विपक्ष को झांसा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का राष्ट्रपति चुनाव में विपक्षी दलों की सहमति एक ही उम्मीदवार खड़े करने की बात स्पष्ट रूप से झांसा है। सत्तारूढ़ दल अपने संख्या बल में विपक्ष से बीस है। लेकिन शायद नरेंद्र मोदी की इस पेशकश को विपक्ष संख्या बल के समीकरण से नहीं आंक रहा है। ये दल शायद इसे औपचारिकता के संदर्भ में देख रहे हैं। वे यस होच रहे हैं कि भाजपा के नेता राजनाथ सिंश् और वैंकया नायडू ने जब शुक्रवार को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और माकपा महासचिल सीताराम येचुरी से मुलाकात की तो किसी उम्मीदवार के नाम पर चर्चा नहीं की। इस मुलाकात के बाद कांग्रेस और माकपा ने घोषणा की कि जब तक नाम सामने नहीं आयेगा किसी प्रकार की सहमति नहीं हो सकती है। दोनों भाजपा नेताओं ने अन्य विपक्षी दलालें के नेताओं से भी बात करने की योजना बनायी है ओरए आई ए डी एम के से तो उनका तालमेल हो भी गया है। जिस दिन भाजपा ने तीन सदस्यीय समिति का गठन किया था उसी दिन यह तय हो गया था कि पार्टी यह दिखाना चाहती है कि वह अंतर्वेशित राजनीतक शक्ति जो विपक्ष को भी साथ लेकर चलना चाहती है। यह उन क्षेत्रीय दलों को सालथ आने का एक अवसर देना चाहती है जो विरोदा दलों के साथ कदमताल कर रहीं हैं। पूरी संभावना है कि भाजपा नेताओं ने किसी नाम पर चर्चा नहीं की होगी , यह भी संभावना है कि वे पार्टी के प्रतिनिदि का नाम जहानते भी नहीं होंगे। मोदी के बारे में यह कहा जाता है कि वे अपने पत्ते बिल्कुल छुपा कर रखते हैं सभी अटकलों- कयासों को गलत साबित करना चाहते हैं। इसलिये इस बारे में किसी तरह की अटकलबाजी व्यर्थ है। वैसे भाजपा नेताओं की आपसी बतरस में यह बात तो चल रही है कि उम्मीदवार का नाम तो तय हो चुका है यह विपक्ष से बात – मुलाकात महज दिखावा है। नाम केवल नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ही जानते हैं और जब समय आयेगा ताहे वे इसकी घोषणा करेंगे। किसी भी नाम की ोशणा के पहले मोदी ओर शाह सभी विकल्पों पर विचार करने में लगे हैं। मोदी और शाह बहुत चालाक और बुद्धिमान राजनीतिज्ञ हैं और राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति पद के लिये वे दलित आदिवासी कम्बीनेशन की पड़ताल में लगे हैं। इससे समाज के उस वर्ग को थोड़ा संतोष होगा जो इस सरकार को आने के बाद खुद को परित्यक्त महसूस कर रहे हैं। अरूण जेटली सहित तीन केंद्रीय मंत्रियों को तीन सदस्यीय समिति में शामिल कर इन्हें एक झटके में दौड़ से बाहर कर दिया। फुसफुसाहट तो यह है कि इन तीनों में से एक तो राष्ट्रपतपिद के लिये चुनाव लड़ने का मन बना चुके थे। मोदी जी ने साफ मना कर दिया। यहां तक कि विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के नाम की भी चर्चा थी पर मोदी जी के इंकार के बाद अब तो ऐसा कुछ नहीं है।
मोदी जी के काम करने की जो शैली है उससे तो लगता है कि वे समानांतर सत्ता केंद्र नहीं चाहते जो उनहें चुनौती दे सके बल्कि वे रबर स्टाम्प राष्ट्र पति चाहते हैं। यही कारण है कि लाल कृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी को उन्होंने रायसिना हिल्स की दौड़ से बाहर निकाल दिया। यही कारण है कि द्रौपदी मुरमू और न्यायमूर्ति जैसे लोग के नाम सामने आ रहे हैं। अब चाहे जो उम्मीदवार होंगे उनके नाम 24 जून के पहले सामने आ ही जायेंगे। क्योंकि 24 जून को नरेंद्र मोदी अमरीका, नीदरलैंड्स और पुर्तगाल की यात्रा पर चले जायेंगे। हो सकता है कि भाजपा या राष्ट्रीय स्वंय सेचक संघ का कोई नेता देश का राष्ट्रपति बन जाय। क्योंकि यह पहला अवसर है कि अपने नेता को राष्ट्रपति भवन में भेज सकेगी। कांग्रेस ने तो प्रतिभा पाटिल को चुन कर पहले ही नजीर कायम किया हुआ है। उस समय कांग्रेस ने भी किसी से कोई परामर्श नहीं लिया। आज भाजपा के पास संख्या बल है और वह आज किसी से परामर्श नहीं करने वालु। यह परामर्श महज दिखावा है या किसी बात को छिपाने का झांसा है।
ऐसी स्थिति में अब न जाने क्यों विपक्ष भाजपा की प्रतिक्षा में है कि वह नाम की घोषणा करे तो वह भी अगला कदम उठाये। विपक्ष ने तो बार बार कहा है कि वह भाजपा के उम्मीदवार का समर्थन असके धर्मनिरपेक्ष चरित्र को देख कर ही करेगा। अब तो जरूरी है कि विपक्ष अपने उम्मीदवार के नाम की घोषणा कर दे ओर सहमति जुटाने के काम में जुट जाए। लेकिन अभी तक ऐसा हुआ नहीं।
विपक्ष के पास अबी तक कोई नाम नहीं है ना किसी नाम पर सहमति है। इससे साफ जाहिर होता है कि उनमें एकता नहीं है और इकता नहीं है तो 2019 में मोदी की आंदा को केसे रोक पायेंगे? एक उम्मीदवार को तय करने में अगर ये इतना समय ले रहे हैं तो 2019 के लोक सभा चुनाव में सीटों के बंटवारे पर कितना समय लगायेंगे।
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