बड़े अफसरों के ट्रांसफर पोस्टिंग की दलाली में लगे हैं सम्पादक
हरिराम पाण्डेय
जबसे भारतीय जनता पार्टी की सरकार सत्ता में आयी है तबसे मीडिया और सियासत के ‘गंगा - जमुनी’(काले- सफेद ) रिश्ते को लेकर तयह तयह की बातें उठ रहीं हैं। फेक न्यूजऔर फैकट न्यूज की भूल भुलैया ही काफी थी इसी बीच नेताओं और पत्रकारों की दुश्मनी – दोस्ती को लेकर भी कहानियां गढ़ी जाने लगीं। कई बार नेताओं की तरफदारी में मीडिया का एक हिस्सा गोयबल्सनुमा बारम्बारता से झूठ को सच बनाता हुआ देखा जाता है तो कई बार सच को खारिज करते हुये भी देखा जाता है। जाहिर है कि सबकुछ नफा नुकसान को ध्यान में रख कर कियाग् जाता है। लेकिन यह सब अब तक केवल बातें ही थीं। कोई ऐसा सबूत किसी के पास नहीं था कि कोई उंगली रख कर कह सके कि मीडिया ने किसी स्वार्थ के लिये किसी बड़े नेता से कहा हो याखिल्लम खुल्ला सिफारिश की हो। पर पिछले पखवाड़े एक ऐसा वाकया सामने आया जिससे ताकतवर मीडिया ने किस तरह एक ताकतवर नेता से अफसरों के तबादले – तैनाती के लिये सिफारिश की है।
मीडिया को लोकतंत्र का चौथा खम्भा कहते हैं और आम जनता इसे देश की आंख और कान मानती है। खासकर अंग्रेजी मीडिया का तो इतना रोब है कि आम लोग उसे ‘होली काउ’ मानते हैं और उसकी ईमानदारी – निष्पक्षता – बौद्धिकता पर उंगली उठाने का साहस नहीं करते। लेकिन जो सबूत मिले हैं उनके आधार पर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि ये वह सब करते हैं जो समाचार से अलग है। अभी पिछले पखवाड़े देश के अग्रणी कहे जाने वाले अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया के एक सम्पादक ने आयकर विभाग के एक अधिकारी अनुपम सुमन की लंदन में तैनाती के लिये वित्तमंत्री अरुण जेटली से सिफारिश की। कहते हैं कि गलतकारी चाहे जितनी चालाकी से की जाय कोई ना कोई चूक हो ही जाती है और वही चूक जानलेवा हो जाती है। इस मामले में भी ऐसा ही हुआ। टाइम्स ऑफ इंडिया के एक सम्पादक दिवाकर अस्थाना ने आई आर एस अफसर दिवाकर सुमन को यह बताया था कि उनहोंने अरुण जेटली से उनकी(सुमन की) सिफारिश की है। परंतु गलती से यह वाट्सएप टाइम्स ऑफ इंडिया के दिल्ली ब्यूरो के ग्रुप का था जो समाचारों पर आपसी विचार विमर्श के लिये बना है। अस्थाना ने 31 मई को शाम चार बजे दिये गये इस संदेश में अनुपम सुमन को बताया था कि उन्होंने और एक अन्य सम्पादक पी आर रमेश ने नार्थ ब्लॉक में वित्त मंत्री से मिल कर उनकी तैनाती के बारे में बातें की हैं। यह संदेश गलती से टाइम्स ऑफ इंडिया ग्रुप पर पोस्ट हो गया। 15 मिनट के बाद अस्थाना को यह बात पता चली तब तक देर हो चुकी थी। लगभग हर पत्रकार उस संदेश का स्क्रीन शॉट ले चुका था और बतरस आरंभ हो चुका था। पी आर रमेश कभी इकोनॉमिक टाइम्स के ब्यूरो प्रमुख हुआ करते थे और फिलहाल ओपन पत्रिका के सम्पादक हैं। अनुपम सुमन अध्ययन के लिये छुट्टी पर हैं और वे चाहते हैं कि उनकी यहां उच्चयोग में तैनाती हो जाय। यह पद विशेष तौर पर निर्मित किया गया है और बहुत महत्वपूर्ण है। आई आर एस अफसरों को कालेधन पर नजर रखने के लिये यहां उच्चयोग में फर्स्ट सेक्रेटरी के पद पर नियुक्त किया जाता है। यह पद बहुत महत्वपूर्ण है। (काले धन की राउंड ट्रिपिंग और नोटबंदी का इस शहर से क्या ताल्लुक थे इस बात की जांच में जुटा है सन्मार्ग। जैसे ही पूरी जानकारी हासिल होगा सन्मार्ग अपने पाठकों को बतायेगा।)
इस संदेश के सामने आने पर यह बात स्पष्ट हो गयी कि सम्पादकद्वय – दिवाकर अस्थाना और पी आर रमेश – की वित्तमंत्रालय में अच्छी पष्ठ है और अरुण जेटली के निजी सचिव सीमांचला दास , आई आर एस, से भी गाढ़ी छनती है। क्योंकि इस बातचीत में वह भी शामिल थे। संदेश में दिवाकर ने दावा किया है कि अरुण जेटली और सीमांचला दास ने सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्सेज के चेयरमेन से बात कर इस सुमन की लंदन में तैनाती के रास्ते की अड़चनों को दूर करें। सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्सेज ने इस तैनाती पर आपत्ति की थी। बोर्ड का कहना था कि चूंकि सुमन अध्ययन अवकाश पर हैं इसलिये उन्हें इस महत्वपूर्ण पद पर तैनात नहीं किया जा सकता है। यहां यह बता देना जरूरी है कि लंदन कालेधन का केंद्र है। इसमें एक और अत्यंत दिलचस्प तथ्य उभर कर सामने आया कि सीमांचला दास ने वित्तमंत्री को सलाह दी कि अनुपम सुमन को लंदन में तैनात किया जासके इसके लिये वे सबी विदेशी पोस्टिंग रद्द कर दें। जहां तक खबर है कि अभी इस पद पर विजय वसंत नियुक्त हैं और उनकी नियुक्त रद्द करवा कर सुमन को उनकी जगह नियुक्त कराने की कोशिश की जा रही है। इससे साफ जाहिर होता है कि ये दोनों सम्पादक आयकर विभाग में प्रमुख पोस्टिंग करवाने के काम में लगे थे।
यहां सबसे बड़ा सवाल है कि वित्तमंत्रालय में ऐसे भ्रष्टाचार कैसे होते हैं? अरुण जटली इसपर रोक क्यों नहीं लगाते?कहीं ऐसा तो नहीं इस प्रकार के लाभ देकर ये नेता अपने एजेंडे के लिये कहीं अखबरों का इस्तेमाल तो नहीं कर रहे हैं। इससे एक सवाल और उठता है कि क्या जो अखबार या मीडिया समूह उन नेताओं से अच्छे रिश्ते नहीं रखते उन्हें तंग तो नहीं किया जा रहा है। यहां एक चिंताजनक तथ््य उभर सामने आता है कि वर्तमान सरकार में मीडिया और सरकार के बाच काम करने और करवाने का यह धंधा किस हद तक जड़ें जमा चुका है। वित्तमंत्रालय को छोड़कर और कौन से विभाग हैं जहां यह सब चल रहा है। अगर अखबार या उसके सम्पादक सरकार पर दबाव दे सकते हैं तो सरकार भी तो सम्पादकीय नीतियों को बदलने के लिये अखबारों पर दबाव डाल सकती है। शायद इसी हालात को भांप कर भारत में मीडिया के जनक जेम्स आगस्टस हिक्की ने पत्रकारों को सलाह दी थी के सत्ता के संचालकों से दूर रहें।
अंग्रेजी में भेजे गये वाट्सएप संदेश (स्क्रीन शॉट संलग्न) का हिंदी अनुवाद :
‘‘बाबू ने वित्तमंत्री से मुलाकात की। साथ में रमेश भी थे। उनसे आाई टी ओ यू के बारे में बातें हुईं। उन्होंने दास को बुलाया और दास ने वित्तमंत्री के सामने बताया कि ने गलत समझा है कि आप वहां तैनाती पर हैं जबकि आप अध्ययन अवकाश पर हैं। यह वित्तमंत्री के सामने ही स्पष्ट कर दिया गया कि आपके फेलोशिप के लिये सरकार ने खर्च नहीं दिया है। दास ने यह भी बताया कि यह सारा मामला अब वित्तमंत्रालय के हाथ में नहीं है क्योंकि सी बी डी टी ने उसे विदेशमंत्रालय के फॉरेन सर्विस बोर्ड को सौंप दिया है। दास ने सुझाव दिया कि हमलोग विदेशों में तैनाती की पूरी सूची ही रद्द कर दें क्योंकि केवल लंदन के लिये ऐसा करना अच्छा नहीं होगग। इसपर वित्तमंत्री ने कहा कि ओ. के. और कहा कि चलो। ’’
(जहां तक पता चला है ‘बाबू’ दिवाकर अस्थाना का तकिया कलाम है। वे सभी को बाबू कह के ही बुलाते हैं।)
0 comments:
Post a Comment