे आप 

शहर की हवा पानी सब खराब कैसे जिएंगे आप
खबरों के मुताबिक अपने देश के महानगरों में मुंबई का पानी सबसे सुरक्षित है और कोलकाता का पानी अत्यंत दूषित। ब्यूरो इंडियन स्टैंडर्ड्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली, कोलकाता और  के पानी की जांच करने पर 11 मामलों में से 10 में नकारा साबित हुआ। 17 अन्य राज्यों में पानी के नमूने इकट्ठे किए जो इंडियन स्टैंडर्ड के मानकों के मुताबिक नहीं थे। उपभोक्ता मामले के मंत्री रामविलास पासवान ने अध्ययन के दूसरे चरण फिर रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि मुंबई को छोड़कर देश के सभी राज्यों की राजधानियों का पानी अत्यंत दूषित है। सरकार इस पानी को शुद्ध करने के लिए कठोर कार्रवाई करने का निर्देश राज्यों को दे रही है।
आबादी के तेजी से बढ़ते दबाव और जमीन के नीचे से पानी का अंधाधुंध दोहन साथ ही जल संरक्षण की कोई कारगर नीति नहीं होने की वजह से पानी की समस्या साल दर साल गंभीर होती जा रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़े बताते हैं कि भारत में लगभग 10 करोड़ लोगों को पीने का साफ पानी मयस्सर नहीं है। लेकिन यह आंकड़ा सिर्फ शहरी इलाकों का है। गांव के 70% लोग अभी प्रदूषित पानी पीने को मजबूर हैं। अब जबकि 2028 तक भारत की आबादी चीन से ज्यादा पहुंच जाएगी यह समस्या और भयावह हो जाएगी । एक और तो गांव में शुद्ध जल नहीं मिल रहा है और दूसरी ओर महानगरों में वितरण की कमी के कारण लाखों गैलन पानी रोज बर्बाद हो जाता है। फिलहाल देश में प्रति व्यक्ति 1000 घन मीटर पानी उपलब्ध है और धीरे-धीरे यह उपलब्धता घटती जा रही है। नदियों का देश होने के बावजूद हमारी नदियों  का पानी पीने के लायक नहीं है और ना नहाने के लायक है।
         दरअसल किसी भी शहरी क्षेत्र में पानी की आपूर्ति नगर निगम के पाइपों से की जाती है और उसकी शुद्धता का आकलन पेयजल की उपलब्धता, उससे उत्पन्न होने वाली स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं और उस तक आम आदमी की पहुंच के आधार पर किया जाता है। पश्चिम बंगाल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और कोलकाता नगर निगम द्वारा जारी प्रासंगिक आंकड़ों में कई बातें बहुत ही महत्वपूर्ण है। आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है की उपलब्ध पेयजल की गुणवत्ता अच्छी नहीं है। इसका मुख्य कारण है उसकी उपलब्धता साथ ही नगर निगम की जलापूर्ति के विकल्प के रूप में लोगों द्वारा अपनाया जाने वाला भूजल भी दूषित  है। उसमें आर्सेनिक और लेड जैसे भारी धातु की उपस्थिति पाई गई है। अब जल की अनुपलब्धता और उसके शुद्धिकरण में कमी के कारण तरह-तरह की बीमारियां पनप रही हैं। कोलकाता नगर निगम द्वारा एकत्र किए गए आंकड़ों के मुताबिक कोलकाता शहर में अधिकांश लोगों को पेचिश और उसकी छूत से उत्पन्न होने वाली आंत की विभिन्न बीमारियां शहर के अधिकांश भाग में फैली हुई हैं। यह जल जनित बीमारियां हैं। सही पेयजल की व्यवस्था और स्वच्छता से इन बीमारियों से मुक्ति पाई जा सकती है । शहर के जल के दूषण के और भी कारण हैं। इनमें विशिष्ट भौगोलिक और ऐतिहासिक कारणों के साथ साथ विशाल आबादी, इसकी ढलवां भूमि और जलजमाव के साथ-साथ जल निकासी की समुचित व्यवस्था का अभाव यहां के पेयजल के दूषण में अपनी भूमिका निभाता है। कोलकाता नगर निगम शहर की आबादी के 70% को पानी मुहैया कराता है बाकी 30% आबादी विभिन्न स्रोतों से पेयजल का बंदोबस्त करती है। 2011 की जनगणना के मुताबिक कोलकाता मेट्रोपॉलिटन अथॉरिटी के 79 प्रतिशत भाग में पेयजल की सप्लाई होती है लेकिन व्यवहारिकता में यह कम है। आबादी रोजाना बढ़ रही है। खास करके, शहर का हर क्षेत्र तेजी से जन संकुल होता जा रहा है। इसके साथ ही शहर में जमीन घटती जा रही है और शहर का माइक्रोक्लाइमेट धीरे-धीरे बिगड़ता  जा रहा है।  इससे शहरी लोगों के लिए बाहरी समस्याएं पैदा हो रही हैं। यही नहीं शौचालयों की अपर्याप्त व्यवस्थाओं के कारण अभी भी शहर की फुटपाथों पर खूब तड़के शौच करते लोग देखे जा सकते हैं। शहर में  जो लोग रहते हैं उनके खान-पान और उनके भीतर की बीमारी  के अनुसार  उनके मल मूत्र में भी  तरह-तरह के रोगाणु  पाए जाते हैं।  जैसे  1 ग्राम  मल मैं एक करोड़ वायरस, 10 लाख बैक्टीरिया होती है , एक हजार पैरासाइट तथा कीटाणुओं के एक सौ अंडे होते हैं।  इससे विभिन्न तरह की छूत की जानलेवा बीमारियां उत्पन्न हो रही हैं।
कोलकाता महानगर इतना जन संकुल हो गया है इसमें अब लोगों के रहने की जगह नहीं है और यह शहर चारों तरफ फैल रहा है और तालाबों को पाट कर ऊंची ऊंची इमारतें बन रही हैं और और उसमें भूजल के दोहन की व्यवस्था है। इन इलाकों में एक तरफ लगातार जमीन की पानी को निकाला जा रहा है और दूसरी तरफ महानगर में एक बड़ी आबादी के लिए पीने का पानी नहीं है। इससे तरह-तरह की बीमारियां फैल रही हैं।
2014 में अन्थामेटेन तथा हेजेन द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार हवा और पानी में बढ़ता प्रदूषण कोलकाता शहर की समस्या है और निकट भविष्य में इस समस्या के समाधान की कोई राह भी नहीं दिख रही है। जल संरक्षण के उपाय और जमीन में स्थित पानी के दोहन की नीति बनाकर इस समस्या पर काफी हद तक अंकुश लगाया जा सकता है। लेकिन इसको लागू कैसे किया जाए? इसके लिए सबसे जरूरी चीज है जन जागरूकता। जब तक इस ओर कदम नहीं उठाया जाएगा कोई उपलब्धि नहीं होने वाली।


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