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Sunday, November 24, 2019

महाड्रामा: क्लाइमेक्स तो अभी बाकी है

महाड्रामा: क्लाइमेक्स तो अभी बाकी है

देश के सियासी इतिहास में शनिवार को एक महा ड्रामा हुआ। शह और मात का रोमांचक खेल। ऐसा लग रहा था जैसे 80 के दशक की फिल्में देख रहे हैं या फिर उन्हीं फिल्मी कहानियों को 22 वीं शताब्दी के दूसरे दशक में चस्पा कर दिया गया है। शुक्रवार की शाम को शिवसेना के उद्धव ठाकरे को अंधेरे में रख राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अजित पवार ने अचानक बाजी उलट दी और भाजपा के देवेंद्र फडणवीस के साथ उप मुख्यमंत्री की शपथ ले ली। शरद पवार जब नींद से जागे तो उन्हें यह खबर मिली और अजीत पवार की चाल ने उन्हें चौंका दिया।
कहा तो यह जा रहा है अजित पवार के ऐसा करने के पीछे मुख्य कारण है उनके ऊपर चल रही जांच। वे फिलहाल 2 आपराधिक मामलों में फंसे हुए हैं। पहला मामला  मुंबई पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा ने दायर किया है। यह महाराष्ट्र स्टेट कोऑपरेटिव बैंक में 25000 करोड़ रुपयों के घोटाले का मामला है और मुंबई हाई कोर्ट के निर्देश पर यह मामला दायर किया गया। सिंचाई घोटाले में भी उन पर जांच चल रही है।
अजित पवार की यह चाल उनके चाचा शरद पवार की 41 साल पहले की चाल को याद कराती है, जब शरद पवार ने कांग्रेस के दो धड़ो की  सरकार गिरा कर राज्य के सबसे नौजवान प्रधानमंत्री का तमगा हासिल कर लिया । शरद पवार ने 1978 में जनता पार्टी  की गठबंधन सरकार का नेतृत्व किया था जो 2 साल से भी कम समय तक चली।संजोग से इस बार भी वह राज्य में कांग्रेस और शिवसेना से हाथ मिला कर इसी तरह का गठबंधन करने की कोशिश में थे। लेकिन  उनके भतीजे अजित पवार ने उन्हें मात देदी। उन्होंने 23 नवंबर की सुबह उप मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली। इस पर प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए शरद पवार ने कहा कि भाजपा को समर्थन देने का फैसला उन्होंने नहीं किया है। यह उनके भतीजे अजीत पवार का व्यक्तिगत फैसला है। शरद पवार ने अपनी किताब "ऑन माय टर्म्स" लिखा है कि "1977 में इमरजेंसी के बाद देशभर में इंदिरा विरोधी लहर चल रही थी और कई लोग स्तब्ध थे। पवार के गृह क्षेत्र बारामती से वीएन गाडगिल कांग्रेस की टिकट से हार गए थे। इंदिरा जी ने 1970 की जनवरी में कांग्रेस को विघटित कर दिया और पवार स्वर्ण सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस (एस ) में चले गए। क्योंकि उनके गाइड यशवंतराव चौहान भी इसी गुट में थे । 1 महीने के बाद महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव हुए और कांग्रेस ( एस) को 69 सीटें तथा कांग्रेस (आई) को 65 सीटें मिलीं। जनता पार्टी को 99 सीटें हासिल हुईं और इस तरह से किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला ।  कांग्रेस के दोनों धड़ों को मिलाकर सरकार बनाई गई। लेकिन दोनों में तनातनी कायम रही और सरकार का चलना मुहाल था। पवार ने कांग्रेस के 38 विधायकों के साथ मिलकर नई सरकार बनायी और वह सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री बने ।  1980 में दोबारा इंदिरा जी की सरकार बनी और पवार की सरकार को होने बर्खास्त कर दिया कुंवार बड़ी चालाकी से राजीव गांधी के नेतृत्व के तहत अपनी मूल पार्टी में चले आए। आज जो अजित पवार ने किया है यह संभवत शरद पवार के सियासी  स्टाइल का दोहराव है। इस बार भी किसी को बहुमत नहीं मिला है। महाराष्ट्र विधानसभा की 288 सीटों के लिए 21 अक्टूबर को चुनाव हुए थे और 24 अक्टूबर को उसके नतीजे आए थे। चुनाव में भाजपा को 105 शिवसेना को 56 एनसीपी को 54 और कांग्रेस को 44 सीटें मिली थीं। किसी भी पार्टी का  गठबंधन के सरकार बनाने का दावा नहीं पेश कर सका। इस के बाद 12 नवंबर को राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया था । इसके बाद जो ताजा समीकरण बने हैं उनको देखते हुए ऐसा लग रहा है कि देवेंद्र फडणवीस सबसे बड़े घाटे में रहेंगे। क्योंकि शिवसेना कांग्रेस और एनसीपी ने अपने विधायकों को अपने पास रखा है और इनके लिए बहुमत साबित करना मुश्किल हो जाएगा। इनके बाद घाटे में रहेंगे अजित पवार क्योंकि उन्होंने अपने चाचा शरद पवार के साथ बगावत कर एनसीपी की विश्वास को आघात पहुंचाया है । इससे उनकी साख को भारी नुकसान हुआ है। उन्हें शरद पवार के वारिस के रूप में देखा जाता था और यह जो कुछ हुआ वह शरद पवार के साथ गद्दारी मानी जाएगी। उन्होंने यद्यपि परीक्षा पास की लेकिन अभी कई परीक्षाएं बाकी हैं और इसमें भाजपा के फेल होने के आसार बहुत ज्यादा हैं। उधर अजीत पवार को एनसीपी के विधायक दल के नेता के पद से हटा दिया गया है और उनकी जगह राज्य एनसीपी अध्यक्ष जयंत पाटील को दी गई है। पाटिल की नियुक्ति का स्पष्ट अर्थ है की जब देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार की सरकार सदन में अगले हफ्ते बहुमत साबित करने के लिए खड़ी होगी तो पाटिल व्हिप जारी कर सकते हैं।  व्हिप के उल्लंघन का स्पष्ट अर्थ है पार्टी से निष्कासन और निष्कासन का मतलब विधायक पद समाप्त उधर अटकलें लगाई जा रही हैं 25 से ज्यादा विधायक अजित पवार से संपर्क में है लेकिन एनसीपी के विधायक दल बैठक में 45 विधायकों की उपस्थिति यह स्पष्ट करती है कि पार्टी के अधिकांश विधायक अजीत पवार के साथ नहीं हैं। विधायक दल की बैठक में कहा गया कि अजीत पवार ने जो कुछ किया है वह पार्टी के विरुद्ध है इसलिए उन्हें विधायक दल के पार्टी से निष्कासित किया जाता है और विधायकों को व्हिप देने का अधिकार भी उनसे वापस दिया जाता है इसके पूर्व शिवसेना के प्रमुख उद्धव ठाकरे के साथ एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में शरद पवार ने कहा कि उन्हें नहीं लगता राज्य सरकार बहुमत साबित कर पाएगी।
           अब मामला किस करवट बैठता है यह आने वाला समय बताएगा । क्योंकि पूरी की पूरी बात सुप्रीम कोर्ट के सामने है और सुप्रीम कोर्ट रविवार को ही इस पर सुनवाई करने जा रहा है।
आंकड़े बाज लोग आंकड़े इकट्ठे करते रहे ।कुछ लोगों का मानना है इस पूरे गेम में देवेंद्र फडणवीस सबसे ज्यादा घाटे में रहेंगे। इस पूरे मामले का क्लाइमेक्स अभी बाकी है देखिए क्या होता है आगे आगे।


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