धीमा हुआ आर्थिक विकास
कहां तो कहा गया था कि आर्थिक विकास पर लगा कर उड़ेंगे नोटबंदी के बाद और कहां आंकड़े बता रहे हैं वीक की चाल धीमी पड़ रही है। इसी धीमेपन के चलते जो तीव्र आर्थिक विकास वाला जो तमगा भारत की गिरेबान पर लगा था वह छिन गया और चीन के सीने पर लग गया। हालांकि कृषि क्षेत्र में काफी अच्छी हालत थी फिर भी विमुद्रिकारण या कहें नोटबंदी के बाद आर्थिक विकास की गति मार्च 2017 को समाप्त हुई तिमाही के बाद 7.1 प्रतिशत से घट कर 6.1 प्रतिशत हो गई। सकल घरेलू उत्पाद का नया आधार वर्ष 2011-12 तय किया गया था और उस आधार पर 2015-16 में सकल घरेलू उत्पाद ( जी डी पी ) 8 प्रतिशत था। केंद्रीय सांख्यकी कार्यालय द्वारा जारी ताज़ा आंकड़े बताते हैं कि 31 मार्च को समाप्त हुई गत वित्तीय वर्ष में जी वी ए नीचे खिसक कर 6.6 हो गया जो कि 2015-16 में 7.9 था। ऐसा लगता है कि नॉट बंदी के प्रभाव के कारण 2016-17 की तीसरी और चौथी तिमाही में जी वी ए नीचे खिसक कर क्रमशः 6.7 % और 5.6 % हो गया जो कि उसके पहले क्रमशः 6.7% और 8.7 प्रतिशत था। विमुद्रिकारण के बाद खेती के अलावा सभी क्षेत्रों में वृद्धि घटी है। उत्पन क्षेत्र का विकास तीसरी तिमाही में 12.7 था जो अंतिम तिमाही में घट कर 5.3 हो गया। निर्माण क्षेत्र में विकास तो ऋणात्मक हो गया। अच्छे मानसून के कारण कृषि क्षेत्र में 2015-16 के 0.7 % के मुकाबले इस वर्ष 4.9% विकास हुआ। चौथी तिमाही में कृषि क्षेत्र का जी वी ए 5.2 प्रतिशत रहा जबकि 2015-16 में इसी अवधि में यह 1.5 प्रतिशत था। 2016-17 में प्रति व्यक्ति आय 1लाख 3 हज़ार 219 रुपये आंकी गई थी जबकि 2015-16 में यह 94 हज़ार130 रुपये थी। इस क्षेत्र में यह विकास 9.7 आंकी गई। इन आंकड़ों को जारी करने के बाद बुधवार को सांख्यिकी विभाग के प्रमुख टी सी ए अनंत ने कहा कि इस धीमापन के लिए अकेले नोटबंदी कारण नहीं है। यह कई कारणों में से एक है।केवल नोटबंदी को कारण बताना उचित नही होगा। सरकार के जितने नीतिगत निर्णय हिओते हैं सबका विकास पर असर होता है। नोटबंदी उनमें से एक कारण है। अन्य कारकों को भी ध्यान में रखना होगा। आर्थिक स्वास्थ्य के दो प्रमुख पहलू होते हैं- सकल स्थायी पूंजी निर्माण और निजी खपत। इनमें भी तीसरी तिमाही के मुकाबले गिरावट आई है। यह तीसरी तिमाही में 57.3% थी जो कि अंतिम तिमाही में घट कर 28.5% प्रतिशत हो गई। इस धीमेपन से बाजार में आतांकि है। बाजार के विश्लेषकों का मानना है कि यह गिरावट विचलित कर देने वाली है क्योंकि सूचीबद्ध कंपनियों ने भी अपनी आमदनी में गिरावट का रोना शुरू कर दिया है। भारत के विकास का जो सबसे दुखद पहलू है वह भी रोजगार का अभाव। आबादी का लाभ अब बोझ बनता जा रहा है क्योंकि रोज रोजगार के लायक लोगों की तादाद बढ़ती जा रही है जबकि रोजगार के अवसर बढ़ नहीं रहे हैं। देश के
सामाजिक आर्थिक स्थायित्व के लिए विकास समान वितरण जरूरी है। आरेठशास्त्रिओं के अनुसार इस धीमेपन के दो कारण हैं। पहला यकीनन नोटबंदी है जिसके कारण मांग और आपूर्ति दोनों को क्षति पहुंची। निर्माण क्षेत्र में तो सीधा असर पड़ा क्योंकि रीयल स्टेट पर नोटबंदी ने जबरदस्त प्रहार किया था। व्यय के रूप में सरकार की ओर से कुछ क्षतिपूर्ति की वजनी चाहिए थी। इस गिरावट का दूसरा कारण है आर्थिक सेवा में जैसे क्षेत्रों में नए डब्लू पी आई का असर।
जब जी डी पी के आंकड़ों की घोषणा हुई उसके कुछ पहले स्टेट बैंक के प्रमुख अर्थशास्त्री एस के घोष ने कहा कि भारतीय अर्थ व्यवस्था 2017 वित्तीय वर्ष की दूसरी तिमाही से ही गिरावट की ओर चल रही है। यह गिरावट तीसरी तथा चौथी तिमाही में और तेज़ हो गई। सामान्य भाषा में जी वी ए चौथी तिमाही में बढ़ कर 11.3% हो गई पर जी वी ए संकुचन के कारण चौथी तिमाही में 5.6% गिना गया। दरअसल यह धीमापन नोटबंदी के पहले और बाद का असर है।
Thursday, June 1, 2017
धीमा हुआ आर्थिक विकास
Posted by pandeyhariram at 7:21 PM
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