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Friday, June 23, 2017

मोदीजी ध्यान दें

मोदी जी ध्यान दें

रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति पद के लिये उम्मीदवार बनाने कहा जाने लगा कि भाजपा ने 2019 का चुनाव फतह कर लिया। कोविंद दलित बिरादरी से हैं और उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात के डेरापुर तहसील के किसान परिवार से हैं अतएव सियासत के लिये खास कर चुनाव जीतने के लिये जो अर्हताएं चाहिये वे सब उनमें हैं। वे दलित हैं, किसान हैं और उत्तर प्रदेश के हैं। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कोविंद को वोट देने का फैला किया है। अन्य दल भी हो सकता है ऐसा ही करें केवल कांग्रेस, वामपंथी ,तृणमूल कांग्रेस और राजद को छोड़कर।इसबीच भाजपा उत्तरपूर्व , पश्चिम बंगाल और दक्षिण भारत में भी पैर फैला रही है। हिंदू दलों का ध्रुवीकरण भी एक हकीकत है। गरीब समुदाय तो भाजपा के साथ है ही। कोविंद की चमकविहीन पृष्ठभूमि तो एक अतिरिक्त पूंजी है।यदि सवर्ण हिंदू, दलित, अन्य पिछड़ी जाति के लोग , किसान और गरीब वर्ग के लोग किसी को समर्थन करें तो वह कैसे चुनाव हार सकता है? उत्तर है कि पराजय मिल सकती है य​दि मोहभंग हो गया तो। फिलहाल भाजपा का जादू अर्द्ध उदारवादी अभिजात वर्ग और मध्य वर्ग के एक हिस्से में उतर रहा है। वे हर मोड़ पर दारने वाले टैक्स कानूनों तथा सुस्त अफसरशाही , पाकिस्तान और चीन के बारे में ढुलमुल नीति , बीफ पर तरह तरह के सरकारी तमाशे, गौरक्षकवाद इत्यादि से ऊब चुके हैं। लेकिन ये सब ऐसे मामलात नहीं है जिससे चुनाव का परिणाम तय होता है या कहें हार जीत का फैसला होता है। परंतु एक बात है कि मोदी जी को अपने अतिआत्मविश्वास के प्रदर्शन से बचाना होगा। उनमें ऐसा आत्म विश्वास दिखता है मानों वे जो करते हैं वही एकमात्र सही है। तीन साल से मोदी जी की सरकार है। उनके साथ 281 सांसद हैं। लेकिन भाजपा की जो दिशा है वह चिंताजनक है। जहां इसे दृढ़ होना चाहिये वहां यह नहीं होती है और जहां रुख लचीला होना चाहिये वहां कठोर दिखती है। जब मोदी जी ने सत्ता संभाली है तो उन्होंने कहा था कि वे प्रधानमंत्री नहीं प्रधान सेवक हैं। संसद के सदस्य वी आई पी नहीं हैं वे जनता के सेवक हैं। लेकिन मोदी जी के साथी सांसद लगता है उनकी बात पर ध्यान नहीं दे रहे हैं। वे तो शाहों की तरह व्यवहार कर रहे हैं। शिवसेना के रवींद्र गायकवाड़ और तेलुगू देशम पार्टी दिवाकर रेड्डी का हवाई कम्पनियों के साथ अश्लील व्यवहार से यह पता चलता है कि उन्होंने कैसे अपनी भूमिका को समझा है। एक आम आदमी  हवाई यात्रा के लिये पैसे देता है जबकि एक सांसद उसके लिये भुगतान नहीं करता है। उसे सांसद को मिलने वाली सुविधाओं के तहत यह सुविदा मिलती है। यह जानकर हैरत होगी कि भारत के सांसद सबसे कम उत्पादक हैं और सबसे ज्यादा दिखाऊ हैं। ब्रिटिश सांसदों को अपने आवास का जुगाड़ करना होता है और उसके लिये भुगतान करता है। फोकट में घर नहीं मिलता। जबकि भारत के सांसदों को लुटियन जोन में विशाल बंगले मिलते हैं जिनका बाजार दर लगभग 15 से 20 लाख रुपया महीना है। राज्य सभा को छोड़कर और लोकसभा के 800 सांसदों में से अगर 500 सांसद भी ऐसे बगले में रहते हैं करदाताओं के 1200 करोड़ रुपयों का सिर्फ आवास में सतयानाश हो जाता है। हलक में हाथ टाल कर टैक्स के पैसे वसूलने वाली सरकार जनता के कथित सेवकों के आवास पर साल में 1200 करोड़ रुपये खर्च करती है। अब इस पर अन्य खर्चो तथा सुविधाओं को जोड़ दें तो राशि कितनी ज्यादा हो जायेगी इसका अंदाजा है क्या?जनता के इन कथित सेवकों को आवास के अलावा मुफ्त के गार्ड, मुफ्त टेलीफोन, मुफ्त बिजली , मुफ्त कार और मुफ्त पेट्रोल मिलता है। इसके अलावा हवाई यात्रा, रेल यात्रा और सेक्रेटरी भी मुफ्त मिलते हैं। अब ये बदले में देश को देते क्या हैं? देना तो दूर ये हवाई यात्रियों पर हमला करते हैं , स्टफ से गाली गलौज करते हैं आम जनता काहे कीड़ा मकोड़ा समझते हैं। इसकाह कोई समाधान है? समाधान है अगर गलती या गलत आचरण करने वाले सांसद की पार्टी उनपर कठोर कार्रवाई करती है तो बात बन सकती है। लेकिन ऐसा होता है क्या। हर सरकारी पक्ष को संसद के दोनों सदनों में समर्थन चाहिये और अगर वह अन्य पार्टियों के सांसदों पर दंडात्मक कार्रैवाई करता है तो सदन में कठिनायी बड़ सकती है। हर सरकार के सत्ताकाल में एक मोड़ जरूर आता है। जैसे यू पी ए सरकार के काल में निर्भया कांड हुआ। इसके पहले से घोटाले वगैरह तो चल ही रहे थे। अण्णा हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन ने उसे और कमजोर कर दिया। निर्भया कांड के 17 महीनों के बाद यू पी ए सरकार गिर गयी।

अभी मोदी सरकार के से लिये ऐसा कोई मोड़ नहीं आया दिख रहा है। उल्टे राष्ट्रपति चुनाव उनके वोट आधार को और मजबूत कर देगा। लेकिन चिंताजनक संकेत मिलने लगे हैं। इन संकेतों को नजर अंदाज नहीं किया जाना चाहिये। उत्तर प्रदेश की भारी विजय ने उसे थोड़ा आत्म संतुष्ट कर दिया है। भाजपा को यह याद रखना चाहिये कि चुनाव में लहर अचानक आयेगी और सब कुछ बहा कर ले जायेगी।असहिष्णुता का झूठा अभियान जानबूझ कर गढ़ा जाता है। अतीत में भी इसका असर मेखा गया है और वर्तमान में भी हो सकता है। अगर प्रधानमंत्री ने अपने सांसदों को सचमुच जनता का सेवक नहीं बनाया और यही हाल रहा तो बात बिगड़ सकती है।  

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