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Tuesday, September 5, 2017

नदियों किनारे शहर बने हैं  

नदियों किनारे शहर बने हैं  

दुनिया के सारे बड़े शहर नदियों के किनारे बसे  हैं या किसी ना किसी जलस्रोत के किनारे बसे है ताकि शहर को पीने के पानी , परिवहन , स्वच्छता सहित अन्य सुविधाये हासिल हो सकें. हमारी शहरी पूर्वजों के लिए एक समय में जो वरदान था वह आज अभिशाप हो गया है या ऐसा कहें समस्या बन गयी है. शहरों में मामूली बारिश के बाद बाढ़ आ जा रही है. अभी हाल में मुंबई में बाढ़ आयी और कई बहुमंजिली इमारतें ध्वस्त हो गयीं, कई लोग मारे गए. पिछले शुक्रवार को लगभग आधे घंटे जैम कर बारिश हुई और शहर के कई अंचल में घुटनों तक पानी भर गया. लोग मुंबई की बाढ़ के सन्दर्भ में इसे देखने लगे. ऐसा लग्भ्गाग हर बड़े शहर में होता है. सवाल है क्यों? सीधा जवाब है कि अपने स्वार्थ के कारण शहर कि व्यवस्था में इंसानी हस्तक्षेप. भारतीय शहरों के तीनो डाइमेंशन – लम्बाई , चौड़ाई और ऊंचाई – बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं. हर दिन हज़ारों लोग बसने के लिए शहरों में आ जाते हैं और जो व्यबस्था है उसपर ब्दबाव बढ़ जाता है. अब जल निकासी स्वच्छता और सड़कों कि समुचित व्यवस्था के अभाव में थोड़ी बारिश में ब्वाध आ जाती है. यह हाल कव्वाल कोल्कताता का ही नहीं दुनिया के ल;अग्भाग सभी बड़े शहरों का है. कुछ साल पहले न्यूयार्क में बाढ़ आयी थी, बीजिंग और शंघाई में आयी थी. भारत में सन 2000 में हैदराबाद, 2005 और इसवर्ष पिछले हफ्ते  में मुंबई , 2007 में कोलकाता, 2014 में श्रीनगर और 2015 में चेन्नई की बाढ़ कि खबरें  सुर्खिया बनी थीं. शहरों की बाढ़  सारे शहरातियों को मुश्किल में डाल  देती है पर जो लोग निम्न मध्यवर्ग के हैं और जो शहर के निचले भाग में रहते हैं उनका जीवन कठिनाईयों से भर जाता है, क्योंकि रिहाईश कि सनुचित व्यवस्था नहीं होती , ढांचागत सुविधाओं का अभाव होता है, स्वास्थ्य सेवा, आपातकालीन सेवा और राहत एवं बचाव सुविधाओं का अभाव होता है.

शहरी बाढ़ अक्सर स्थान विशेष पर भारी बारिश के कारण  आती है जिसे वहाँ मौजूद इन्फ्रास्ट्रक्चर संभाल नहीं पाता. परिवहन सेवा ठप हो जाती है. संचार व्यवस्था भी गड़बड़ हो जाती है , ना बिजली मना पीने का पानी. अर्थव्यवस्था चरमराने लगती है. भारी बारिश के जटिल भगौलिक फिनोमिना होते हैं और इसका एक कारण नहीं बताया जा  सकता है. मसलन 2015 में चेन्नई में आये बाढ़ को अल नीनो नामक चक्रवात को कारण बताया जाता तो जबकि 2005 के मुंबई कि बाढ़ के चार कारण बताये जाते हैं , पहला कि बंगाल की खाड़ी के उत्तर पश्चिमी भाग में वायु का निम्न दबाव , अरबी मानसून का तेज होना , अरब सागर में तूफ़ान, उत्तर पश्चिम अरब सागर में भारी बारिश इत्यादि. मौसम में बदलाव भी इसका कारण नही. मौसम वैज्ञानिकों ने तो मंस्सोनी बरसात कि तीव्रता को लेकर कई बार चेतावनी दी है. राष्ट्र संघ कि पर्यावरण कि हाल की रिपोर्ट में कहा गया है की ग्लोबल वार्मिंग की  वजह से वर्षा के पैटर्न बदल गए हैं. ग्लोबल मौसम के बदलाव के फलस्वरूप भारी बारिश के सामने टिक नहीं पाने का मुख्य कारण शहरों  का योजनाहीन तरीके से विकास. एक तो ऐसे इलाकों में जल निकासी की अपर्याप्त व्यवस्था होती है है और जो राहती भी है वह खान पान , रहन सहन और जीवनशैली के कारण बिगड़ जाती है. दूसरे घर बनाने वाले लोभी बिल्डर नीची जमीन में भी इमारतें बना कर बेच दे रहे हैं इससे बाढ़ कि आशंकाएं बढ़ जा रही हैं. शहरी बाढ़ की रोकथाम के लिए अनेक ढांचागत सुधारों की आवश्यकता है. जलनिकासी मार्ग ठीक प्रकार से चिह्नित होना चाहिए और शहर के प्राकृतिक जलनिकासी तंत्र में कोई अतिक्रमण नहीं होना चाहिए. उपेक्षा या गलत प्रबंधन के चलते बाढ़ क्षेत्र की जलनिकासी मार्ग बाधित हो चुकी है. इनको तुरंत दुरुस्त करना होगा. लगभग सभी शहरों पर जनसंख्या का दबाव ऐसा पड़ रहा है कि बाढ़ क्षेत्र में बस्तियां बसने लगी हैं. इन अतिक्रमण के खिलाफ मुहिम छेड़नी होगी. जो बड़ी संख्या में पुल,ओवरब्रिज समेत मेट्रो परियोजनाओं का निर्माण हो रहा है वह मौजूदा जलनिकासी मार्गों में किया जा रहा है. उचित इंजीनियरिंग डिजाइनों जैसे केंटिलीवर निर्माण आदि का सहारा लेकर ड्रेनेज सिस्टम की रक्षा की जा सकती है.जमीन सिर्फ मकान बनाने के लिए नहीं है,पानी के लिए भी है. ताल-तलैये और पोखर शहर के सोख्ते की तरह हैं. बाढ़ नियंत्रण के इन परंपरागत तरीके के प्रति उपेक्षा ने स्थिति को और गंभीर बनाया है. जलवायु परिवर्तन के चलते बेमौसम या मानसून के दौरान जब भारी बारिश होती है तो पानी के निकलने का कोई स्थान नहीं बचता है. लिहाजा बाढ़ और विनाश अवश्यंभावी हो जाते हैं. इन्हें फिर से पुनर्जीवन देकर शहरी बाढ़ का प्रभाव कम किया जा सकता है. इसके अलावा छिद्रदार फुटपाथ बनाए जाने चाहिए जिससे पानी सतह के नीचे की मिट्टी तक पहुंच जाता है.शहरों की  बाढ़ को केवल तब ही रोका जा सकता है जब स्थानीय स्तर  पर नीति ना बने. शहर विकास नीति के निर्माण के समय  मौसम परिवर्तन कि हकीक़त को ध्यान में रखा जाना चाहिए. फिलहाल हमारे शहरों कि हिफाज़त के लिए जिम्मेदार एजेंसियां तदर्थ तौर पर काम करतीं हैं. वे पहले से नहीं तैयार नहीं रहतीं है. इस तरह की जटिल चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए. सड़क, जलनिकासी, आवास जैसे मौसम से प्रभावित होने वाले सेक्टर को इसके लिए तैयार रहना चाहिए.   

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