नोटबंदी फेल, मान ले सरकार !
विमुद्रीकरण या नोट बंदी एक गलती थी यह मान लेने काह समय आ गया है। पहले तो लगता था और सरकार के तंत्रों ने बताया था कि बेशक नोट बंदी से थोड़े दिन की परेशानी है पर आगे चल कर सबकुछ सही हो जायेगा। लोगों ने अच्चे दिनों की आस में बुरे दिन काट लिये। विकास की दर घटी, बाजार में उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतें बढ़ीं लेकिन सबकुछ सह लिया गया कि चलो आगे तो अच्छा होगा। पर महाराष्ट्र में किसानों के आंदोलन और फिर उनके कर्जों की माफी ने उस भरोसे को भंग कर दिया। सचमुच नोटबंदी नाकामयाब हो गयी। जो कुछ भी उसके बारे में प्रचारित किया गया था वह गलत था। सात महीने पहले 1000 तथा 500 रुपयों के नोटों रातोरात बंद कर दिये जाने के बाद किसानों के आंदोलन तथा कृषि ऋण माफ कर दिये जाने की मांग में प्रत्यक्ष सम्बंदा है। कहने वाले कह सकते हैं कि ऋण माफी तो 2017-18 की बात है जिसका असर 2019 में दिखेगा या कहें कि यह 2019 के चुनाव का चुग्गा है पर यह तो सच है कि नोटबंदी के बाद कई मंडियों नगदी का भारी अभाव हो गया और इससे देश भर में कई जगह फसल की मांग गिर गयी। एक तो पैदावार में इस साल वृद्धि हुई और दूसरे उसके भाव गिर गये। बाजार की रपटों के मुताबिक फरवरी उत्तर प्रदेश में आलू 350 रुपये क्विंटल था, जबकि इसी अवधि में पिछले साल इसका भाव 600 रुपये प्रति क्विंटल था। प्याज महाराष्ट्र में मई में 750 रुपये प्रति क्विंटल था जो गतवर्ष इसी अवधि में 1200 रुपये था। रिजर्व बैंक की शब्दावली में कहें ‘फायर सेल पिरीयड’ में आलू , टमाटर और प्याज का औसत थो मूल्य 5 रुपये प्रति किलोग्राम था और खुदरा मूल्य 20 रुपये प्रति किलो था। मध्य प्रदेश के मालवा में मेथी और लहसुन 3100, 3200 रुपये प्रति क्विटल बिका जो गतवर्ष इसी अवधि में 4800 रुपये था। नासिक में अंगूरों के भाव गिर कर 12 रुपये तक प्रति किलो तक पहुंच गये जो पिछले साल 45 रुपये प्रति किलो बिके थे। नवम्बर 2016 के अंमत में सन्मार्ग ने कहा था कि नोटबंदी से अनौपचारिक अर्थ व्यवस्था को भारी आघात लगेगा। आज सी एम आई ई (सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी ) के आंकड़े बताते हैं कि अर्थ व्यवस्था में 1.28 लाख करोड़ का घाटा लगा है। इसके बाद जही डी पी के दो तिमाहियों की रपटें आ गयीं और उनमें लगातार गिरावट दर्ज की गयी। यदि हम इसमें नोटबंदी के असर के कारण घटा के अनुपात को 0.5 प्रतिशत भी आंकते हैं तो सी एम आई ई का आकलन दो गुना हो जायेगा। अब तो कृषि कर्ज की माफी की विशाल राशि तो अर्थ व्यवस्था की हालत खस्ता कर देगी। उत्तर प्रदेश , छत्तीस गढ़ और महाराष्ट्र में किसानों को कर्ज माफी की कुल राशि लगभग 70 हजार करोड़ है। महाराष्ट्र में (30 हजार करोड़ रुपये)कर्ज माफी की घोषणा हो गयी उत्तर प्रदेश (36 हजार करोड़ रुपये) और छत्तीस गढ़ (32 सौ करोड़ रुपये) की माफी के बाद बैंक ऑफ अमरीका और मेरिल लिंच बैंक के आांकड़ों के अनुसार इससे हानि का स्तर 2019 तक 2.57 लाख करोड़ पहुंच जायेगा। 10 जून को प्रकाशित उनकी एक रिसर्च रिपोर्ट में कहा गया र्है कि ‘कृषि ऋण माफी का असर देश भर में पड़ेगा।देश भर में किसानों का कुल ऋण 540 अरब डालर है जो जी डी पी के 2 प्रतिशत के बराबर है। ’ 2019 के चुनावों के मद्देनजर अगर ऐसा होता है तो यह बड़ी बात नहीं होगी। अगर हम यह मान लेते हैं कि जो कर्ज माफ हो रहा है उसका आधा नोटबंदी की मजबूरी के कारण है3.5से 4 लाख करोड़ तक की हानि होगी। इतनी रकम तो काले धन से बैंकिंग सिस्टम में आयी नहीं है। कहा जा सकता है कि नोटबंदी ने किसानों की कमर तोड़ दी। पिछले दो सूखा ने जिताना असर डाला था उससे ज्यादा हानि पहुचा दिया। सारी आर्थिक चालाकियां बेकार साबित हुईं। मोदी जी के भक्तों का यह कहना जायज है बेड़ा नेता बड़ा और बोल्ड फैसला लेता है और मोदी जी ने काले दान को खत्म करने के लिये यह बहोल्ड फैसला किया था।पर अच्छी राजनीति वह है कि गलतियों को नेता मान लें। गलतियों को सही बताना बहुत बड़ी गलती है।
Thursday, June 15, 2017
नोटबंदी फेल, मान ले सरकार
Posted by pandeyhariram at 8:57 PM
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