भारत में दूषित हवा और दूषित पानी की खबरों ने चारों तरफ तहलका मचा दिया है। हर आदमी परेशान है कि सांस कैसे ले पिए क्या ? दिल्ली जैसे शहर में तो ऑक्सीजन काउंटर खुल गया है। धीरे धीरे धरती का तापमान बढ़ता जा रहा है, समुद्र उथला होता जा रहा है। यानी हमारी पृथ्वी को और हमारे देश को मौसम का खतरा झेलने के लिए बाध्य होना पड़ेगा एक तरह से हम अपनी ही करनी का अभिशाप भोगने को मजबूर किए जा रहे हैं।
सत्यं बृहदृतमुग्रं दीक्षा तपो
सा नो भूतस्य भव्यस्य पत्न्युरुं
विख्यात पत्रिका लांसेट की काउंटडाउन रिपोर्ट में कहा गया है कि जिस तेजी से कार्बन का उत्सर्जन हो रहा है उसका असर आज पैदा होने वाले हर बच्चे को जिंदगी भर भुगतना पड़ेगा। आज पैदा हुआ बच्चा जब 71 वर्ष का होगा तब तक धरती का तापमान 17 वीं शताब्दी के मध्य से 4 डिग्री सेल्सियस ज्यादा रहेगा। यानी गर्मी बहुत बढ़ेगी। हमारे देश के ऐसे बच्चे जो इस समय दूषित हवा में सांस ले रहे हैं , दूषित जल पी रहे हैं और कुपोषण तथा संक्रामक रोगों की चपेट में आसानी से आ सकते हैं उन पर इस जलवायु परिवर्तन का व्यापक असर पड़ेगा। कृषि उत्पादन घटेगा। अब सवाल है कि हमारी आने वाली पीढ़ी की जिंदगी में कृषि कितना असर डालेगी? सरकारी रिपोर्ट बता रही है कि चावल और मक्का की औसत पैदावार कम हो रही है। अब ऐसा होने से इनकी कीमत बढ़ेगी जिससे कुपोषण का बोझ बढ़ेगा। हमारे देश के बच्चे वैसे ही पहले से कुपोषण के शिकार हैं। मौसम बदलने से संक्रामक रोग बढ़ेंगे और बच्चे इस का सबसे पहला शिकार होंगे। वायु प्रदूषण बढ़ने से जलकण में व्याप्त धूल के कण से मरने वालों की संख्या बढ़ेगी। विनाशकारी बाढ़ ,सूखे जंगलों में आग इत्यादि परिणाम होंगे बढ़ते तापमान के। यह आम बात है कि बच्चे बदलते जलवायु के कारण होने वाले स्वास्थ्य जोखिम के शिकार जल्दी जाते हैं। क्योंकि, उनके शरीर में प्रतिरक्षा प्रणाली पूरी तरह विकसित नहीं हुई रहती है। एक और रिपोर्ट में कहा गया है कि इस दुनिया में औसत तापमान में वृद्धि से भारत की आधी आबादी को खतरा है। भविष्य को बचाने के लिए हमें ऊर्जा परिदृश्य में तेजी से परिवर्तन लाना होगा और ग्लोबल वार्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस पर सीमित करने की कोशिश करनी होगी। जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न होने वाले संकट आज मनुष्यता के लिए सबसे बड़े खतरों में से एक हैं। लेकिन हम आज भी अपनी सरकार की ओर देख रहे हैं , खुद कुछ नहीं करते। यानी हम आने वाली पीढ़ी को तड़प तड़प कर मरने के लिए सरकार के भरोसे छोड़ रहे हैं। जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने के लिए पेरिस समझौता हुआ यह 2020 से कार्यान्वित होगा । लेकिन अगर इसे ईमानदारी से और पूरी ताकत से लागू नहीं किया गया तो जो विनाश होगा उसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकेगा।
जैसे-जैसे तापमान बढ़ेगा कृषि पैदावार घटने लगेगी और खाद्य पदार्थों की कीमत बढ़ने लगेगी। यह वृद्धि गरीबों की पहुंच से बाहर होगी। जैसा कि सब जानते हैं नवजात और छोटे बच्चे कुपोषण के सबसे ज्यादा शिकार होते हैं । नतीजा यह होता है कि उनका विकास रुक जाता है और उनके भीतर की प्रतिरक्षा प्रणाली सुस्त हो जाती है । भविष्य की समस्याएं बढ़ जाती हैं। जैसी की खबर है, बढ़ते तापमान के कारण में पिछले 30 वर्षों में दुनिया भर में अनाज की उपज की क्षमता घट गई है। रिपोर्ट के अनुसार मक्के की उपज में 4% गेहूं की उपज में 6% सोयाबीन की उपज में 3% और चावल की उपज में 4% गिरावट आई है। 1960 को आधार मानकर किए गए आकलन के अनुसार भारत में मक्का और चावल की उपज में औसत 2% की गिरावट आई है और पिछले 5 साल में 5 साल से कम उम्र के दो तिहाई बच्चों की मृत्यु का कारण कुपोषण रहा है । इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट के मुताबिक भारत में जलवायु परिवर्तन से कृषि उत्पादन लगातार गिर रहा है 2010 अगर आधार मान लिया जाए तो 2030 में भारत में कृषि उत्पादन बहुत ज्यादा गिर जाएगा। 2030 में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के कारण भूख से पीड़ित लोगों की अनुमानित संख्या 22.5 प्रतिशत से ज्यादा हो सकती है । या कह सकते कि एक सौ 20 करोड़ की आबादी में करीब 24 करोड़ लोग भूख से पीड़ित होंगे। यह भूख क्या रंग लाएगी इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है।
और तो और बीमारियां बढ़ेंगी। बदलते मौसम के साथ एक खास किस्म की बैक्टीरिया विब्रियो के फैलने का खतरा बढ़ जाता है और इससे पेचिश की बीमारी दुगनी हो जाती है। अस्पतालों में डायरिया से ग्रस्त बच्चों की लंबी सूची को देखकर स्पष्ट अंदाजा लगाया जा सकता है कि हम किधर बढ़ रहे हैं । जलवायु परिवर्तन के साथ मच्छर बढ़ते हैं और इस समय डेंगू दुनिया में सबसे ज्यादा तेजी से फैलने वाला रोग बन गया है । एक शोध के मुताबिक भारत की आधी आबादी को इससे खतरा है । आज के बाद जो परिदृश्य रहेगा और हवा की प्रदूषण तथा वातावरण के तापमान की जो स्थिति रहेगी उससे बच्चों के फेफड़े ज्यादा प्रभावित होंगे और सांस की बीमारियां बढ़ती जाएगी। अभी खनिज तेल का प्रयोग तेजी से बढ़ रहा है और इससे वातावरण में कार्बन मोनोऑक्साइड के पार्टिकुलेट मैटर भी बढ़ रहे हैं अत्यंत बारीक इसके कण सांस के साथ हमारे रक्त प्रवाह में फैलते जा रहे हैं। इससे अकाल मृत्यु का खतरा बढ़ता जा रहा है । आज बच्चा जन्म ले रहा है, उसके सामने जीवन में आगे चलकर गंभीर बीमारियां, लंबे समय तक सूखे और जंगली आग का खतरा बढ़ जाएगा । रिपोर्ट के मुताबिक 196 देशों में से लगभग 152 देशों में 2001 से 4 के बाद जंगल की आग के शिकार लोगों की संख्या बड़ी तेजी से बढ़ी है ।भारत में इस संख्या में लगभग 2 दशमलव 10 करोड़ और चीन में 1 दशमलव 70 करोड़ से ज्यादा वृद्धि हुई है इस वजह से लोग मर रहे हैं। सांस की बीमारियां फैल रहीं हैं और उन्हें अपने घरों से भी हाथ धोना पड़ रहा है। 2018 अब तक का सबसे गर्म वर्ष रहा है इस साल दुनिया भर में 22 करोड़ लोग लू से मरे भारत में जनसंख्या 4.30 करोड़ थी। भारत में साल 2000 बाद अत्यधिक गर्मी के कारण है काम के घंटे बर्बाद हुए।अकेले कृषि क्षेत्र में 12 अरब काम के घंटों का नुकसान हुआ। इस खतरनाक स्थिति से अंदाजा लगाया जा सकता है कि आने वाला दिन कैसा होगा और हमारे बच्चों को क्या झेलना पड़ेगा।
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