भारत का बचपन
हमारी राष्ट्रवादी सरकार जो राष्ट्र के भविष्य की चिंता कला रोना रो रो कर जमीन आसमान किये दे रही है है उस अजीमोशान मुल्क के 4.82 करोड़ बच्चे कुपोषण के कारण अविकसित हैं , जो कोलंबिया की आबादी के बराबर हैं और इतना ही नहीं 310 लाख बच्चे गरीबी के कारण मज़दूरी कर पेट पालते हैं। यह संख्या दुनिया में बाल मज़दूरों की सबसे बड़ी संख्या है। एक अंतरराष्ट्रीय रपट के अनुसार उपरोक्त दो मसलों के अलावा अशिक्षा और काम उम्र में विवाह जैसे मसायल 172 देशोंब की सूची में भारत को 116 वें स्थान पर ला पटका है। 1 जून को जारी इस रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में विभिन्न कारणों से 70 करोड़ बच्चों का बचपन छिन गया है। भारत के तीन पड़ोसी देशों श्री लंका , भूटान और म्यांमार में बच्चों की स्थिति बारात से बेहतर है जो क्रमशः 61,93 और 112वें स्थान पर हैं। हो सकता है भारत सरकसर के किये यह सुकून दिलाने वाला हो कि नेपाल(134), बांग्लादेश(134) और पाकिस्तान(148) का " रैंक" भारत से पीछे है। इस रिपोर्ट में बच्चों की स्थिति आकलन करने के लिए जिंदगी में बदलाव लाने वाले कुछ सेट्स और चंद सूचकों का उपयोग किया है। उदाहरण स्वरूप इनमें कुछ हैं 5 वर्ष के नीचे उम्र में बच्चों की मृतु दर, कुपोषण,शिक्षा का अभाव , बाल मजदूरी, काम उम्र में विवाह, किशोरावस्था में मातृत्व, संघर्ष या बाल हत्या के कारण विस्थापन इत्यादि। यह दुखद है कि भारत का बचपन सबसे ज्यादा कुपोषित है जिससे उनका विकास अवरुद्ध हो गया है और यहां बाल मज़दूरों की संख्या भी सर्वाधिक है। विकास के अवरुद्ध होने का मुख्य कारण है जन्म से 1000 दिनों तक कुपोषण। ये 1000 दिन गर्भ के आरंभिक दिनों से 2 वर्ष की आयु तक गिने जाते हैं। इसमें भी सर्वाधिक दुखद है कि अवरुद्ध विकास वालों की संख्या में दो तिहाई लड़कियां हैं। रिपोर्ट में कहा गया है इस उम्र में लंबी अवधि तक कुपोषण के प्रभाव को खत्म नहीं किया जा सकता और इसासे बच्चा शिक्षा और अन्य क्षेत्रों में पिछड़ जाता है और आगे चल कर बीमारियों इत्यादि का शिकार हो कर दुर्गातो झेलता है। मई में जारी एक अन्य रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में 10 में से एक बच्चे को उचित पोषाहार मिलता है। यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार कुपोषण के कारण 5 वर्ष की उम्र के बच्चों की मृत्यु दर ज्यादा है। रिपोर्ट के अनुसार पांचवी सालगिरह मनाने के पहले ही 21 में से एक बच्चे की मौत हो जाती है। जन्म लेने वाले 1000 बच्चों में से 50 बच्चे पांच साल की उम्र के पहले काल कलवित हो जाते हैं। भारत में 18.6% बच्चे प्राइमरी और सेकेंडरी तक आते आते पढ़ाई छोड़ देते हैं और लगभग 4.7 करोड़ बच्चे हाई स्कूल में दाखिले की उम्र में हैं पर स्कूल नहीं जाते। तो प्राइमरी में नहीं पढ़ पाते वे आगे ठीक से नही पढ़ पाते। आंकड़े बताते हैं कि स्कूल नही जा सकते उन्हें पढ़ने का सकल घरेलू उत्पाद पर 0.3 से 15.2 प्रतिशत खर्च आएगा इससे ज्यादा खर्च तो प्राथमिक शिक्षा का लक्ष्य हासिल करने पर होता है। उप-सहारा अफ्रीका के मुकाबले भारत में अधिक कुपोषित बच्चे हैं और दुनिया में हर पांच कुपोषित बच्चों में से एक भारत से है। सबसे खराब प्रदर्शन वाले राज्यों में सबसे पहला स्थान राजस्थान का रहा है। राज्य में 6-23 महीने के आयु वर्ग के बच्चों में केवल 3.4 फीसदी बच्चों को पर्याप्त आहार मिला है। इसके बाद 5.2 फीसदी के के साथ गुजरात दूसरे और 5.3 फीसदी के साथ उत्तर प्रदेश तीसरे स्थान पर है। सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाले राज्य - केंद्रशासित प्रदेश पुडुचेरी (31 फीसदी), तमिलनाडु (30.7 फीसदी) और मेघालय (23.6 फीसदी ) हैं। बड़े राज्यों में, 2015 में प्रति 1000 जीवित जन्मों पर 19 की मृत्यु के साथ शिशु मृत्यु दर में 67 फीसदी की कमी के साथ, केवल तमिलनाडु ने अपने सहस्राब्दी विकास लक्ष्य (एमडीजी) को हासिल करने में सफल रहा है।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2015-16 (एन एफ एच एस) के अनुसार, “बेहतर साफ-सफाई” के अभाव के कारण भारत के उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, असम और छत्तीसगढ़ में पांच वर्ष की उम्र के बच्चों में सबसे उच्च मृत्यु दर, स्टंट ( उम्र के अनुसर कम कद ) की दर और बच्चों में डायरिया होने की संभवना बहुत ज्यादा है। दूषित पानी, साफ-सफाई को लेकर खराब आदतें और बढ़ती गंदगी से अतिसार जैसी बीमारियों का प्रकोप तो बढ़ता ही है, गंदगी की वजह से पांच वर्ष की आय़ु के भीतर के बच्चों में निमोनिया, नवजात विकार और पोषण की कमी देखने को मिलती है। जाहिर है,इससे मृत्यु दर बढ़ती चली जाती है। यूनिसेफ की 2016 की रिपोर्ट गंदगी और बाल मृत्यु दर के बारे में बहुत कुछ बताती है।
हम बता दें कि स्वच्छता का मतलब आमतौर पर एक ऐसे घर से है, जहां का शौचालय सीवर या सेप्टिक टैंक से जुड़ा होता है। खराब स्वच्छता के कारण बच्चों में पानी से होने वाली बीमारी जैसे कि दस्त, पीलिया और हैजा होने की संभावना ज्यादा बढ़ती है।
देश में 14 वर्ष और उससे कम उम्र के 11.8 प्रतिशत बच्चे काम करते हैं।इनकी संख्या 3.1 करोड़ है जो दुनिया में सबसे ज्यादा है। ये बच्चे अपने परिवार का भरण पोषण के लिए काम करते हैं। इन बच्चों की आंखों में खेल के मैदान की हसरत साफ दिखती है। फुटपाथों पर गुजर करने वाले बच्चों में से आधे बेघरबार हैं और पेट भरने के लिए मज़दूरी करते हैं।
देश में 21.1 प्रतिशत लड़कियों की शादी 15 से 19 वर्ष की उम्र में हो जाती है। यही नहीं 10.3 करोड़ लड़कियां 128 वर्ष की उम्र से पहले ब्याह दी जाती हैं। उम्र से पहले विवाह का लड़कियों के जीवन पर घातक असर होता है। क्योंकि अभी ठीक से बचपन ही नहीं खत्म हुआ कि वे मातृत्व की ओर धकेल दी जाती हैं। उनसे शिक्षा और जीवन के अन्य अधिकार छीन लिए जाते हैं। सोचिए जिस देश का बचपन ऐसा है वह मेक इन इंडिया की बात करते हैं।
Wednesday, June 7, 2017
भारत का बचपन
Posted by pandeyhariram at 6:35 PM
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