विकास तो हुआ है पर असमानता भी बढ़ी है
भारत में विकास की तेज रफ़्तार किसी से छिपी नहीं है , देश विकसित हो रहा है. वैसे दोषदर्शियों की माने तो विकास के बदले हम अधोगति की और बढ़ रहे हैं. लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं कि आम जनता विकास का लाभ कम उठा पा रही है. अमीर और अमीर होते जा रहे हैं और गरीब विपन्नता की और बढ़ रहे हैं या फिर एक जगह ही स्थिर हैं. आंकड़े बताते हैं की फिलहाल देश में १०१ ऐसे लोग हैं जिनकी दौलत अरबों डॉलर में है. 2 लाख 36 हज़ार लोग हैं जो जिनके पास करोडो डॉलर का कोष है. यहाँ कहने का अर्थ है की ये अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अरबपति और करोड़ पति हैं . दूसरी तरफ करोडो ऐसे भी लोग हैं जिनको पीने का साफ़ पानी नहीं मिलता, खुले में शौच करना होता है. बड़े शेरोन में अमीरों की अट्टालिकाएं हैं तो उसके समीप ही से कई किलोमीटर तक फैली झुग्गी- झोपड़ियां भी हैं. 9.4 ख़रब डॉलर की विशाल अर्थव्यवस्था वाले इस देश में सैकड़ों ऐसे क्षेत्र हैं जहां भुखमरी या भयानक गरीबी साफ़ दिखती है. हालाँकि आय और धन के मामले में असमानता अपरिहार्य है और दुनिया के हर देश में यह दिखता है, लेकिन विगत तीन दशकों से भारत में बढती असमानता स्पष्ट दिख रही है. अमीरों और अन्य लोगो में असमानता बढती जा रही है. अमीरों ने देश की राजनीति और अर्थव्यवस्था में अपना प्रभाव बढ़ा लिया है जबकि गरीब तेज गति से हाशिये पोअर पहुँचते जा रहे हैं और समाज तथा सरकार पर उनका प्रभाव शून्य की ओर बढ़ रहा है. दुनिया के सभी देशों में असमानता है पर उनके बीच की दूरी अलग अलग है. कई देशों ने ज़रूरी उपाय करके इस दूरी को और कम किया है. भारत में बेशक कोशिशें चल रहीं हैं पर कुछ होता नहीं दिख रहा है अथवा हो रहा है तो बहुत मामूली तौर पर.
भारत में जैसी असमानता है वह खतरनाक स्थिति की और बढती जा रही है. ऐसे हालात में म,अनुशय का अपना मूल्य और आत्म विश्वास घाट जाता है. अपराध बढ़ने लगते हैं , बीमारियाँ फैलने लगती है, पर्यावरण बिगड़ने लगता है साथ ही आतंकवादी विचारों को बढ़ावा मिलने लगता है. इससे यकीनन एक खुशहाल समाज तो नहीं बन पाता उलटे वह पथभ्रष्ट हो जाता है. डेवलपमेंट और फाइनांस पर जारी ऑक्सफैम की ताज़ा रपट ( जुलाई 17 ) में 152 देशों की एक सूची प्रकाशित की गयी है जिन मुल्कों ने अमीरी-गरीबी की बीच की दूरी मिटाने की सफल कोशिश की है उसमें भारत का स्थान ऊपर से 132 वां है.
हालांकि एन डी ए सरकार ने वित्तीय समावेशन की नीति को बढ़ावा दे रही है ताकि असमानता कम हो पर इसमें भरी विवाद भी है. वस्तुतः सरकार विदेशों में भारत की एक ऐसी छवि पेश करने की कोशिश में जो तेज़ी से विकसित हो रही अर्थ व्यवस्था है और यहाँ निवेश की बड़ी संभावनाएं हैं. यह भी सही है की गरीबी कुछ कम हुई है. पर अभी भी लगभग 25 करोड़ ऐसे लोग हैं जिनकी आय 2 डॉलर या 120 रूपए रोजाना से कम है. इससे सामाजिक विकास शून्य हो जाता है और गरीब के बच्चे गरीब रहने के लिए अभिशप्त हो जाते हैं. कुछ अपवादों को छोड़ कर अधिकाँश नौजवानों के पास अवसर कम हें. इससे उनकी प्रतिभा और कौशल का सदुपयोग नहीं हो सकता और वे कुंठित हों जाते हैं. ऑक्सफैम की रिपोर्ट के अनुसार जिन देशों में इस असमानता को दूर करने में कामयाबी मिली है उन्होंने सार्वजनिक सेवा , प्रगतिशील टैक्स प्रणाली और श्रमिक अधिकार जैसे कदम उठाये हैं. भारत में ऐसा नहीं हो पा रहा है. यहाँ श्रमिक अधिकार के मामले में बहुत पिछड़ापन है खास कर महिलाओं के मामले में. श्रमिक अधिका के सम्बन्ध भारत अभी बहुत पीछे है. दूसरी बात कि अधिकाँश श्रमिक खेती या अनौपचारिक क्षेत्र में लगे हैं. दक्षिण एशिया जिन देशों ने असमानता को घटाया है उनमें नेपाल का नाम पहला है, मालदीव दूसरा और भारत तीसरे नंबर पर है. जबकि पूरी दुनिया में स्वीडेन का स्थान पहला है.
असमानता की माप का जो तरीका है उसे पाल्मा रेश्यो कहते हैं और विश्लेषकों के अनुसार यह सबसे वैज्ञानिक तरिका है. इसमें देश के सरवोच्च आय वाले 10 प्रतिशत लोगों का आंकड़ा लिया जाता है और 40 प्रतिशत सर्वनिम्न लोगों का. इनके बीच की असमानता का विश्लेषण कर उसे दूर करने के उपाय खोजे जाते हैं. ऐसी बात नहीं है की हमारी सरकार प्रयास नहीं कर रही पर कामयाबी कम मिल रही है. मसलन सर्कार जी डी पी का 3.1 प्रतिशत शिक्षा पर व्यय कर रही है पर प्राथमिक शिक्षा की क्वालिटी एक समस्या है. यही हाल स्वास्थ्य का है. इस क्षेत्र में जी डी पी का 1.3 प्रतिशत व्यय होता है पर गरीब अस्पताल तक नहीं पहुँच पाते. विकास और असमानता को दूर करने के लिए अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है.
0 comments:
Post a Comment