कोलतार की लंबी काली सड़कें और उस पर दौड़ते काले टायर उन दैत्यों की तरह है जो सड़कों पर बिखरे खून को मिनटों में चाट जाते हैं और बचे रह जाते हैं अपनों के चेहरे पर आंसुओं के निशान और उनके जीवन पर व्यथा की लकीर । ताजा आंकड़े बताते हैं कि अपने प्रदेश में पांच जानलेवा सड़क दुर्घटनाओं में 3 यहां के हाईवे पर होती है। अभी हाल में सड़क परिवहन एवं राज्य पथ मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक 2018 में बंगाल में कुल रोड एक्सीडेंट का 62% हाईवे पर हुए। दुर्घटना की ऊंची दर इस साल नई नहीं है बल्कि पिछले 3 वर्षों से लगातार चली आ रही है 2015 16 और 17 में भी यही हालत थी। सरकारी सूत्रों के मुताबिक राज्य में 2,998 किलोमीटर नेशनल हाईवे है और 3,693 किलोमीटर राज्य सरकार की हाईवे है। 2018 में बंगाल की सड़कों पर दुर्घटनाओं की कुल 12 हजार 705 घटनाएं हुई और अगर मोटे तौर पर आबादी से हम इसका अनुपात आंकते है तो प्रति एक लाख आबादी पर 13.4 दुर्घटनाएं होती हैं। हालांकि सरकार कहना है की दुर्घटनाओं की संख्या तेजी से घट रही है।
दुर्घटनाओं में न केवल जाने जाती हैं बल्कि उसका एक दूरगामी असर भी पड़ता है। आंकड़े बताते हैं कि भारत के सकल घरेलू उत्पाद पर दुर्घटनाओं का 3.5% असर पड़ता है और शहरों की सड़कों में सुधार और ड्राइवर्स की ट्रेनिंग के साथ-साथ परिवहन नियमों को कड़ाई से लागू करने पर इस घाटे को रोका जा सकता है । दुर्घटनाओं में मरने वालों का अनुपात अगर देखें तो इनमें 70% लोग 18 से 45 वर्ष की आयु के बीच के हैं। 2018 में विश्व बैंक की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि अगर 2038 तक इन सड़क दुर्घटनाओं में घायल और मरने वालों की संख्या को आधा कर दिया जाए तो हमारा सकल घरेलू उत्पाद 7% के आसपास हो जाएगा। 2018 में देश भर में कुल 4,67,044 सड़क दुर्घटनाएं हुई जो पिछले वर्ष से 0. 5% ज्यादा थी। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में जितने वाहन हैं उसका केवल एक प्रतिशत भारत में है और दुनिया भर में सड़क दुर्घटनाएं होती हैं उसका 6% केवल भारत में होता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2018 में दक्षिण और दक्षिण पूरब एशिया में जितने लोगों की सड़क दुर्घटना में मृत्यु हुई उसमें केवल 73% मौतें भारत में हुई । भारत में मृत्यु के 12 आम कारण है सड़क दुर्घटना उनमें से एक है। 2017 में विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी ग्लोबल हेल्थ एस्टिमेट्स के मुताबिक भारत में मौतों के 12 कारण है जिनमें सड़क दुर्घटना भी 7वां कारण है और अपंगता कि जितने भी कारण से उनमें सड़क दुर्घटना दसवां कारण है। 2018 में जितनी भी सड़क दुर्घटनाएं हुई उनमें ज्यादातर 36% दुपहिया वाहनों के कारण में और 13% सड़क के किनारे चलने वालों के कारण हुईं। सड़कों पर फर्राटे से तेज रफ्तार चलने वाले दुपहिया वाहनों के कारण ज्यादा दुर्घटनाएं होती हैं। हमारे देश के कानून के मुताबिक इसके लिए 500 रुपये से 5000 रुपये तक जुर्माना है और कई मामलों में ड्राइवर को जेल भी हो सकती है।
हमारे देश में चार लेन की सड़कों पर गति सीमा 80 किलोमीटर प्रति घंटा है जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे 53 से 57 किलोमीटर प्रति घंटा के बीच करने का सुझाव दिया है। सरकार ने गति सीमा का उल्लंघन करने के लिए दी जाने वाली सजा में संशोधन किया है। नए कानून में पहली घटना में 6 महीने तक की कैद और ₹10000 जुर्माना है दूसरी घटना में 2 साल की कैद ₹15000 जुर्माना अथवा दोनों है।
दरअसल सड़क दुर्घटनाओं में सबसे बड़ी भूमिका परिवहन कानून की है और इस कानून को हमारे देश में या हमारे राज्य में बहुत ढीले ढाले ढंग से लागू किया जाता है। कई बार तो देखा गया है कि पुलिस के सामने से तेज रफ्तार दोपहिया या चार पहिया वाहन निकल जाते हैं और वहां ड्यूटी पर तैनात पुलिसकर्मी से देखता रहता है, कुछ नहीं कर पाता। इसके कई कारण हो सकते हैं लेकिन अगर कारणों को नजरअंदाज कर दिया जाए और सख्ती से कानून लागू किया जाए तो बहुत बड़ी संख्या में लोगों की जानें बचाई जा सकते हैं। इसके लिए जरूरी है वाहन चालकों में कानून का डर और वाहन नियमों के प्रति जागरूकता। यहां तक कि शराब पीकर गाड़ी चलाने वालों को भी रोका नहीं जाता। या जो लोग इस अपराध में पकड़े भी जाते हैं उन्हें बहुत ज्यादा सजा नहीं मिलती। लेकिन इसे लागू किए जाने में केवल रानू में ढिलाई बरतना ही एकमात्र कारण नहीं है बल्कि कानून लागू करने वाले तंत्र का कमजोर होना भी है । हमारे देश में, पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ब्यूरो की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2018 में कुल 85 हजार 144 ट्रैफिक के सिपाहियों की जरूरत थी जबकि है उसका 30% ही भरा गया है, बाकी खाली हैं।
यही नहीं, सड़क पर चलने वाले बहुत से वाहन ऐसे हैं जिनके चालकों के पास ड्राइविंग लाइसेंस नहीं होता। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि 2018 में जितने एक्सीडेंट हुए उनमें शामिल 20% वाहनों के चालकों के पास लाइसेंस नहीं पाया गया। वैसे भी लाइसेंस कोई ऐसी वस्तु नहीं है जिससे पता चल सके कि ड्राइवर योग्य है। वस्तुतः वाहन मालिक ही ऐसे ड्राइवरों को काम दिया करते जिनके पास वैध लाइसेंस नहीं होता अथवा जो बहुत योग्य नहीं होते। यही नहीं , अक्सर यातायात नियंत्रण और संचालन के लिए तैनात पुलिसकर्मियों के पास ऐसे औजार नहीं होते या बहुत कम होते हैं जिससे पता लगाया जा सके कि ड्राइवरों ने शराब पी रखी है। यही नहीं घटनास्थल पर यातायात पुलिस के पहुंचने में देरी के कारण दोषी बच जाते हैं। यदि यातायात नियमों को कड़ाई से लागू किया जाए तो बहुत बड़ी संख्या में लोगों की जानें बच सकती हैं और भारत के सकल घरेलू उत्पाद में उनकी भूमिका भी शामिल हो सकती है।
Tuesday, November 19, 2019
सड़क दुर्घटनाओं में बंगाल सबसे आगे
सड़क दुर्घटनाओं में बंगाल सबसे आगे
Posted by pandeyhariram at 5:22 PM
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