तीसरी बार मोदी जी ने किया फेरबदल
प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने अपनी सरकार में लगभग 3 वर्षों में रविवार को तीसरी बार फेर बदल किया. उन्होंने मंत्री परिषद में 9 मंत्रियों को शामिल किये और चार मंत्रियों को प्रोन्नति दी. कैबिनेट रैंक में प्रोन्नत किये गए 4 मंत्री हैं सर्वश्री धर्मेन्द्र प्रधान, पियूष गोयल, मुख्तार अबास नकवी और निर्मला सीतारमण. निर्मला सीतारमण को तक्षा मंत्रालय सौंपा गया है. इंदिरा जी के बाद वे देश की पहली महिला रक्षा मंत्री हैं. पियूष गोयल को रेल मंत्रालय का प्रभार सौंपा गया है. इसकी अटकलें पहले से लगाई जा रहीं थीं. लेकिन सुरेश प्रभु को रेल मंत्रालय से हटा कर बाहर नहीं किया गया बल्कि उन्हें वाणिज्य मंत्रालय सौंपा गया. इसके पहले अटकलें थीं कि एन डी ए गठबंधन के दलों से कुछ लोग लिए जायेंगे लेकिन ऐसा हुआ नहीं. जो नए मंत्री शामिल किये गए हैं उनमें अफसरशाही के 43 अवकाशप्राप्त लोग हैं , वे हैं – भारतीय विदेश सेवा के हरदीप सिंह पूरी, पूर्व आई ए एस अधिकारी अलफोंस कन्नान नाथन,पूर्व गृह सचिव आर के सिंह और पूर्व आई पी एस ऑफिसर सत्यपाल सिंह. इनके अलावा राज्य मंत्री शिव प्रताप शुक्ला , बक्सर के सांसद आश्विनी कुमार चौबे, टीकमगढ़ से संसद वीरेंदर कुमार, उत्तर कन्नड़ से संसद अनंत कुमार हेगड़े और जोधपुर से संसद गजेंदर सिंह शेखावत. इन्हें रविवार को राष्ट्रपति भवन में एक सादे समारोह में राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई. फेरबदल से पहले कलराज मिश्रा , बंडारू दत्तात्रेय, राजीव प्रताप रूडी, संजीव कुमार बालियाँ , फग्गन सिंह कुलस्ते, महेंद्र नाथ पाण्डेय ने इस्तीफा दे दिया था. इस फेर बदल के बाद मंत्रिमंडल में मंत्रियों की संख्या 73 से बढ़ कर 77 हो गयी. यहाँ दिलचस्प यह है कि “मिनिमम गवर्नमेंट , मक्सिमम गवार्नेंस ” का नारा देने वाले नरेन्द्र मोदी जी के मंत्रिमंडल में 77 मंत्री हैं जो संविधान की धारा 72 के अनुसार सर्वोच्च संख्या 82 से मह्ज 5 कम हैं. सरकार मई 2014 में 46 मंत्रियों से शुरू हुई थी और अब यह 77 पहुँच गयी है.
इस फेरबदल का असर गठबंधन के दलों पर भी पडेगा, हालांकि जनता दल (यू) ने इसपर कोई टिपण्णी करने से इनकार कर दिया है हलाकि शिव सेना ने इस फेरबदल की आलोचना की है.
इस फेर बदल से कई सन्देश जाते हैं मसलन निर्मला सीतारमण , पियूष गोयल , धरमेंदर प्रधान, मुख्तार अब्बास नकवी जैसे नौजवान आगे आरहे हैं साथ ही अफसरशाही से लिए गए मंत्रियों से यह पता चलता है कि पेशेवर लोगों को शामिल किया जा रहा है. कुछ मंत्रियों को हटाये जाने से यह लग रहा है कि सरकार डीएव गाये काम पूरा करने वालों को ही पद देगी. साथ ही इससे यह भी महसूस हो रहा है कि सरकार की नज़र अगले लोक सभा चुनाव पर है. क्योंकि इस बार मंत्री मंडल में दो दो मंत्री उत्तर प्रदेश और बिहार से शामिल किये गए हैं. चुनाव की दृष्टि नसे ये दोनों राज्य अत्यंत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि केवल इन्ही दोनों राज्यों से 120 सांसद आते हैं. यही नहीं मंत्रियों की प्रोन्नति से साफ़ जाहिर होता है कि जिन्होंने काम किया उन्हें तरक्की मिली.
परन्तु कई विश्लेषकों का मानना है कि इस फेरबदल का काम से कोई लेनादेना नहीं है या अगर है भी तो बहुत कम है. क्योंकि अभी तक कोई ऐसा आंकडा नहीं सामने आया है जिससे पता चले कि किसी विशेष मंत्रालय ने कोई विशेष काम किया है या कितना काम किया है. अगर ऐसा होता तो अर्थव्यवस्था की खस्ता हाली के लिए वित्त मंत्री अरुण जेटली को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया होता. सच कहें तो इस सरकार में आधे मंत्री तो नकारा हैं बस यह सारा कारोबार मोदी- शाह की जुगलबंदी का नतीजा है. साड़ी सत्ता और सारे अधिकार थो प्रधान मंत्री के हाथ में है और जन्नता मंत्रियों से काम चाहती है. सत्ता के गलियारों तो यह कहा जता है कि मोदी जी के हुक्म के बिना कोई जबान नहीं खोल सकता है. यह पूरा फेर बदल सत्तारूढ़ दल के इन्टरनल डायनामिक्स का नतीजा है. 2019 धीरे धीरे नज़दीक आता जा रहा है. नोट बंदी के गलत प्रभाव दिखने लगे है. सरकार ने इस प्रभाव को समाप्त करने के निये यह कदम उठाया है.
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