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Monday, November 11, 2019

सहमी हुई है खुशी चारों तरफ

सहमी हुई है खुशी चारों तरफ 

सोमवार के अखबारों की सुर्खियां देशभर में सहमी हुई  खुशी की ओर इशारा कर रही हैं। ऐसे हालात के बरअक्स मंदिर फैसले पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का देश के नाम संबोधन को अगर देखें तो पता चलेगा भाषण बड़ा ही मधुर था।  नरेंद्र मोदी का घोर विरोधी भी उस भाषण में कोई कमी नहीं निकल सकते। उस भाषण से तीन सुर थे। पहला की एक लंबे समय के बाद सुप्रीम कोर्ट ने आखिर मामले को निपटा ही दिया और इसी के साथ एक विभाजन कारी मसला खत्म हो गया। अब समय है नकारात्मकता को भूलकर आगे बढ़ा जाए । सचमुच अगर देश  को अब तरक्की करनी है और एक समावेशित समाज के रूप में खुद को प्रस्तुत करना है तो यह जरूरी है। प्रधानमंत्री के भाषण से एक दूसरा स्वर यह निकला कि 9 नवंबर को ही बर्लिन की दीवार गिराई गई थी। बर्लिन की दीवार एक बिंब है जिसने शीत युद्ध के दौरान दुनिया को बांट दिया था। बर्लिन की दीवार गिराए जाने का बड़ा ही दिलचस्प उदाहरण है। मंदिर की रोशनी में यह बात उन्होंने अयोध्या के प्रसंग में नहीं बल्कि करतारपुर साहब के प्रसंग में कही। करतारपुर के गलियारे उद्घाटन भी 9 नवंबर को हुआ। इसने भारत और पाकिस्तान के बीच एक धार्मिक सेतु का निर्माण किया। इसके लिए भारत और पाकिस्तान दोनों ने अपने झगड़ों को भुलाकर मिलकर काम किया था। मोदी जी के भाषण से तीसरा स्वर सामने आता है वह है कि अब सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर बनाने के लिए हरी झंडी दिखा दी। अब देश के सभी नागरिकों को राष्ट्र निर्माण में खुद को लगा देना चाहिए। उन्होंने भाषण के आखिर में ईद उल मिलाद की बधाई भी दी। इसमें हिंदू मुस्लिम एकता का स्वर साफ सुनाई पड़ रहा था।
     दूसरी बार सत्ता में आने के बाद मोदी और भाजपा सरकार ने अपने हर उस वादे को पूरा कर दिया जो वह अभी तक अपने मतदाताओं से खासकर हिंदू मतदाताओं से करती आ रही थी। उन्होंने मुस्लिम मतदाताओं के लिए भी समान आचार संहिता जैसे तीन तलाक पर रोक इत्यादि का काम खत्म कर दिया। अब सवाल है कि आगे क्या हो? बाकी करने के लिए क्या बचा है? 2014 में जब मोदी जी आए थे तो उन्होंने कई वादे किए थे, जैसे अच्छे दिन, विकास और रोजगार, अधिकतम शासन न्यूनतम सरकार इत्यादि। लेकिन पिछले 3 साल से अर्थव्यवस्था - रोजगार की स्थिति बिगड़ती जा रही है। 2019 में हिंदू राष्ट्रवाद और गरीबों के खाते में करोड़ों रुपए डाले  और देश के करोड़ों वोटरों को अपनी आर्थिक तंगी को भूल जाने के लिए फुसलाने में सफल हो गए। इसके बल पर जनादेश हासिल हो गया। लेकिन अब?
        आगे बढ़ने के पहले कुछ ऐसी बातें चिंतनीय है जिनका असर आगे हो सकता है। 5 जजों की पीठ ने अयोध्या का फैसला दिया है। बेशक इस फैसले में वजन है लेकिन यह सामूहिक और प्रतियोगिता मूलक दावों  के रास्ते आड़े आएगा। यह फैसला सांप्रदायिक शिनाख्त तथा आस्था पर प्रभाव भी डाल सकता है। यहां जो सबसे मूलभूत प्रश्न है वह है  कि क्या इसके बाद सब कुछ ठीक हो जाएगा? वह जो हो रहा है वह सब बंद हो जाएगा। लेकिन शायद ऐसा नहीं होगा ? आने वाले दिनों में हो सकता है कि इस मामले को लेकर अदालत में अपील ना हो या कोई याचिका दायर ना हो पर पूरी संभावना है कि देश भर में ऐसे कई स्थल हैं जिनकी सूची तैयार होगी और उनके लिए भी इसी तरह के मामले आरंभ होंगे और अयोध्या का फैसला उसका आधार बनेगा। वैसे देश थक चुका है मंदिर मस्जिद विवाद  और सांप्रदायिक भेदभाव से। अब जरूरत है कि कोर्ट के फैसले के बाद यह सब खत्म हो जाए और सब लोग मिलजुल कर सौहार्दपूर्ण ढंग से देश के निर्माण में जुटे जैसा कि प्रधानमंत्री ने कहा है ।
         अब देश में अमन कायम करने के लिए सरकार को कश्मीर में पाबंदियों में रियायत देकर हालात हो सामान्य बनाने की कोशिश करने के  साथ  ही पाकिस्तान से तनाव कम करने और कुछ ऐसा करने की जरूरत है कि लोग उसके नाम से उग्र ना हों। सरकार को बालाकोट में बमबारी, सर्जिकल स्ट्राइक जैसे जुमलों को इस्तेमाल कर आक्रामकता को बढ़ावा नहीं देना चाहिए । सरकार को  चाहिए कि सब देश की खुशहाली के लिए काम करें और जनता को यह महसूस  होने दें सब बराबर हैं। किसी से कोई भेदभाव नहीं है और देश खुशहाली की ओर बढ़ रहा है। बेरोजगारी खत्म हो रही है जब तक ऐसा नहीं होगा तनाव कायम रह सकता है।


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