रोहिंग्या संकट : भारत के लिये सबक
इन दिनों दक्षिण एशिया में रोहिंग्या शरणार्थियों कि प्रबल्क चर्चा है. भारत मेंब भी ये शरणार्थी घुस आये हैं और सरकार उन्हें खदेड़ने कि कोशिश कर रही है. इस मामले को लेकर हमारा बौधिक समुदाय विभाजित हो चुका है. एक पक्ष कहता है कि इन्हें मानवता केर नाते नहीं खदेड़ा जाना चाहिए जबकि दूसरा पक्ष इसे लेकर काफी उग्र है. दरअसल रोहिंग्या आराकान की पहाड़ियों के जनजातीय मुसलमान हैं औरे बर्मा में बौद्ध तथा मुस्लिम समुदाय में भयानक तनाव है. इसमें फ़ौज ने हस्तक्षेप किया है. चूँकि शासन बौद्ध बहुल है और समाज भी इसलिए रोहिंग्याओं को भागना पड़ रहा है. पूरी प्रक्रिया का विश्लेषण करने पर लगता है कि मामला वैसा नहीं है जैसा लोगों को समझाया जा रहा है. यह असल में बाहरी “ खिलाडियों “ की करतूत है और इसके तीन पहलू है. पहला कि यह चीन के खिलाफ एक चाल है , दूसरा दक्षिणी पूर्वी एशिया में मुस्लिम आतंकवाद को हवा देने की साजिश है और तीसरा यह म्यांमार और मुस्लिम बहुल इंडोनेशिया तथा मलयेशिया में तनाव पैदा करने का षड्यंत्र है. म्यांमार के राखिने प्रान्त के उत्तर पश्चिमी क्षेत्र यह सारा संकट है. इसका कारण है कि इस इलाके में सागर तट से बाहर तेल और गैस का विपुल भंडार है. यही कारण है कि दक्षिण पश्चिम एशिया के स्थायित्व को ताक पर रख कर ये खिलाड़ी यहाँ लगे हैं. 2004 में इसे खोजा गया और 9 वर्षों के बाद 2013 में चीन ने समझौता कर अपने कुनमिंग शहर से इसे पाइप लाइन से जोड़ा. जबसे चीन और म्यांमार के बीच पाइप लाइन से तेल कि रफ्तनी शुरू हुई रोहिंग्या समस्या शुरू हो गयी और जान बचाने के लिए बड़े पैमाने पर रोहिंग्या भागने लगे. राष्ट्र संघ के आंकड़े के अनुसार 2011 -12 में 1 लाख रोहिंग्यायी वहाँ से भागे थे. यह संयोग नहीं हो सकता. कहीं ना कहीं बाहरी खिलाड़ी इसमें जुड़े हैं. म्यांमार को अस्थिर कर वे चीन पर सीधा प्रहार कर सकते हैं और चीन में भीतरी अस्थिरता आयेगी तो वह अपना वर्चस्व कायम करने के लिए भारत से उलझ सकता है. यही नहीं अगर तेल कि आपूर्ति रूकती है तो चीन म्यांमार से भी उलझ सकता है. लेकिन इन खिलाड़ियों का कुछ नहीं बिगड़ने वाला. इन्हें इससे भी लाभ होगा. यह वैश्विक नीति है खास कर ब्रिटेन की कि क्षेत्रीय और जातीय तनावों को हवा देकर किसी भी देश को अस्थिर कर दिया जाय. भारत में मुस्लिम राष्ट्र का सिधांत पैदा कर उसे दो टुकड़ों में बाँट दिया. अभी हाल में यूक्रेन का संकट और यूनान का संकट सबके सामने है. यह एक साजिश है जिसके बल पर ये कुछ वैश्विक खिलाड़ी किसी देश को ना केवल सामजिक या राजनितिक तौर पर संकटपूर्ण बना देते हैं बल्कि उसे आरती तौर पर भी घुटनों पर ला देते हैं और फिर मदद के रूप में अपनी शर्तें मनवाते हैं.
भारत का ही उदाहरण लें , भारत देश के डूबे कार्पोरेट कर्जों को वसूलने में परेशान है और बड़े बड़े कर्जदार लन्दन जाकर ऐश कर रहे हैं. यह जान कर अच्छे – अच्छो को पसीना आ जाएगा कि इन कर्जों में 1.14 लाख करोड़ रूपए फंसे हैं. यहाँ कई सरकारी बैंकों के विलय या निजीकरण की बात चल रही है है और वहाँ वे मजे से घूम रहे हैं. जो लोग अपने को बहुत जानकार मानते हैं वे इसे “ शक्ति संतुलन “ कहते हैं. अभी हल में भारत और चीन में इसी तरह के शक्ति संतुलन कि बात हुई थी. भारत के साथ यही एक हो तो कोई बात नहीं. यह देश तो कई मोर्चों पर जूझ रहा है. चाहे वह कृषि हो या अर्थ व्यवस्था , सिविल सोसाइटी हो या सुरक्षा , सब जगह मोर्चे खुले हुए हैं और उसमें उलझ कर आम भारतीय बर्बादी की ओर बढ़ता जा रहा है. हमारी खुफिया अजेंसिओं को विपक्षी नेताओं कि जासूसी छोड़ कर इन खिलाडिओं जासूसी करनी चाहिए और भारत को उनके शिकंजे से मुक्त कराना चाहिए. रोहिंग्या का संकट भारत के लिए एक सबक है.
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