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Thursday, November 21, 2019

एनआरसी पर गरमा रही है राजनीति

एनआरसी पर गरमा रही है राजनीति 

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भाजपा की  केंद्र सरकार का नागरिकता संशोधन विधेयक को लेकर तीव्र आलोचना की है और कहां है कि वह इस राज्य में एनआरसी नहीं लागू कर देंगी। गृहमंत्री अमित शाह ने बुधवार को संसद में बयान दिया था कि जब भी देशभर में एनआरसी लागू किया जाएगा असम में भी उसे दोहराया जाएगा। विपक्षी दलों द्वारा शासित राज्यों ने  देश भर में एन आर सी के  खिलाफ बयान दिए हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एनआरसी बिल पर केंद्र सरकार को आड़े हाथों लिया है । उन्होंने कहा है कि कोई भी किसी से नागरिकता का अधिकार नहीं छीन सकता और उसे शरणार्थी नहीं बना सकता है।
राज्य सरकार का दावा है कि बंगाल में एनआरसी को लेकर आतंक बढ़ता जा रहा है और कई लोगों ने पिछले 1 महीने में आत्महत्या कर ली है। उधर, अमित शाह ने कहा है, पश्चिम बंगाल में एनआरसी का लागू होना तय है और उससे पहले सरकार नागरिकता संशोधन अधिनियम के जरिए हिंदू सिख जैन ईसाई और बौद्ध शरणार्थियों को भारत की नागरिकता दे देगी। अमित शाह ने ममता बनर्जी और तृणमूल कांग्रेस पर आरोप लगाया कि वह एनआरसी को लेकर लोगों को गुमराह कर रही है। उधर राजनीतिक हलकों में यह बात उठ रही है कि सरकार एनआरसी के जरिए बांग्लादेशी नागरिकों को देश से बाहर निकालने की बात तो कर रही है लेकिन यह कैसे होगा यानी कैसे निकाला जाएगा लोगों को इस मुद्दे पर सरकार चुप है।
उन्होंने कहा कि असम में एनआरसी असम समझौते का हिस्सा था और यह समझौता राजीव गांधी के जमाने में हुआ था। उन्होंने कहा कि यह देशभर में कभी लागू नहीं हो सकता। ममता जी ने किसी के नाम तो नहीं लिया लेकिन कहा, कुछ लोग राज्य में उपद्रव करना चाहते हैं यह कह कर कि बंगाल में एनआरसी लागू किया जाएगा। मै  स्पष्ट करना इसे कभी लागू नहीं करने दिया T। मैं लोगों को धर्म के नाम पर बांटने नहीं दूंगी।" उन्होंने दावा किया कि राज्य को धर्म के नाम पर बांटने की साजिश चल रही है लेकिन अगर कोई बंगाल को ऐसा करने के बारे में सोचता है तो गलतफहमी में है । असम में लगभग 19 लाख लोग एनआरसी की सूची से बाहर   जिन्हें एनआरसी की सूची से बाहर रखा गया है। उनमें बंगाली हिंदू, मुसलमान ,गोरखा और बौद्ध है इन्हें डिटेंशन सेंटर में भेजा जाएगा। बंगाल में ऐसा कभी नहीं करने दिया जाएगा और ना ही कोई डिटेंशन सेंटर बनने दिया जाएगा। यहां एक बुनियादी प्रश्न है कि यदि एनआरसी एक कानूनी प्रक्रिया है तो असम एनआरसी के तहत गैर नागरिक घोषित लोगों के साथ कानूनी प्रक्रिया कैसे अपनाई जाएगी? एक तरफ सरकार बांग्लादेश की आश्वासन देती है कि एनआरसी की प्रक्रिया उसे प्रभावित नहीं करेगी तो फिर असम के इन 19 लाख लोगों का क्या किया जाएगा? कब तक की 19 लाख लोग मानवाधिकारों के बिना रहेंगे?
        उधर असम में भी एनआरसी के खिलाफ आवाज उठ रही है बुधवार को ही असम के मंत्री हेमंत विश्व शर्मा ने कहा है इसे रद्द किया जाना चाहिए और  एक ही  कट ऑफ  तारीख से  देशभर में लागू किया जाना चाहिए। असम में यह कटऑफ तारीख 24 मार्च 1971 है। जो आवेदक यह प्रमाणित कर देगा कि उस तारीख से या उसके पहले से वह  या उनके पूर्वज असम में रह रहे थे उनके नाम नागरिकता सूची में  कर लिए जाएंगे। असम में पहली एनआरसी 1951 में बनी थी और वर्तमान एनआरसी उस संदर्भ में अद्यतन है। जिन लोगों के नाम 1951 की सूची में हैं उनके परिवार के  नाम एनआरसी में लिखे जा सकते हैं और अब जो नए नाम लिखे जाएंगे वह 25 मार्च 1971 के आधार पर होंगे। यानी ,उस दिन की रात के 12:00 बजे तक यदि किसी के नाम मतदाता सूची में अथवा वैसे ही किसी वैधानिक दस्तावेज में है तो वह नाम एनआरसी में लिखा जा सकता है। एनआरसी की पहली सूची 31 अगस्त को प्रकाशित हुई थी जिसमें  19 लाख लोगों के नाम शामिल नहीं थे। ऐसे लोगों को राज्य के विदेशी ट्रिब्यूनल के समक्ष अपनी बात कहने का मौका दिया जा सकता है।
           इसके पहले अमित शाह ने कहा था कि नागरिकता संशोधन विधेयक संसद के इसी सत्र में रखा जाना है और यह अखिल भारतीय स्तर पर एनआरसी के पहले पारित हो जाएगा। यहां एक ध्यान देने की बात है कि एनआरसी यानी  नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन कट ऑफ तारीख के आधार पर नागरिकता तय करेगा जबकि नागरिकता संशोधन विधेयक धर्म के आधार पर बाहर से आए लोगों के बारे में तय करेगा। लेकिन अभी  राज्यसभा में जाने से पहले ही प्रस्तुतीकरण की तारीख पार होने के कारण निरस्त हो गया। इस विधेयक में नागरिकता अधिनियम 1955 में संशोधन का प्रस्ताव है। इसमें भारत के गैर मुस्लिम 6 अल्पसंख्यक धार्मिक समुदाय के लोगों के लिए थोड़ी रियायत मिली है । इनमें शामिल हैं अफगानिस्तान ,बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हिंदू, सिख ,बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई । प्रभावशाली सामाजिक और राजनीतिक संगठनों का कहना है कि नागरिकता संशोधन विधेयक एनआरसी के विपरीत है । अगर असम में यह विधेयक पारित हो जाता है तो जो हिंदू एनआरसी से वंचित रह गए हैं वे भी नागरिक हो जाएंगे जबकि मुसलमान इस सुविधा से वंचित रहेंगे। ऐसी स्थिति में वर्तमान एनआरसी बेकार है। अगर देशभर में एनआरसी लागू होता है तो एक बार फिर राजनीतिक तौर पर बवाल होगा और तनाव बढ़ेगा। वैसे तनाव संभवत कोई असर नहीं डाल पाएगा क्योंकि क्योंकि ग्रास रूट स्तर तक सरकार की राजनीतिक दलबंदी  है और इसका स्पष्ट उदाहरण बाबरी मस्जिद फैसले के बाद देखने को मिला।
    


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