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Wednesday, September 20, 2017

ट्रंप की चेतावनी

ट्रंप की चेतावनी

किसी फ़िल्मी गाने की पंक्ति है ,

एटम बमों के जोर पर ऐंठी है दुनिया

बारूद के एक ढेर पर बैठी है दुनिया

आज अगर हम चारो तरफ देखें तो लगता कुछ ऐसा है. मंगल वर को ही अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्राम ने राष्ट्रसंघ के अपने पहले भाषण में कहा कि वे उत्तर कोएइअ को नेस्तनाबूद कर देंगें. उन्होंने देशों की संप्रभुता पर बल दिया और कहा कि उनके लिए “ अमरीका सर्वप्रथम है.” ट्रंप ने फ़्रांस के राष्टपति एमनुअल मैकरोन से भी मुकाकात की और मैकरोन ने राष्ट्रसंघ में भाषण दिया. ट्रंप ने उत्तर कोरिया की परमाणु चुनौती के सन्दर्भ में कहा कि अमरीका के पास ताक़त के साथ साथ धैर्य है पर यदि उसे या उसके साथियों को तंग करने की कोशिश की गयी  तो वे उसे मिटा देंगे. ट्रंप ने कहा कि उत्तर कोरिया के शासक आत्मघाती कदम उठा रहे हैं. उनकी इस बात से वहाँ फुसफुसाहट होने लगी. उन्होंने इरान को भी चेताया कि पिछले राष्ट्रपति बराक ओबामा द्वारा किये गए परमाणु समझौते संशोधन करेंगे. उन्होंने कहा कि ईरान सरकार ने लोकतंत्र के मुखौटे के पीछे तानाशाही का चेहरा छिपा रखा है. ट्रंप की इस बात से दुनिया में तनाव छ गया है. इरान के विदेश मंत्री ने ट्वीट  किया कि ट्रंप  को शायद मालूम नहीं है इस तरह के नफरत भरे भाषण मध्य युग की बातें हो चुकी हैं, 21 सदी में इसका कोई मूल्य नहीं है.ट्रंप की बात तो काबिल- ए – जवाब भी नहीं है ट्रंप ने कहा कि  वे कट्टरपंथी इस्लाम को अपने देश में पनपने नहीं देंगे. उन्होने कहा की यह वक़्त है अल कायदा और तालिबान जैसे कट्टरपंथी संगठनों की पोल खोलने की. उन्होंने सीरिया की सरकार की भी आलोचना की. हालांकि ट्राम ने रोहिंग्या संकट की कोई चर्चा नहीं की.

इधर अमरीका और जोआन के साथ त्रिपक्षीय बैठक में भारत की विदेश मंत्री शुसमा स्वराज ने कहा कि परमाणु तकनीक उत्तर क्लोरिया तक कैसे पहुंची इस बात की जांच हो. उत्तर कोरिया ने राष्ट्र संघ और ज्यादातर देशों के विरोध के बावजूद हैद्रिजन बम का टेस्ट किया था और जापान के ऊपर से मिसाइल दागी थी थी.

    उत्तर कोरिया को नेस्तनाबूद  कर देने की धमकी देने वाले ये ट्रंप वही हैं जिन्होंने जून 2013 में सीरिया पर केमिकल बम से हमले को अमरीका की सबसे बड़ी गलती कहा था और कहा था की कई और अशुभ होने वाले हैं. आज जो उन्होंने कहा उससे तो यही ध्वनि निकलती है कि सचमुच कुछ अशुभ होने वाला है. वैसे अपनी जिद या अपना वर्चस्व कायम  करने के लिए अमरीका ने कई बार ऐसा किया है , अभी कुछ साल पहले ही इराक को उसने बुरी तरह ध्वस्त कर दिया था. राष्ट्रसंघ में जो ट्रंप ने कहा उसके विश्लेषण से यही पता चलता है कि कुछ भी अशुभ हो सकता है.  क्योंकि आज की हमारी दुनिया युद्ध के ढाई दशक की दें है और इसमें मध्यपूर्व में अमरीकी हस्तक्षेप की घटना तो सब जानते है. बात इतनी ही होती तो गनीमत है. दर असल अमरीकी प्रशासन के अंदरूनी हिस्से में वैश्विक कम्मुनिस्टो का जत्था प्रवेश कर चुका है और वह अमरीकी व्यवस्था को भारी  तनावपूर्ण बना रहा है जिससे वैश्विक शान्ति भंगुर बनती जा रही है. ट्रंप का यह रुख नया नहीं है लगभग एक माह पहले उत्तर कोरिया के प्रति ट्रंप के रुख को देख्टर हुए अमरीकी ग्राश्त्रिय गुप्तचर संस्था के पूर्व प्रमुख जेम्स क्लैपर ने कहा कि “ ट्रंप का कथन तीसरे विश्व युद्ध में बदल सकता है. ट्रंप को बयान देने के मामले में बहुत सावधानी से काम लेना चाहिए.”

   हर युद्ध के पहले द्विधा लडती उबलते क्रोध से,

  हर युद्ध के पहले मनुज सोचता, क्या शास्त्र ही

  उपचार एक अमोघ है

अन्याय का अपकर्ष का, विष का, गरलमय द्रोह का.

ट्रंप के अबतक के  भाषणों की शब्दावालियों पर अगर गौर करें तो महसूस होगा की वे “ दुष्परिणाम, क्रोध, आग , हमला, हथियार “ जैसे शब्दों भरपूर प्रयोग करते हैं. ऐसे शब्द उत्तेजित मानसिकता के परिचायक हैं और इससे स्थिति अनियंत्रित हो सकती है. अनियंत्रण की सूरत में पूरा विश्व खतरे में पद जाएगा. जहां तक इरान की बात है अमरीका खास कर डोनाल्ड ट्रंप को उससे ख़ास चिढ है. हकीक़त यह है की इरान की रक्षा व्यवस्था अमरीका या कई यूरोपीय देशों से बहुत कमजोर है फिर भी उसे ही दोषी बताया जाता है. इगत महीने विख्यात अमरीकी विचारक नोम चोमोसकी ने भी कहा था की अमरीका विश्व शान्ति के लिए ख़तरा है.

अब चाहे जो हो हिंसा जन और धन दोनों की बलि लेती है. 2012 के उपलब्ध आंकड़े के मुताबिक़ उस वर्ष हिंसा पर काबू पाने के लिए वैश्विक लागत 9.5 ख़रब डॉलर थी. यह राशि वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद के 11 प्रतिशत है. यह वैश्विक कृषि क्षेत्र के लगत के दोगुने से ज्यादा है. किसी भी युद्ध के बाद चारो तरफ दरिद्रता , भुखमरी फ़ैल जाती है. मनुष्य दूसरे युद्ध से लड़ने लगता है.

 लड़ना उसे पड़ता मगर जीतने के बाद भी

रणभूमि में वह देखता सत्य को रोता हुआ.    

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