बढती गर्मी से जुड़ी है किसानों कि आत्महत्याएं
भारत का तापमान बढ़ता जा रहा है और इससे सामान्य जीवन से ज्यादा कृषि प्रभावित होगी. एक तरफ जहां पैदावार घटेगी, सूखे कि स्थिति का डर बढ़ता जाएगा उतनी ही निराशा जन्य आत्महत्याएं भी बढेंगी. कैलिफोर्निया बर्कले यूनिवर्सिटी कि तम्मा कार्लटन द्वारा किये गए अध्ययन के मुताबिक भारत में 20 डिग्री तापमान से ज्यादा हर एक डिग्री पर 67 किसान आत्महत्या करते हैं. अध्ययन के अनुसार 1980 से अबतक जलवायु परिवर्तन के कारण 59हज़ार3सौ किसानों ने आत्महत्याएं कीं है. तापमान बढ़ने के कारण उपज में 0.5 प्रतिशत कि गिरावट आयी है. नेशनल अकेडमी ऑफ साइंसेज कि रिपोर्ट बताती है कि गर्मी में भारत में दिन का तापमान औसतन 18 डिग्री से 30 डिग्री के बीच रहता है. इसका निष्कर्ष यह है कि इनसे होने वाली क्षति से किसानों में आत्महत्या के मामलों में वृद्धि होती है. इधर राष्ट्रिय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि किसानों ने इनसे बचने का कोई तात्कालिक उपाय नहीं किया है. इससे यह भी पता चलता है कि नीति निर्माताओं के लिए इसे रोकना प्राथमिकता नहीं है. जिस तरह से वातावरण का तापक्रम बढ़ रहा है उससे साफ़ तौर पर कहा जा सकता है कि भारत में किसानों कि ह्त्या महामारी कि तरह फैलेगी हज़ारों लोगों कि ज़िन्दगी तबाह हो जायेगी. साइंटिफिक जर्नल “साइंस अडवांस” में प्रकाशित एक लेख में कहा गया है कि शताब्दी के अंत तक उच्च तापमान के साथ उच्च आद्रता हो जाने से मौसम की स्थिति घटक हो जाने कि आशंका है. मौसम कि खतरनाक स्थिति भारत , पकिस्तान और बंगलादेश के बड़े हिस्से में लाखों लोगों के जीवन को प्रभावित कर सकता है. 21 विन शताब्दी के अंत तक ऐसी स्थिति कई बार पैदा हो सकती है. इस सन्दर्भ में अगर हम भारत के किसनोंब कि विपदा का आकलन करेइउन तो बहुत भयावह तस्वीर उभरेगी. आंकड़े बताते हैं कि दुनिया में जितनी आत्महत्याएं होती हैं उनमें 20 प्रतिशत भारत का होता है. 1980 के बाद से भारत में आत्म ह्त्या कि दर दोगुनी हो गयी. इस समग्र वृद्धि में 6.8 प्रतिशत का कारण जलवायु परिवर्तन है. आत्महत्या के जरिये जीवन को ख़त्म करना इंसानियत को सदमा देने वाला है. अतएव जलवायु शमन और अनुकूलन नीति पर बहुत जल्दी तथा प्रभावी ढंग से कुछ करने कि ज़रूरत है. कृषि पर वर्षा और तापमान दोनों का प्रभाव पड़ता है. आमतौर पर आत्महत्या का सम्बन्ध तापमान से है वर्षा से नहीं. यहाँ कि कृषि के अध्ययन से पाता चलता है कि फसल पर तापमान का जितना असर पड़ता है उतना वर्षा का नहीं पड़ता. तापमान के कारण होने वाली आत्महत्याओं का असर देश के सभी राज्यों में सामान देका गया है. चाहें उस राज्य के किसानो कि आय ज्यादा हो कम. अध्ययन में पाया गया कि भरात धीरे धीरे गर्म हुआ और उसी अवधि में उसका आर्थिक विकास भी हुआ. इसके बावजूद तापमान और आत्महत्या का रिश्ता बराबर पारा गया. इससे पाता क्व्हालता है कि मज़बूत होती आर्थिक स्थिति ,धीरे – धीरे गर्म होता मौसम और आय कि विविधताओं से आत्म ह्त्या के संख्या पर असर नहीं हुआ है. अध्ययन में यह भी देखा गया है कि किसान और कृषि श्रमिक तापमान से ज्यादा प्रभावित होते हैं. यह भी पाया गया है कि जिस साल अधिक बारिश होती है उस वर्ष से डो वर्षों तक आत्महत्या की दर लगभग 4 प्रतिशत कम हो जाती है. आंकड़ों के मुताबिक़ दक्षिणी राज्यों – आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल – जो आम तौर पर उत्तर के राज्यों कि तुलना में ज्यादा गर्म हैं वहाँ 1967 से 2013 के बीच आत्म्हात्यायों कीसंख्या में तीन गुना वृद्धि हुई है. जबकि इसी अवधि में उत्तरी राज्यों में आत्म ह्त्या की दर स्थिर बनी हुई है. वैश्विक आंकड़े बताते हैं कि आने वाले दिनों में धरती का ताप माँ बढेगा और फलतः दुखद स्थिति पैदा हो सकती है. इसलिए सरकार को चाहिए कि इससे मुकाबले की ठोस रणनीति बनाए.
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