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Monday, June 12, 2017

शंघाई संगठन में भारत का प्रवेश

संघाई संगठन में भारत का प्रवेश

विगत 70 वर्षों से भारत और पाकिस्तान में भारी कटुता कायम है। खासकर कश्मीर को लेकर दोनों परमाणु शक्ति सम्पनन राष्ट्रों में चार-चार जंग हो चुकी है। हाल के वर्षों में यह कटुता ओर बढ़ गयी। दोनों मुल्कों में कोई द्विपक्षीय वार्ता इन दिनों नहीं हुई, आये दिन सीमापार से फायरिंग होती रहती हैऔर सरहद पर तैनात सैनिक मारे जाते रहे हैं या घायल होते रहे हैं। इन सात दशकों में से लगभग चार दशकों से दक्षिण एशिया के इस क्षेत्र में चीन एक ऐसी दुरूह समस्या बना हुआ हे जिसकी बुरगइयों को सब जानते हैं पर कोई इस पर बात नहीं करना नहीं चाहता। वैसे भी चीन के साथ भारत की 1962 में लड़ाई हो चुकी है और तब से सीमा समस्या कायम है। इधर पाकिस्तान के साथ चीन के आर्थिक, समरनीतिक ओर पारमाण्विक सम्बंध हैं। अब यह सब देखते हुये लगता है कि इन विरोधभासों या विपरीत परिस्थितियों में भारत और पाकिस्तान ने चीन में शंघाई सहयोग संगठन में भाग लिया है। इसके बाद संभवत: संयुक्त सैन्य अभ्यास का पथ भी प्रशस्त हो सकता है। इस बैठक के फलस्वरूप भारत एक ऐसा ऊंचा स्थान प्राप्त कर सकता है जहां से आतंकवाद और व्यापार जैसे मसायल को उठा सकता है। इसके जरिये वह मध्य एशियाई क्षेत्र में अपनी अच्छी पहुंच बना सकता है। दूसरी तरफ पाकिस्तान अपनी तार- तार हो गयी साख को सुधार सकता है तथा चीन के और करीब आ सकता है। 2005 से दोनों देश संघाई संगठन के पर्यवेक्षक रहे हैं। इस संगठन के सदस्य हैं चीन, कजाकिस्तान, रशिया, ताजिकिस्तान और उजबेकिस्तान। यह समूह प्राथमिक तौर पर यूरेशियाई क्षेत्र में सुरक्षा और आर्थिक सहयोग पर ध्यान देता रहा है। भारत और पाकिस्तान के इसमें शामिल होने के बाद यह दुनिया की लगभग 40 प्रतिशत आबादी और 20 प्रतिशत सकल घरेलू उत्पाद(जी डी पी) का प्रतिनिधित्व करेगा। लेकिन इसके साथ दक्षिण एशिया के लिये एक तकलीफदेह पहलू यह भी है कि भारत और पाकिस्तान की फौजें अपनी ताकतों को जोड़ रहीं हैं। शंघाई संगठन के मेमोरेंडम के मुताबिक संयुक्त सैन्य अबियान होगा। यकीनन इससे आत्मविश्वास बढ़ेगा। रूस और चगीन भी चाहते हैं कि भारत और पाकिस्तान करीब आयें। सैन्य इतिहास में अबतक राष्ट्रसंघ के तहत ही भारत और पाकिस्तान ने मिलकर काम किया है यह पहला मौका होगा जब दोनों साथ मिल कर अभ्यास करेंगे। ये दोनों देश ताशंकद आतंकवाद विरोधी ढांचे (आर ए टी एस) के भी भाग होंगे। इससे आतंकवाद , ड्रग अपराध और साइबर अपराध सेबी निपटने में सुविधा होगी। भारत और पाकिस्तान अपने तरह के एक खास सहयोग की ओर कदम बड़ा रहे हैं। बहुत लोग इस बात से सहमत नहीं होंगे, वे दोनों देशों के तनावभरे रिश्तों का उदाहरण देंगे। लेकिन वे संगठन अन्य सदस्यों के साथ मिल कर दोनों देशों के सैन्य अभ्यास को मानते हैं। इससे दोनों देशों में भरोसा बढ़ेगा। लेकिन सवाल है कि क्या ऐसा होगा? विशेषज्ञों का मानना है कि निकट भविष्य में शायद ही एसा हो। पूरयी स्थितियों पर विचार करने के बाद ऐसा लगता है कि हम भारत और पाकिस्तान की ताकतों को ज्यादा करके आंक रहे हैं क्योंकि इस संगठन पर चीन और रूस जैसी शक्तियों का वर्चस्व है। किसी भी सूरत में भारत इस मंच से अपने विवादों को जाहिर नहीं करेगा क्योंकि अन्य माहमले भी हैं जिनपर ध्यान दिये जाने की जरूरत है। बीजिंग भी ऐसा नहीं चाहेगा। चीन विवादों को जाहिर करने के लिये इस मंच का उपयोग नहीं करने देगा। इसलिये यदि भारत और पाकिस्तान इस समूह में शरीक होते भी हैं तो बहुत कुछ नहीं होने वाला। लेकिन एक बात साफ महसूस हो रही है कि यदि दोनों शामिल होते हैं तो यह समूह पूरी तरह नष्ट भी हो सकता है। हो सकता है कि दोनों में तल्खी कम भी हो जाय। पर इसकी संभावना कम है। भारत एक ऐसे वक्त में इस संगठन में शामिल हो रहा है जब चीन से भी उसके सम्बंध बहुत अच्छे नहीं हैं। पिछले महीने भारत ने चीनि के महत्वाकांक्षी ओ बी ओ आर कार्यक्रम में शामिल होने से इंकार कर दिया था। संगठन में भारत का प्रवेश एशिया के विवादों भरे क्षितिज में एक नये नक्षत्र का प्रवेश होगा और इस क्षेत्र का ‘युद्धराग’ और दिलचस्प हो जायेगा।​

 

 

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