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Sunday, June 25, 2017

चलो सुहाना भरम तो टूटा

चलो सुहाना भरम तो टूटा

देश में जहां मोदी की कीर्तनपार्टी उनके खिलाफ लिखने बोलने वालें को क्रा क्या नहीं कह रहे हैं। यहां तक अश्लील गालियां तक दे रहे हैं वहीं विदेशों जहां प्रचारित था मोदी जी के नाम का डंका बज रहा है वहीं एक तरफ रूस के राष्ट्रपति पुतीन भारत सरकार को चेतावनी दे रहे हैं कि भारत की स्वायत्तता को खतरा है जरा संभल कर रहें ।  दूसरी ओर इन दिनों विदेशी अखबार दुनिया की इस  ‘सबसे तेज अर्थ व्यवस्था’ पर तीखे आलेख लिख रहे हैं। न्यूयार्क टाइम्स और वाशिंगटन पोस्ट ने तो कुछ दिन पहले भारत की अर्थ व्यवस्था और उससे प्रभावित हो रही समाज व्यवस्था की काफी आलोचना की थी। विख्यात पत्रिका इकॉनोमिस्ट ने अपने ताजा अंक में लिखा है कि ‘भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सुधारक नहीं हैं’ , ‘मोदी कट्टर राष्ट्रवादी हैं’ और ‘कभी का रोता हुआ गणतंत्र इन दिनों दमित महसूस कर रहा है।’इकॉनोमिस्ट का जो सबसे नाजुक हमला है वह कि इन दिनों जो हिंदंत्व वैरायटी के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को प्रोत्साहित किया है वह देश की अर्थ व्यवस्था में प्रगति के त्वरण से मंद कर दिया है और साथ ही एक परिपक्व लोकतंत्र के ग्लोबल सॉफ्ट पावर के तौर पर भी इसे अलग कर दिया है।

इन सबसे अलग अगर मोदी जी उपलब्धियों की बात करें तो दिवालिया कानून 2016 तथा 1 जुलाई से लागू होने वाले ज एस टी का उल्लेख कर सकते हैं। लेकिन जहां सुधार और त्वरा की आवश्यकता थी वहां मोदी जी के सुधार का भरम टूट गया। जहां 2013 के 6.7 प्रतिशत आर्थिक विकास तेजी से 2015-16 के वित्तीय वर्ष में 7.9 प्रतिशत हो गया था और दुनिया को लगने लगा था कि भारत एक तेजी से उभरती हुई अर्थवयवस्था है। इससे लगने लगा था कि मोदी जी सचमुच महान आर्थिक सुधारक हैं और हिंदू राष्ट्रवादी की उनकी छवि केवल चुनावी हथकंडा थी। लेकिन, जैसे ही यह वित्तीय वर्ष 2016-17 में प्रवेश किया कि अर्थ व्यवस्था लड़खड़ाने लगी। 2016-17 की तीसरी तिमाही में अर्थ व्यवस्था के विकास की दर लुढ़क कर 6.1 प्रतिशत हो गयी​। 8 नवम्बर 2016 को 56 इंच के सीने को और वृहदाकार बनाते हुये मोदी जी ने नोटबंदी की ोषण करते हुये कहा कि इससे आतंकवादियों धन मिलना बंद हो जायेगा और काला धन समाप्त हो जायेगा। पर कुछ नहीं हो सका। लेकिन कुछ नहीं हो सका उल्टे कितने लोगों की रोजी रोटी खत्म हो गयी। अब जीएस टी लाया जा रहा है। इसमें कर सीमा की भारी भूल भुलैया है। सन्मार्ग के एक पाटक पंकज कुमार ने जीएस टी पर अपनी अफनी प्रतिक्रिया में लिख भेजा कि ‘जिस देश में कहां शौच करना है यह भी टी वी में विज्ञापन देकर बताना पड़ता है उस देश में जी एस टी का फायदा कौन समझा सकता है।’ सचमुच जीएसटी के लागू होने से जहां अफसरी अड़चने बढ़ जायेगी वहीं ​निवेश भी सिकुड़ जायेगा। औद्योगिक ऋण का भुगतान रुक गया है ओर ढांचागत परियोजनाएं नगदी के अभाव में ठप हो गयीं हैं। देश का कारपोरेट क्षेत्र दुविधा में है। भूमि और श्रमिक समीकरण टूटते जा रहे हैं। भूमि सुधार के अभाव में उद्योगों जमीन नहीं मिल रही और जमीन की कमी कारण आद्यौगिक विकास थमता जा रहा है। कुल मिला कर वे सुधारक नहीं हैं जौसे कि गाया बाजाया जा रहा है। बेशक उनमें पूर्ववर्ती प्रदानमंत्री मनमोहन सिंह से ज्यादा ऊर्जा है और उन्होंने उद्योग से लेकर शौचालय तक के हर क्षेत्र में पहल की। लेकिन कुछ भी सफल नहीं हुआ। इधर समाज व्यवस्था का समन्वय ​बिगड़ता जा रहा है। मोदी जी के शासनकाल में कट्टर राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के तत्व छुट्टा चर रहे हैं। देश को हिंदू राष्ट्र बनाने की बात चल रही है। ‘काउ और क्रिकेट’ की जुगलबंदी में देश के 14 प्रितिशत अल्पसंख्यक प्राड़ित हो रहे हैं। उनहें मानसिक और शारीरिक यातना दी जा रही​ है। ऐसा लग रहा है कि जनता और निवेशकों ने जो मोदी जी पर भरोसा किया था वह खत्म होता जा रहा है। मोदी जी ने देश की जनता से वादा किया था कि अगर वे सत्ता में आये तो ‘कम से कम नियंत्रण और ज्यादा से ज्यादा शासन।’ लेकिन आज तो लग रहा है कि आज ज्यादा से ज्यादा नियंत्रण है और नागरिक अधिकारों, बेतरह पीट कर मार डालने की घटनाओं वगैरह से लगता है कि शासन है ही नहीं। हाल तक ग्लोबल मीडिया मोदी जी की वाहवाही करता था और आज वही नुक्ताचीं करने में लग गया। इन दिनों तो लग रहा है कि मोदी जी ‘मेक इन इंडिया’ और अन्य प्रमुख कार्यक्रम मंद लोकतंत्र के भार से दब गये हैं और हिंसक हिंदुत्व का आतंक भड़क उठा है। मोदी जी के बारे में पूरी दुनिया में व्याप्त एक सुहाना सा भरम धीरे धीरे टूटने लगा है।        

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