रोहिंग्या संकट : भारत को कदम उठाना चाहिए
इकॉनोमिस्ट पत्रिका ने अपने ताजा अंक में कहा है कि रोहिंग्या शरणार्थी संकट इस दशक में सबसे बड़ा है. हर हफ्ते म्यांमार से भागने वाले इन शरणार्थियों की संख्या रवांडा के नरमेध से कहीं ज्यादा है. राष्ट्र संघ के इंटरनेशल ओर्गानाइजशन फॉर माइग्रेशन के अनुसार “ यह भगदड़ संख्या और रफ़्तार में अद्भुद है.” राष्ट्र संघ के मानवाधिकार के प्रमुख जायेद रद हसन ने इसे “ जातीय सफाई की पाठ्यपुस्तक “ कहा है. म्यांमार की नेता और नोबेल पुरस्कार विजेता अंग सांग सु क्यी ने १९ सितम्बर को एक बयान में कहा कि गत 5 सितम्बर से गाँव खाली नहीं हो रहे हैं और ना किसी का दमन किया जा रहा है. उधर एमनेस्टी इन्तार्नेशानल ने इसे “ असत्य और पीड़ितों पर दोष मढने की क्रिया का मिला जुला स्वरुप “ बता रहा है. आंकड़ों के मुताबिक़ लगभग 1 लाख 20 हज़ार लोग हर हफ्ते आराकान की पहाड़ियों के अपने गाँव से भागते हैं इसमें सबसे ज्यादा लोग बँगला देश में घुस रहे हैं बाकि एनी जगहों पर जा रहे हैं. इन जगहों में भारत भी शामिल हैं. हालांकि सु क्यी ने कहा है कि उनकी सरकार किसी भी समय पहचान की प्रक्रिया आरम्भ कर सकती है और तब बँगला देश से कुछ रोहिंग्या शरणार्थी लौट सकते हैं. म्यांमार में हो रहे नरसंहार से रोहिंग्या मुसलमानों की स्थिति दयनीय के साथ-साथ जटिल भी हो गई है. अपने देश वे जा नहीं सकते, जहां वे सुरक्षित रह सकते हैं वहां से उन्हें निकालने की तैयारी हो रही है, और जो उन्हें आने दे रहा है उसकी क्षमता सीमित है. उनकी हालत ‘न ज़मीं अपनी न आसमां अपना’ वाली है. ऐसे में उनके प्रति सहानुभूति रखने वाला व्यक्ति अच्छी कल्पना से ज़्यादा क्या ही कर सकता है!
बौद्ध धर्म गुरु दलाई लामा ने यही किया. कुछ दिन पहले जब उनसे रोहिंग्या मुद्दे पर सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि अगर बुद्ध होते तो निश्चित ही रोहिंग्या मुसलमानों की मदद करते. आगे उनका कहना था कि जो लोग रोहिंग्याओं को सता रहे हैं उन्हें याद रखना चाहिए ऐसे हालात में बुद्ध निश्चित ही उन कमज़ोर मुसलमानों की मदद करते.
वैसे तो म्यांमार समेत अन्य देशों के पास रोहिंग्या मुद्दे पर दलाई लामा की बुद्ध वाली बात से आंखें फेरने के कई ‘जायज़ बहाने’ हैं,लेकिन बुद्ध अपने आप में ऐसा विचार हैं जिससे आंखें तो फेरी जा सकती हैं, लेकिन मन नहीं. दलाई लामा का यह कहना कि ‘बुद्ध निश्चित ही मदद करते’,उनके जीवन से जुड़ी एक बेहद अहम घटना की याद दिलाता है. यह तब की बात है जब बुद्ध, बुद्ध नहीं थे. उस समय वे सिद्धार्थ थे. यह कम चर्चित घटना बुद्ध के गृह त्याग को लेकर चली आ रही कहानी पर भी सवाल उठाती है,जिसके मुताबिक़ ज्ञान प्राप्ति के लिए राजकुमार सिद्धार्थ आधी रात को सोती पत्नी और पुत्र को छोड़कर चले गए थे.
जहां तक भारत का प्रश्न है तो रोहिंग्या शरणार्थियों पर बेशक दया की जा सकती है लेकिन उनकी पीड़ा से व्याकुल होकर भारत की नीति का संचालन नहीं किया जा सकता. किसी के दर्द को मह्सूस करने की भावना का दुनिया की हर संस्कृति में कीमत है पर जैसा कि मनोशास्त्री पॉल ब्लूम लिखते हैं कि दूसरे के दर्द को महसूस करना केवल धार्मिक भाव के लिये ही होता है ना कि स्थायी तौर पर और हर क्षेत्र में. भारत ने इन शरणार्थियों को हटाने का मन बना लिया है. हालांकि कई संगठनों ने भारत सरकार के इस फैसले का विरोध किया है. भारत सरकार का मानना है कि इन शरणार्थियों में इस्लामी आतंकी गुटों का प्रवेश हो रहा है. इससे अलग बांग्ला देश सरकार ने इसे मानवता का संकट माना है और कहा है की , भारत एक क्षेत्रीय शक्ति है और वह भी इस पीड़ा से आक्रांत है अंतत: वह उन्हें वापस भेजने के लिए कोई रणनीति ज़रूर बनाएगा.हालांकि म्यांमार अपने नागरिकों के रूप में रोहिंग्या को नहीं पहचानता है, नई दिल्ली शरणार्थियों को वापस लेने के लिए अंतर्राष्ट्रीय ताकतों को मनाने में भूमिका निभा सकती है. “म्यांमार,बांग्लादेश और भारत सभी बिम्सटेक के सदस्य हैं, और एक क्षेत्रीय शक्ति के रूप में भारत को अपनी ताकत और प्रभाव का इस्तेमाल करके म्यांमार को इन रोहिंग्या शरणार्थियों की वापसी के लिए प्रेरित करना चाहिए.
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