राष्ट्रपति चुनाव : जोर का झटका धीरे से
बिहार के वर्तमान राज्यपाल रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति पद के लिये राजग ने अपना उम्मीदवार घोषित किया है। 1 अक्टूबर 1945 को जन्में कोविंद दलित नेता हैं और भाजपा के राजनीतिज्ञ हैं। उत्तर प्रदेश से राज्य सभा के लिये दो बार चुने गये श्री कोविंद सुप्रीम कोर्ट में वकील रह चुके हैं। देश के प्रथम नागरिक के तौर पर उनकी उम्मीदवारी में सबहसे चौंका देने वाली बात है उसके बारे चुप्पी। आखिरी समय तक प्रशासन कोई इशारा नहीं किया और अचानक छक्का मार दिया। इधर मोदी प्रशासन ने विपक्षी दलों को सहमति वाले उम्मीदवार का झुनझुना थमा दिया था और विपक्ष यही साहेच रहे थे कि कही आर एस एस प्रमुख मोहन भागवत का नाम सामने आया तो क्या करेंगे। अचानक कोविंद का नाम आ गया तो उनके हाथ के तोते उड़ गये।
अमरीका सबसे पुराना लोकतंत्र है और भहारत सबसे बड़ा। अमरीका में राष्ट्रपति शासन प्रडाली है जबकि भारत में वेस्टमिनस्टर शासन प्रणाली। आक्रामक और जल्दीबाज डोनाल्ड ट्रम्प के वाइट हाउस से हर बात बाहर आ जा रही है और और उसे राक नहीं पा रहे हैं। मनगढ़ंत समाचार फैलाने के लिये मशहूर मीडिया क्षेत्र में सच्ची खबर आ रही है कि ट्रम्प कुछ नहीं करसकते सिवा यह ट्वीट करने के कि ‘मुख्यधारा की मीडिया जनता की दुश्मन है।’ हालांकि जब से मोदी जी ने गद्दी संभाली है तबसे वे मुख्यधारा की मीडिया से उखड़े हुये हैं। उनहोंने आज तक एक भी प्रेस कांफेंस नहीं किया और ना विदेश यात्रा पर अपने साथ पत्रकारों को ले जाते हैं। वे ‘मन की बात’ से जन से बात करते हैं , प्रेस को पत्ता ही नहीं देते। जहकि इनसे पहले मनमोहन सिंह के काल के अंतिम चरण में हर घंटे एक मामाला ‘लीक’ हो जाता था। यदि 8 नवम्बर 2016 को नोटबंदी की घोषणा को गोपनीयता का पहला मास्टर स्ट्रोक कहें तो एक दलित उममीदवार को राष्ट्रपति बनाने की ोषणा को दूसरा कहा जा सकता है। उत्तर प्रदेश की भारी पराजय के बाद अभी विपक्षी दल हांफ ही ही रहे थे कि यह नया छक्का जड़ दिया मोदी जी ने। विपक्ष एक अजीब पशोपेश में है। कुछ कर भी नहीं पा रहा है ना कुछ कह ब्पा रहा है। कोविंद का विरोध बड़ा कठिन है। वे एक ऐसा चुनाव हैं जिसका विरोध करते ही पार्टी पिट जायेगी। के आर नारायण के बाद दलित राष्ट्रपति होने वाले कोविंद दूसरे हैं। वे उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात में पैदा हुये हैं, दिल्ली में वकालत की और बिहार के राज्यपाल रहे हैं। दलित हैं और दक्षिणपंथी राजनीति से जुड़े हैं। विपक्ष विरोदा करे तो किस नुक्ते पर। अगर उसने उनके खिलाफ दिखाने भर के लिये उम्मीदवार खड़ा किया तो यह राजनीतिक हाराकिरी होगी। यह तो तय है कि कांग्रेस विरोदा का झंडा नहीं उठायेगी और अगर इसने नहीं उठाया तो कौन बचा है विरोध के लिये। पहले तो सवाल था कि यदि एन डी ए कोई उम्मीदवार खड़ा करता है तो बिहार , उड़ीसा,पश्चिम बंगाल और कर्नाटक समस्या पैदा कर सकते थे पर अब वे सब कें सब एक ही दांव में चित हो गये। इसे कहते हैं चाणक्य की चाल।
इसका सबसे अवाक कर देने वाल पहलू है इसकी गोपनीयता। इससे दो ही बात जाहिर होती है कि या तो सारे फैसले मोदी खुद लेते हैं अथवा पार्टी के भीतर काम करने और उसे गोपनीय रखने की अद्भुद क्षमता है। बाहर किसी को हवा तक नहीं लगी और विपक्ष धराशायी हो गया। मोदी और उनके साथी मुख्यधारा की मीडिया को बेशक पसंद नहीं करते पर ट्रम्प और उनके सलाहकारों की तरह बक बक नहीं करते रहते हैं। लोकतंत्र का चौथा खंबा एक विचित्र स्थिति में है, तीन ही खंबों पर लोकतंत्र की मंजिलें बड़ रहीं हैं और वह हैरत में देख रहा है। मीडिया के बड़ बड़े तीसमार खां निस्तेज हैं। सत्ता के गलियारों में गपशप बंद है। यही कारण है कि कोविंद के उम्मीदवारी की हवा किसी को नहीं लगी। विपक्ष अवाक है, मीडिया हैरान है और मोदी जी ने जोर का झटका धीरे से दे दिया।
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